व्रत या उपवास वैज्ञानिक रूप से भी रखा जाता है और आध्यात्मिक रूप से भी. वैज्ञानिक रूप से लोग शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्रत रखते हैं. अध्यात्मिक रूप से व्रत से मन और आत्मा को नियंत्रित किया जाता है. अलग अलग तिथियां अलग अलग तरह से मन और शरीर पर असर डालती हैं. जिसको ध्यान में रखकर अलग अलग तिथियों को उपवास या व्रत का विधान बनाया गया है. विशेष तिथियों को व्रत-उपवास रखने से शरीर और मन तो शुद्ध होता ही है मनचाही इच्छाएं भी पूरी होती हैं.
क्या हैं व्रत रखने के नियम ?
व्रत दो प्रकार से रखा जाता है. निर्जला व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. निर्जला व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति को ही रखना चाहिए. अन्य या सामान्य लोगों को जलीय उपवास रखना चाहिए. व्रत में अधिक से अधिक समय ईश्वर ध्यान या उपासना में लगाना चाहिए. बहुत जरूरी हो तो फलाहार कर सकते हैं. व्रत की समाप्ति अगले दिन सूर्योदय के बाद नींबू पानी पीकर करनी चाहिए. अगले दिन पारायण करने के पूर्व भोजन या अन्न का दान करना चाहिए.
तिथि और दिन के उपवास में क्या अंतर है ?
तिथियों का मन पर अलग अलग असर पड़ता है. दिनों का ग्रहों से कोई विशेष संबंध नहीं है और न ही दिनों का अलग से मन पर कोई असर पड़ता है. इसलिए दिनों का उपवास आपको मानसिक रूप से सांत्वना भले ही दे दे वास्तविक रूप से दिनों के उपवास से कोई लाभ नहीं होता. यह केवल निराहार रहने की प्रक्रिया है.
कौन सा उपवास रखना सबसे ज्यादा फलदायी है ?
अगर उपवास रखना है तो एकादशी, प्रदोष, पूर्णिमा या अमावस्या का रखना चाहिए. इनमे भी एकादशी का उपवास सर्वोत्तम माना जाता है. अगर नियमित उपवास न रख सके तो साल में दो बार नवरात्रि का उपवास रखें. उपवास जब भी रक्खें, बेहतर होगा कि जल ही ग्रहण करें. अगर फल ग्रहण करना है तो रसदार फल ही ग्रहण करें.