हिंदू धर्म में कजरी तीज का विशेष महत्व है. इस दिन शिव और पार्वती की पूजा होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का त्योहार मनाया जाता है. इसे बूढ़ी तीज, सातूड़ी तीज या कजली तीज भी कहते हैं. आमतौर पर परिवार की विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला तीज वह समय होता है जब भक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करने के लिए सुबह से रात तक उपवास रखते हैं और अपने पतियों और उनके परिवार के सदस्यों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगते हैं. कजरी तीज को हरियाली तीज के पंद्रह दिन बाद, रक्षा बंधन के तीन दिन बाद और कृष्ण जन्माष्टमी के पांच दिन पहले मनाया जाता है.
क्या है मान्यता?
इस साल कजरी तीज 2 सितंबर को मनाई जाएगी. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, कजली नाम का एक जंगल था जहां राजा ददुराई और उनकी रानी अक्सर आया करते थे. राजा-रानी को प्रसन्न करने के लिए लोग कजरी गीत गाते थे. जब राजा की मृत्यु हो गई और रानी उनके साथ सती हो गई, तो जंगल उनके शाश्वत प्रेम का प्रतीक बन गया. तब से, कजरी तीज को पति-पत्नी के बीच साझा प्यार को बढ़ाने के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. कहते हैं कि व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है.
कैसे करते हैं पूजा और शुभ मुहूर्त
कजरी तीज के दिन महिलाएं नीमड़ी की पूजा भी करती हैं. इस दिन गौ माता की पूजा की भी परंपरा है. शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर इस व्रत का पारण किया जाता है. कृष्ण पक्ष का तृतीया तिथि यानी 1 सितंबर को रात 11 बजकर 50 मिनट पर इसकी तिथि प्रारंभ होगी और अगले दिन 2 सितंबर को रात 8 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि मान्य होने के कारण कजरी तीज का त्योहार 2 सितंबर को मनाया जाएगा.कजरी तीज की पूजा का शुभ मुहूर्त 2 सितंबर की सुबह 07 बजकर 57 मिनट से सुबह 09 बजकर 31 मिनट तक रहेगा. इसके बाद रात में पूजा का समय रात 09 बजकर 45 मिनट से रात 11 बजकर 12 मिनट तक रहेगा.
कजरी तीज पूजन विधि
कजरी तीज के दिन सुहागन महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए. इस दिन निर्जल व्रत करना चाहिए, लेकिन अगर कोई महिला गर्भवती हैं तो वह फलाहार कर सकती हैं. कजरी तीज के दिन नीमाड़ी माता की पूजा करनी चाहिए. फिर नीमाड़ी माता को जल, रोली और अक्षत यानी चावल चढ़ाने चाहिए. उसके बाद नीमाड़ी माता को मेंहदी और रोली लगाएं. माता को काजल और वस्त्र अर्पित करें और फल-फूल चढ़ाएं, सारा श्रृ्गांर का सामान चढ़ाएं. उसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव की पूजी भी करनी चाहिए. पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें. इसके बाद घर में मौजूद सभी बड़ी महिलाओं के पैर छूकर आशीर्वाद लें. रात में चांद निकलने से पहले पूरा श्रृंगार कर लें. उपवास करने से पहले आइए जान लेते हैं कि व्रत में करें और क्या नहीं.