सावन महीने की शुरुआत के साथ ही भगवान शिव के भक्तों की वार्षिक तीर्थयात्रा, कांवड़ यात्रा शुरू हो जाती है. इस साल कांवड़ यात्रा 4 जुलाई को शुरू होगी और 15 जुलाई को समाप्त होगी. लाखों भक्त महादेव का आशीर्वाद लेने के लिए उत्तराखंड में हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री, बिहार में सुल्तानगंज, उत्तर प्रदेश में प्रयागराज, अयोध्या और वाराणसी जैसे तीर्थ स्थानों की यात्रा करते हैं और कांवड़ में गंगा जल लेकर लौटते हैं. फिर यह जल भारत भर के 13 ज्योतिर्लिंगों सहित शिव मंदिरों में चढ़ाया जाता है. इस अनुष्ठान को जल अभिषेक के रूप में जाना जाता है.
कांवड़ यात्रा श्रावण माह के पहले दिन शुरू होती है और चंद्र चक्र के घटते चरण के दौरान 14वें दिन चतुर्दशी तिथि पर समाप्त होती है.
कांवड़ यात्रा का इतिहास
रावण को पहला कांवड़िया कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से विष निकला और संसार जलने लगा. संसार को बचाने के लिए भगवान शिव ने जहर पीना स्वीकार किया, इससे वे जहर की नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित होने लगे. त्रेता युग में शिव के परम भक्त रावण ने तप किया था. वह अपनी कांवड़ में पवित्र जल लेकर आए और उसी जल से शिवलिंग का अभिषेक किया. इससे भगवान शिव को अपने अंदर से जहर निकालने में मदद मिली.
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, पहली कांवड़ यात्रा भगवान शिव के परम भक्त भगवान परशुराम ने की थी. कहते हैं कि वे पुरा (वर्तमान में उत्तर प्रदेश में) से गुजरते समय, उन्होंने देवता को समर्पित एक मंदिर की नींव रखने का फैसला किया. वे श्रावण के प्रत्येक सोमवार को पूजा के लिए गंगा से जल लाकर चढ़ाते थे.
क्या है इसका महत्व
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव का आशीर्वाद जीवन के हर बड़े संकट से निपटने में मदद कर सकता है. ऐसा माना जाता है कि अगर कोई पूरी श्रद्धा और सच्ची भावना के साथ उन्हें एक गिलास पानी भी अर्पित करता है, तो उस व्यक्ति पर उनकी कृपा बनी रहती है. यही कारण है कि हर साल भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति दिखाने के लिए कांवड़ यात्रा निकालते हैं.
पूरी यात्रा के दौरान कांवड़ियों को यह सुनिश्चित करना होता है कि मिट्टी के बर्तन जमीन को न छुएं. जल ले जाते समय, भक्त नंगे पैर चलते हैं, और कुछ भक्त तो जमीन पर लेटकर तीर्थयात्रा पूरी करते हैं. यात्रा के दौरान वे भगवा वस्त्र पहनते हैं. तीर्थयात्रा के दौरान कई लोग उपवास रखते हैं. कहते हैं कि इस यात्रा को करने वाले मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उनकी मनोकामाएं पूरी होती हैं.