scorecardresearch

Kaal Bhairav Jayanti 2022: इस दिन मनाई जाएगी कालाष्टमी, पूरे मन से करें काल भैरव की उपासना, दूर होंगी सब परेशानियां

Kalashtami 2022: काल भैरव जयंती को कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है और यह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. इस साल यह 16 नवंबर को मनाई जा रही है.

Kaal Bhairav Jayanti (Photo: Twitter) Kaal Bhairav Jayanti (Photo: Twitter)
हाइलाइट्स
  • 16 नवंबर को है कालाष्टमी

  • काल भैरव के सबसे जागृत मंदिर उज्जैन और काशी में हैं

हम सब जानते हैं कि उज्जैन में काल भैरव की पूजा की जाती है. भैरव यानी भय का हरण करने वाला, जिसके करीब कोई भय भटक भी नहीं सकता हो और कोई बाधा जिसका बाल भी बांका नहीं कर पाती हो. कहा जाता है कि भैरव के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियां समाहित हैं.

महादेव की शक्ति के अंश भैरव की उपासना को बहुत शक्तिशाली माना जाता है. शिव की तंत्र साधना में भैरव का विशेष महत्व है. भैरव महादेव के रौद्र रूप हैं, लेकिन कहीं-कहीं पर इन्हें शिव का पुत्र माना गया है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति शिव के मार्ग पर चलता है उसे भैरव कहते हैं. 

16 नवंबर को है कालाष्टमी
भैरव की उपासना से व्यक्ति के भय और अवसाद का नाश होता है. व्यक्ति के अंदर अदम्य साहस का संचार होता है. कहते हैं कि शनि और राहु की परेशानियों दूर करने के लिए भैरव की आराधना अचूक है. मार्गशीर्ष के पावन महीने में भगवान भैरव की विशेष उपासना कालाष्टमी पर की जाती है.

इसे काल भैरव जयंती के नाम से भी जाना जाता है. और इस बार कालाष्टमी 16 नवंबर को मनाई जा रही है. 

कालाष्टमी पर कैसे करें भैरव पूजा
कालाष्टमी के दिन शाम को भैरव जी की पूजा करें. इनके सामने एक बड़े से दीए में सरसों के तेल का दीपक जलाएं. इसके बाद उड़द या दूध की बनी वस्तुएं उन्हें प्रसाद के रूप में अर्पित करें. विशेष कृपा के लिए इन्हें शरबत या सिरका भी अर्पित करें.

भैरव की उपासना सात्विक ढंग से भी की जा सकती है और तामसिक पूजा के माध्यम से भी उन्हें साधा जा सकता है. तामसिक पूजा करने में भैरव देव को मदिरा भी अर्पित की जाती है. प्रसाद अर्पित करने के बाद भैरव जी के मन्त्रों का जाप करें. 

कई स्वरुप हैं भैरव के 
भैरव के तमाम स्वरुप बताए गए हैं. इनमें असितांग भैरव, रूद्र भैरव, बटुक भैरव और काल भैरव आदि शामिल हैं. बटुक भैरव और काल भैरव स्वरुप की पूजा और ध्यान को सर्वोत्तम माना गया है. बटुक भैरव भगवान का बाल रूप हैं और इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं.

बाल भैरव के सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी होती है. वहीं, काल भैरव इनका साहसिक युवा रूप हैं. इनकी आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है. असितांग भैरव और रूद्र भैरव की उपासना अति विशेष है, जो मुक्ति मोक्ष और कुंडलिनी जागरण के दौरान प्रयोग की जाती है. 

कहां-कहां हैं मंदिर 
भारत में काल भैरव के सबसे जागृत मंदिर उज्जैन और काशी में हैं. जबकि बटुक भैरव का मंदिर लखनऊ में है. इसके अलावा भी सभी शक्तिपीठों के पास भैरव के जागृत मंदिर जरूर होते हैं. 

भैरव कलियुग के जागृत देव और रात के देवता माने जाते हैं. इनकी पूजा का विशेष समय आधी रात को होता है. इनकी आराधना भी बहुत मुश्किल नहीं. लेकिन उपासना में कुछ बातों को लेकर सावधान होना जरूरी है.

इन बातों का रखें ख्याल

  • गृहस्थ लोगों को भगवान भैरव की तामसिक पूजा नहीं करनी चाहिए.
  • आमतौर पर बटुक भैरव की ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि यह सौम्य पूजा है.
  • काल भैरव की पूजा कभी भी किसी का बुरा करने के लिए न करें.
  • काल भैरव की पूजा बिना किसी योग्य गुरु के संरक्षण के न करें.

भैरव के विशेष मंत्र

  • "ॐ भैरवाय नमः"
  • "ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ"
  • "ॐ भं भैरवाय अनिष्टनिवारणाय स्वाहा"

भगवान भैरव के इन मंत्रों का जाप आपको कल्याण के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा. आपसे बुरी शक्तियों को दूर रखेगा. उम्मीद है कि आप इस कालाष्टमी पर भगवान भैरव की आराधना से अपने जीवन में भी सकारात्मक शक्तियों को संचारित कर पाएंगे.