लगभग 100 साल से भी ज्यादा समय के बाद कनाडा से मां अन्नपूर्णा की मूर्ति भारत लायी गयी है. देवी की प्रतिमा को धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी की सरजमीं पर पहुंचाया गया है. माना जाता है 100 साल पहले इसी जगह से यह मूर्ति चोरी हुई थी. आपको बता दें, देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति की ऊंचाई 17 सेमी, चौड़ाई 9 सेमी और मोटाई 4 सेमी है.
चलिए जानते हैं आखिर कौन हैं देवी अन्नपूर्णा और हिन्दू धर्म में इनका क्या महत्व है......
हिन्दू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी देवता माने गए हैं. इन सबका अपना अलग-अलग महत्व है. इसी में एक देवी हैं, मां अन्नपूर्णा. पौराणिक कथाओं के अनुसार, अन्नपूर्णा देवी को मां जगदम्बा का ही रूप माना गया है. ऐसा माना जाता है कि मां जगदम्बा इस संसार का संचालन करती हैं और अन्नपूर्णा स्वरूप से मां संसार का भरण-पोषण करती है. अन्नपूर्णा के शाब्दिक अर्थ की बात करें, तो यह अन्न+पूर्ण अन्न की पूर्ति करवाने वाली या अन्न की अधिष्ठात्री. माता की मूर्ति की बात करें, तो उनके एक हाथ में कटोरा है और दूसरे हाथ में चम्मच.
क्या कहती है पौराणिक कथाएं?
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार धरती अचानक से बंजर हो गई, हर जगह अन्न और जल का अकाल पड़ गया. तब पृथ्वी पर लोग जगतकर्ता ब्रह्मा और भगवान विष्णु की आरधना करने लगे. इसके बाद भगवान ब्रह्मा और विष्णु सभी ऋषियों के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंचे और सभी ने भोलेनाथ से इस संकट को दूर करने की प्रार्थना की. तब भोलेनाथ ने माता पार्वती के साथ पृथ्वी लोक का भ्रमण किया. वहां की स्थिति देखकर मां पार्वती ने देवी अन्नपूर्णा का रूप लिया और और भगवान शिव ने एक भिक्षु का. कहा जाता है कि इसके भोलेनाथ ने मां से भिक्षा लेकर पृथ्वी वासियों में उसे वितरित कर दिया. और इसके बाद से कभी भी पृथ्वी पर अन्न और जल का अकाल नहीं पड़ा.
माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा पुनः अपने काशी धाम में 108 वर्षों के बाद देवोत्थान एकादशी के दिन विराजमान हुई है।
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 15, 2021
आज काशी में उत्सव जैसा माहौल है।
आप सभी को हृदय से बधाई एवं शुभकामनाएं! pic.twitter.com/rLp8OM2Uzp
पहले भारत की मूर्तियां तस्करी कर दुनिया के अन्य देशों में पहुंचा दी जाती थीं, इससे भारत की आस्था आहत होती थी। मगर अब आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के नेतृत्व में ढूंढ-ढूंढ कर मूर्तियों को वापस भारत लाया जा रहा है।
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 15, 2021
आज भी लोगों की यही मान्यता है, इसलिए कई घरों में माँ अन्नपूर्णा को भोजन से पहले भी पूजा जाता है.
भगवान शिव ने जब नकारा भोजन का महत्व
कुछ और कथाओं के अनुसार, हिंदू देवता शिव ने भोजन के महत्व को नकार दिया था, उन्होंने इसे एक ब्रह्मांडीय भ्रम बताया. यह सुनकर उनकी पत्नी, देवी पार्वती, परेशान हो गईं. भगवान शिव को यह सिखाने के लिए कि भोजन जीवन का एक अभिन्न अंग है, उन्होंने खुद को उनकी आंखों के लिए अदृश्य बना दिया, और उनके साथ पृथ्वी से भोजन और पोषण के सभी स्रोत गायब हो गए. अंत में, शिव को भोजन के महत्व का एहसास हुआ; अपने हाथों में एक भीख का कटोरा पकड़े हुए, उन्होंने अपनी पत्नी पार्वती से भिक्षा के रूप में भोजन की भीख मांगी और इसीलिए उनका दूसरा रूप अन्नपूर्णा कहलाता है,
स्थनीय लोगों की आज भी यही मान्यता है कि काशी की रानी होने के नाते, अन्नपूर्णा देवी यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके शहर में कोई भी भूखा न रहे.
मूर्ति मूल रूप से वाराणसी की है
18वीं शताब्दी की यह मूर्ति, कनाडा के ओटावा में भारत के हाई कमिश्नर अजय बिसारिया को एक कार्यक्रम में सौंपी गई. यह मूर्ति मूल रूप से वाराणसी की है और यह कई दशकों से मैकेंजी आर्ट गैलरी में यूनिवर्सिटी कलेक्शन का हिस्सा थी.
आपको बता दें, नॉर्मन मैकेंज़ी द्वारा 1936 की वसीयत के हिस्से के रूप में इस मूर्ति को गैलरी कलेक्शन में जोड़ा गया था, जिसके नाम पर इसका नाम रखा गया है. हालांकि, रिपोर्ट्स के अनुसार, मैकेंजी साल 1913 में भारत की यात्रा के बाद इसे वापस लाये थे.
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