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हिमालय की पुत्री है मां शैलपुत्री...सती के नाम से भी है पहचान, जानें क्या है पूरी कहानी

मां शैलपुरी का वास काशी नगरी में माना जाता है. वहां मां का एक बेहद प्राचीन मंदिर है. जिसके बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन करने से ही भक्तजनों की मुरादें पूरी हो जाती हैं.

हिमालय की पुत्री है मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री है मां शैलपुत्री
हाइलाइट्स
  • सती के नाम से भी है शैलपुत्री की पहचान

  • वाराणसी को माना जाता है शैलपुत्री की नगरी

नवरात्रि के 9 दिन भक्ति और श्रद्धा के दिन होते हैं. नौ दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है. माना जाता है कि शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं और हिमालय पर्वतों का राजा है. वह बहुत अडिग है, और उसे कोई हिला नहीं सकता. जब हम भक्ति का रास्ता चुनते हैं तो हमारे मन में भी इसी तरह का अडिग विश्वास होना चाहिए. तभी हम पर ईश्वर की कृपा बरसेगी. इसी वजह से नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है. आइए आपको शैलपुत्री की कहानी के बारे में बताते हैं. 

मां शैलपुत्री की कहानी
मां शैलपुत्री को सती के नाम से भी जाना जाता है. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला लिया. उन्होंने देवलोक के देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया, लेकिन भगवान शिव को नहीं. देवी सती को पूरा विश्वास था कि उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वो उस यज्ञ में जाना चाहती थीं, लेकिन भगवान शिव ने न्यौता न मिलने के कारण उन्हें मना कर दिया. सती ने शिव की बात नहीं मानी और बार-बार यज्ञ में जाने का आग्रह करने लगीं. अंत में भगवान शिव को उनकी बात माननी पड़ी और अनुमति दे दी.

सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष के घर पहुंची तो देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बात नहीं कर रहा है. सभी लोग उनसे  मुँह फेरे हुए हैं. केवल उनकी माता ने उन्हें स्नेह से गले लगाया. सती की बहनें भी उनका उपहास उड़ा रही थी, और भगवान शिव का तिरस्कार कर रही थीं. यहां तक की स्वयं दक्ष ने भी अपमान करने का मौका ना छोड़ा. ये सब देखकर सती से रहा नहीं गया, उनसे अपने पति का अपमान सहा नहीं गया, और उन्होंने ऐसा कदम उठा लिया जिसकी दक्ष ने कल्पना भी नहीं की होगी.

सती ने यज्ञ की अग्नि ने खुद को स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए. भगवान शिव को जैसे ही इस बारे में पता चला वो गुस्से की ज्वाला में जलते हुए वहां पहुंचे और उन्होंने उस यज्ञ को ध्वस्त कर दिया. सती ने दोबारा हिमालय के यहां जन्म लिया और वहां जन्म लेने की वजह से उनका नाम शैलपुत्री पड़ गया.

वाराणसी को माना जाता है शैलपुत्री की नगरी
मां शैलपुरी का वास काशी नगरी में माना जाता है. वहां मां का एक बेहद प्राचीन मंदिर है. जिसके बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन करने से ही भक्तजनों की मुरादें पूरी हो जाती हैं. कहा जाता है कि नवरात्र के पहले दिन जो भी भक्त मां शैलपुत्री के दर्शन करता है उसके सारे वैवाहिक जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं.