बांग्लादेश में इस्कॉन मंदिरों को लेकर काफी बवाल मचा है. वहां के प्रदर्शनकारी इस्कॉन पर प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हाईकोर्ट में इस्कॉन को एक ‘धार्मिक कट्टरपंथी’ समूह कहते हुए बैन लगाने की मांग उठाई है.
हालांकि बांग्लादेश में इस्कॉन पर बैन नहीं लगेगा. ढाका हाईकोर्ट ने बांग्लादेश में इस्कॉन पर बैन लगाने की याचिका को गुरुवार को खारिज कर दिया. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) की स्थापना कैसे हुई थी? किसने की थी इसकी स्थापना? पहला ISKCON मंदिर कहां बना था?
ISKCON मंदिर की स्थापना कैसे हुई?
इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस को इस्कॉन के नाम से जाना जाता है. इस सोसाइटी की स्थापना भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने साल 1966 में की थी. स्वामी प्रभुपाद का जन्म कोलकाता में हुआ था. उनके बचपन का नाम अभय चरण दे था. वह भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे. कृष्ण भक्ति की वजह से ही उन्होंने गौड़ीय संप्रदाय के अभिलेख लिखने का काम शुरू किया.
इस काम का उन पर इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने हरे कृष्ण मूवमेंट शुरू करने का मन बना लिया. इसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क सिटी में इस्कॉन मंदिर की स्थापना की थी. वह भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ही थे, जिन्होंने संन्यास लेने के बाद पूरी दुनिया में 'हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे... का प्रचार-प्रसार किया.
ISKCON के 'हरे कृष्ण मूवमेंट' की ऐसी हुई शुरुआत
1965 में स्वामी प्रभुपाद अकेले ही अमेरिका की यात्रा पर निकल गए. उन्होंने एक साल तक 'हरे कृष्ण मूवमेंट'को स्थापित करने के लिए संघर्ष किया. उन्हें जहां मौका मिलता था, वह अपना प्रवचन देते थे. उनके ज्ञान से लोग प्रभावित होने लगे. फिर 1966 में भक्तिवेदांत स्वामी ने एक आध्यात्मिक समाज की स्थापना की. उन्होंने इसका नाम ISKCON दिया. इस तरह से अमेरिका में 'हरे कृष्ण मूवमेंट की शुरुआत' हुई. इस मूवमेंट का मकसद लोगों को भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को जागृत करने और उन्हें कृष्ण के दिव्य नाम का जप करने के लिए प्रेरित करना था.
क्या है ISKCON का उद्देश्य?
ISKCON का उद्देश्य है कि देश-दुनिया के लोग इसके जरिए भगवान से जुड़ें. इसका मकसद जीवन में संतुलन बनाए रखना है और दुनिया में वास्तविक एकता और शांति बनी रहे इसके लिए आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करना है. इसका मकसद है कि लोग हिंसा का त्याग कर भगवान कृष्ण की तरह दुनिया में प्रेम बांटे.
ISKCON का पहला मंदिर
जिस साल ISKCON की स्थापना हुई, उसी साल 1966 में इसका पहला मंदिर अमेरिका के न्यूयॉर्क में बना. भारत में ISKCON का पहला मंदिर श्रीकृष्ण की जन्म भूमि वृंदावन में बना था. इस मंदिर का निर्माण 1975 में हुआ था. इसे कृ्ष्ण-बलराम मंदिर के नाम से जाना जता है. आज भारत में जहां 400 से ज्यादा ISKCON मंदिर हैं, वहीं पूरी दुनिया में इस्कॉन मंदिरों की संख्या1000 से ज्यादा है. भारत में बेंगलुरु का ISKCON मंदिर सबसे बड़ा है.
दुनियाभर में इस्कॉन कैसे चलता है?
इस्कॉन का कोई मालिक नहीं है. 1977 में इसके संचालन के लिए श्रीलाल प्रभुपात ने एक ग्रुप बनाया था, जिसे गवर्निंग बॉडी कमीशन के नाम से जाना जाता है. हर साल इसकी बैठक पश्चिम बंगाल के मायापुरा में होती है और वोटिंग के जरिए प्रस्ताव पास किया जाता है. इस्कॉन का हर मंदिर अपना काम-काज खुद देखता है.
51 साल में इस्कॉन का प्रसार
दुनिया भर में इस्कॉन का प्रचार काफी तेजी से हुआ है. 51 साल में ISKCON दुनिया में एक प्रमुख धार्मिक संस्था बन गई है. आज दुनिया भर में ISKCON के 550 बड़े सेंटर, मंदिर और ग्रामीण समुदाय हैं. इससे जुड़े 100 शाकाहारी रेस्तरां हैं. इसके अलावा हजारों नामहट्टा या लोकल मीटिंग ग्रुप्स हैं. दुनिया भर में ISKCON के लाखों मंडली सदस्य हैं.
क्या करते हैं इस्कॉन के सदस्य?
इस्कॉन के सदस्य अपने घरों में भक्ति-योग का अभ्यास करते हैं और मंदिरों में पूजा करते हैं. इनके सदस्यों को तामसिक भोजन जैसे लहसुन, प्याज, मांस-मदिरा आदि से दूर रहना होता है. ये लोग योग सेमिनार, फेस्टिवल, सामूहिक जप और किताबों के द्वारा कृष्ण चेतना को बढ़ावा देते हैं. इनके सदस्यों ने स्कूल, कॉलेज, इको-विलेज, फ्री फूड डिस्ट्रिब्यूशन और दूसरे संस्थान खोले हैं.
कई स्कूलों का संचालन करता है इस्कॉन
दुनिया भर में इस्कॉन मंदिर वयस्क शैक्षिक कार्यक्रम चलाते हैं. बच्चों के लिए संडे स्कूल भी चलाते हैं. इसके दो कॉलेज भी हैं, जिसे सरकारी मान्यता प्राप्त है.ये भक्तिवेदांत कॉलेज बेल्जियम और हंगरी में हैं. UK में सरकार की मदद से चलने वाला पहला वैदिक स्कूल है. भारत में भी ISKCON बच्चों के लिए स्कूल चलाता है. ये स्कूल यूपी के वृंदावन और पश्चिम बंगाल के मायापुरा में हैं.
फ्री भोजन की व्यवस्था भी करता है इस्कॉन
इस्कॉन आज दुनिया भर में 60 से ज्यादा देशों में रोजाना लाखों लोगों को फ्री में भोजन परोसता है. साल 1972 में स्वामी प्रभुपाद ने कहा था कि ISKCON के 10 मील के भीतर किसी को भी भूखा नहीं रहना चाहिए. भारत में इस्कॉन का फूड फॉर लाइफ प्रोग्राम अन्नामृता के नाम से जाना जाता है.
गो सेवा है इस्कॉन का अहम हिस्सा
इस्कॉन जगह-जगह गौशालाएं चलाता है. गौशालाओं में गायों को हेल्दी चारा खिलाया जाता है और उनकी देखभाल की जाती है. इस्कॉन का मानना है कि गाय की रक्षा करना सबसे बड़ा धर्म है.
विवादों से भी है इस्कॉन का नाता
इस्कॉन से कई विवाद भी जुड़े हैं. इसपर धर्म के नाम पर ब्रेनवॉश का आरोप लगते रहे हैं. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने इस्कॉन पर धर्मांतरण का आरोप लगाया था.