Kanwar Yatra 2024: एक बार फिर से कांवड़ यात्रा शुरू हो गई है. सावन के पहले सोमवार यानी 22 जुलाई से कांवड़ यात्रा 2024 की शुरुआत हो गई है.
शिव भक्त कांवड़ यात्रा पर निकल रहे हैं. देश के कई राज्यों से शिव भक्त कांवड़िए बम-बम भोले, हर-हर महादेव और बोल बम जैसे नारे लगाते हुए इस धार्मिक यात्रा पर निकल पड़े हैं.
हर साल कांवड़िए अपने घर से कांवड़ लेकर गंगा नदी के तट पर जाते हैं. गंगा में स्नान करते हैं और कलश में गंगा जल भरते हैं. इसके बाद अपने-अपने इलाके में आकर शिवालय पर जल चढ़ाते हैं.
बीते कुछ सालों में कांवड़ा यात्रा हिंदू धर्म की एक बेहद महत्वपूर्ण यात्रा बन गई है. कांवड़ यात्रा लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गई है. इस धार्मिक यात्रा को ज्यादातर पुरुष करते हैं.
लोग भगवा रंग के कपड़े पहनकर रंगे बिरंगी पताकों, झंडे और फूलों से सजी कांवड़ बांस को लेकर पैदल चलते हैं. आइए जानते हैं बीते सालों में कांवड़ा यात्रा इतनी पॉपुलर कैसे हो गई?
क्या है कांवड़ यात्रा का महत्व?
हिन्दू धर्म की मान्यता के मुताबिक, माना जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव को आसानी से खुश किया जा सकता है.
कहा जाता कि भगवान शिव को बहुत जल्दी गुस्सा आता है लेकिन सावन में सिर्फ एक लोटा जल चढ़ाकर भगवान शिव को खुश किया जा सकता है. लाखों श्रद्धालु भगवान शिव को खुश करने के लिए कांवड़ यात्रा करते हैं.
कांवड़ यात्रा को नंगे पैर किया जाता है. पहले इस यात्रा को सिर्फ पैदल चलकर ही किया जाता था. हालांकि, अब बड़ी संख्या में लोग गाड़ियों से भी कांवड़ यात्रा करते हैं. कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ को नीचे नहीं रखना होता है.
हरिद्वार में कांवड़िए
मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि शिव भक्त भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने पहली बार इस यात्रा को किया था. हर साल लाखों लोग कांवड़ यात्रा करते हैं.
आंकड़े के अनुसार, साल 2022 में सिर्फ हरिद्वार में 4 करोड़ कांवड़ियों ने गंगा नदी से जल लिया था. इसमें 21 लाख महिलाएं भी थीं. उस साल सावन के दौरान 4 जुलाई से 15 जुलाई के बीच हरिद्वार में लगभग 46 लाख गाड़ियां आईं थीं.
कांवड़ यात्रा के इस आंकड़े से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांवड़ यात्रा एक बेहद महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा बन चुकी है. कांवड़ा यात्रा में कांवड़िए गंगा से जल भरकर सैकड़ों किलोमीटर दूर ले जाकर भगवान शिव के मंदिरों में चढ़ाते हैं. कांवड़ यात्रा की वजह से हरिद्वार समेत कई जगहों पर लंबा जाम लगता है.
साल 2022 में कांवड़ यात्रा में लगभग 13 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. इनमें से 3 श्रद्धालुओं की मौत डूबने से हुई थी. इस साल फिर से करोड़ों कांवड़िए इस धार्मिक यात्रा को करेंगे.
क्यों हुई पॉपुलर?
कांवड़ यात्रा में आज बहुत ज्यादा भीड़ होती है लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. 80 के दशक में कांवड़ यात्रा करने वालों की संख्या सिर्फ हजारों में जाती थी. 90 के दशक में कांवड़ यात्रा को ज्यादा लोग करने लगे.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 80-90 के दशक में कांवड़ यात्रा के दौरान लोग कांवड़ लेकर शांति से चलते थे. अब कांवड़ यात्रा काफी बदल गई है.
कांवड़ यात्रा में अब नौजवान लोग तेज आवाज में गाना बजाकर डांस करते हुए सड़कों पर दिखाई देते हैं. कांवड़ा यात्रा करने वाले ज्यादातर कांवड़िए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान से कम इनकम वाले फैमिली से होते हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कांवड़ा यात्रा लोगों को रोजमर्रा की एक जैसे डेली रूटीन और अनिश्चितताओं से दूर भागने का मौका देती है.
कांवड़ यात्रा में ऐसे लोग अपने टैलेंट और फिजिक्ल स्ट्रेंथ को दिखा पाते हैं. इस यात्रा को करने वाले ज्यादातर लोग यहीं कहते हैं कि भोले ने मुझे बुलाया है.
कांवड़ की इकॉनोमी
कांवड़ यात्रा एक तीर्थ यात्रा तो है. साथ में कांवड़ यात्रा देश और लोगों की इकॉनोमी को भी बढ़ाती है. कांवड़ा यात्रा से हर साल हजारों खाने-पीने की दुकान वाले, कपड़े बेचने वाले और कांवड़ बेचने वालों को बहुत फायदा होता है.
हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक कांवड़िया कांवड़ा यात्रा में औसतन 3-4 हजार रुपए खर्च कर देता है.
कांवड़ यात्रा एक बार फिर से शुरू हो गई है. हर साल की तरह लाखों श्रद्धालु इस यात्रा को करेंगे. कई राज्य सरकारों ने कांवड़ यात्रा करने वाले शिव भक्तों की सुविधा को देखते हुए इंतजाम कर लिए हैं.