जन्माष्टमी के आयोजन में देश तल्लीन है और इस अवसर पर 358 साल पुराना रांची में स्थित राधा कृष्ण मदन मोहन मंदिर अपने आप में अनूठा है. ये मंदिर द्वापर के गीता के संदेश के साथ सैकड़ों साल से जल संरक्षण का संदेश भी दे रहा है. यहां जन्माष्टमी पर भक्त आते तो हैं विराजमान राधा कृष्ण के मनोरम रूप के दर्शन के लिए लेकिन कई सौ साल पहले का वास्तु और जल संरक्षण यानी जल ही जीवन है का संदेश उन्हें मुग्ध कर देता है.
मंदिर में आते हैं हजारों भक्त
रांची के इस 358 साल पुराने मदन मोहन मंदिर में जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाएगी. लेकिन यहां मंदिर कमिटी के लोग बताते हैं कि जब गीता और द्वापर में भक्ति भाव का संदेश का पाठ पढ़ाया जाता था तो यहां आने वाले हजारों भक्त यहां प्रतिमा की सुंदरता, यहां का वास्तु और मंदिर में जल संरक्षण की व्यवस्था को देखकर दंग रह जाते थे. वाटर हार्वेस्टिंग की ये साढ़े तीन सौ साल पुरानी सोच ये बताती है कि इस मुद्दे पर पहले के लोग आज के लोगों से शायद ज्यादा संजीदा थे.
कभी नहीं देखनी पड़ती पानी की किल्लत
यहां पूजा करने आई गृहणी वीना तिवारी बताती हैं कि देश में भले ही पानी की कमी कहीं हो जाए लेकिन यहां ऐसा कभी नहीं हुआ है. ईश्वर की कृपा ऐसी है कि मंदिर द्वारा जल संरक्षण के संदेश को यहां के लोगों ने ऐसा आत्मसात किया है कि कभी भी पानी की किल्लत नहीं देखनी पड़ती है. जन्माष्टमी में मंदिर के पुजारी और वीना ने बताया कि हजारों भक्त जागरूक होकर जाते हैं और दूसरे लोगों को भी बताते हैं कि जल संरक्षण कितना जरूरी है.
जल की जरूरत पूरा करने के लिए वर्षा पर हैं निर्भर
झारखंड़ को अपनी जल की जरूरत पूरा करने के लिए बारिश के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है. राज्य में 1200 से 1400mm बारिश होती है. लेकिन सरफेस वाटर का 80 प्रतिशत और ग्राउंड वाटर का 74 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है. राज्य में 24 में से 19 जिलों में ग्राउंड वाटर का अति दोहन होता है लिहाजा वाटर लेवल नीचे जा चुका है. ऐसे में कम्युनिटी जल संरक्षण या वाटर हार्वेस्टिंग के तरीके ही संकट से बचा सकती है. इस मुद्दे पर जागरूकता को लेकर भी बहस होते रहती है. लेकिन रांची के बोड़ाया में 358 साल पुराने मदन मोहन मंदिर में उसी वक्त से वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था की गई थी. यानी 358 साल पहले के लोग पानी को बचाने को लेकर वाकई जागरूक थे.
(रिपोर्ट- सत्यजीत कुमार)
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