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BAPS Swaminarayan Sanstha: अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया समेत दुनियाभर में 1100 से अधिक मंदिर, अब Abu Dhabi में बनाया भव्य मंदिर... जानिए स्वामीनायराण संस्था की कहानी

BAPS यानी बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था ने अबू धाबी में भव्य हिंदू मंदिर का निर्माण किया है. इस मंदिर को बनाने में करीब 700 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. दुनियाभर में इस संस्था के 1100 से अधिक मंदिर हैं. इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देश भी शामिल हैं.

BAPS built a temple in Abu Dhabi BAPS built a temple in Abu Dhabi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) 14 फरवरी को अबू धाबी (Abu Dhabi) में भव्य मंदिर का उद्घाटन करेंगे. यह संयुक्त अरब अमीरात (UAE) का सबसे बड़ा मंदिर है. 27 एकड़ में फैले इस मंदिर को बनाने में 700 करोड़ का खर्च आया है. इस मंदिर का निर्माण बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (BAPS) ने कराया है. चलिए आपको इस संस्था और इसकी शुरुआत की पूरी कहानी बताते हैं.

दुनिया में BAPS के 1100 मंदिर-
बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था यानी BAPS एक हिंदू धार्मिक संगठन है. इसकी शुरुआत 19वीं शताब्दी में स्वामीनारायण ने की थी. इसका मुख्यालय अहमदाबाद में है. दुनियाभर में इस संस्था के एक हजार से अधिक मंदिर हैं. देश में इस संस्था के मंदिर हैदराबाद, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में हैं. जबकि विदेश में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फिजी, अबू धाबी जैसे जगहों पर स्वामीनारायण संप्रदाय के मंदिर हैं. BAPS मुफ्त में स्कूल और अस्पताल का संचालन भी करता है. संस्था का मानना है कि मंदिर एक ऐसा माहौल देता है, जहां मन शांत रहता है.

BAPS भारत में रजिस्टर्ड और चैरिटेबल ट्रस्ट है. ये संस्था प्राकृतिक आपदाओं के समय भी राहत कामों में सक्रिय रहता है. 1970 के दशक में अकाल, 1993 में लातूर और महाराष्ट्र में भूकंप, 2001 में कच्छ में भूकंप, 2004 में सुनामी जैसे प्राकृतिक आपदाओं के समय भी ये संस्था राहत कार्यों में आगे रही.

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अयोध्या का एक लड़का बना स्वामीनारायण-
साल 1781 में अयोध्या के छपिया में हरिप्रसाद पांडेय के घर एक लड़के का जन्म हुआ. माता-पिता ने उस लड़के का नाम घनश्याम पांडेय रखा. 11 साल की छोटी सी उम्र में घनश्याम पांडेय के माता-पिता का निधन हो गया. इसके बाद घनश्याम पांडेय ने घर छोड़ दिया और देशभर में घूमने लगे. इस दौरान उनकी मुलाकात साधक गोपाल योगी से हुई. उन्होंने घनश्याम पांडेय को अष्टांग योग सिखाया. उनको नीलकंठ वर्णी नाम दिया गया. इसके बाद स्वामी रामानंद ने नीलकंठ वर्णी को दीक्षा दी. स्वामी रामानंद ने उनको सहजानंद नाम दिया. आगे चलकर सहजानंद ही स्वामी रामानंद के उत्तराधिकारी बने और संप्रदाय के आचार्य के पद पर आसीन हुए.

सहजानंद देशभर में घूम-घूमकर नारायण मंत्र का जाप करने लगे. इस दौरान वो गुजरात भी पहुंचे. यहीं पर उन्होंने एक संप्रदाय का स्थापना की. यहां पर एक फिर सहजानंद को उनके शिष्यों ने नया नाम दिया. इस बार उनको पुरुषोत्तम नारायण कहा गया. पुरुषोत्तम नारायण और उनके शिष्य जरूरतमंदों की सेवा करने लगे. लोग भी उनके साथ जुड़ने लगे. उनको भगवान का अवतार मानने लगे. लोगों ने उनको स्वामी नारायण (Swami Narayan) नाम दिया.

दो हिस्सों में बंट गया संप्रदाय-
इस संप्रदाय के लोगों ने सबसे पहले साल 1822 में गुजरात के अहमदाबाद में एक मंदिर का निर्माण किया. ये मंदिर 24 फरवरी 1822 के दिन बनकर तैयार हुआ था. इसलिए स्वामीनारायण संप्रदाय के लिए ये दिन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.

इस बीच संप्रदाय में स्वामी नारायण की फैमिली की एंट्री हुई. स्वामीनारायण ने अयोध्या से अपने दो भतीजों को बुलाया. एक भतीजे को वडताल और दूसरे को कालूपुर की गद्दी पर बिठाया. लेकिन संप्रदाय के लोगों ने इसका विरोध किया और संप्रदाय दो हिस्सों में बंट गया. घनश्याम पांडेय के खेमे ने वंश परंपरा और दूसरे खेमे ने साधु परंपरा को स्वीकार किया. साल 1907 में साधु परंपरा के शास्त्री महाराज ने बोचासनवासी अक्षय पुरुषोत्तम संप्रदाय की शुरुआत की.

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