भगवान श्रीकृष्ण की महिमा और उनकी लीला को भला कौन नहीं जानता. द्वापर युग में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में आए श्रीकृष्ण ने कई लीलाएं रची. वे विष्णु के दस में से आठवें अवतार थे. इसी अवतार में उन्होंने गीता का उपदेश दिया जो जीवन जीने की सही ढंग को सिखाती है. आपने कथाओं में भगवान श्रीकृष्ण की शक्तियों के बारे में पढ़ा और सुना होगा. वे 64 कलाओं में दक्ष थे. जो चाहे जब चाहे कर सकते थे. लेकिन एक ऐसा भी मौका आया जब उनको रणभूमि छोड़ देना पड़ा. इसके बाद उनका नाम रणछोड़ पड़ गया. ऐसे में आपके मन में उत्सुकता होगी कि भगवान श्रीकृष्ण को आखिर क्यों रणभूमि छोड़ना पड़ा. तो चलिए आपको इसके पीछे की कहानी बताते हैं.
श्रीकृष्ण को मगध के राजा जरासंध ने युद्ध के लिए ललकारा था
मगध के राजा जरासंध की इच्छा थी कि वह एक यज्ञ करेगा और उस यज्ञ में पशुओं के बजाय 100 राजाओं की बलि देगा. इसलिए उसने एक एक कर राजाओं से युद्ध किया और कई राजाओं को हराकर उन्हें बंदी बना लिया. इसके बाद उसने भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा. लेकिन श्रीकृष्ण से युद्ध करने के लिए उसने यवन देश के राजा कालयवन को अपने साथ मिला लिया. राजा कालयवन को भगवान शंकर से वरदान प्राप्त था कि कोई उसे पराजित नहीं कर सकता. ऐसे में उसे हराना नामुमकिन सा था और यह बात श्रीकृष्ण जानते थे.
गुफा में जाकर छिप गए थे श्रीकृष्ण
राजा कालयवन को प्राप्त वरदान की वजह से उसे न तो कोई हथियार से ही मार सकता था और न ही कोई अपने बल से हरा सकता था. वह खुद को अजेय अमर समझने लगा था. ऐसे में श्रीकृष्ण ने युद्धभूमि छोड़ने का फैसला किया और एक गुफा में जाकर छिप गए. संयोग से उस गुफा में दक्षिण कोसल के राजा मुचकुंद सो रहे थे. राजा मुचकुंद असुरों के साथ कई दिनों तक चले युद्ध में देवताओं को जीत दिलाई थी. युद्ध के बाद वो काफी थक गए थे इसलिए उन्होंने भगवान इंद्र से बिना बाधा के गहरी नींद में सोने का वरदान मांगा. इंद्र ने इसके साथ राजा मुचकुंद को एक वरदान भी दिया कि अगर कोई उन्हें नींद से जगाएगा तो उनकी आंख खुलते ही जगाने वाला भस्म हो जाएगा.
गुफा में जाने के बाद दिखाई चतुराई
कृष्ण जब गुफा में पहुंचे तो धीरे से अपना पीताम्बर सो रहे मुचकुंद पर डाल दिया. कालयवन यहां गलती कर गया और श्रीकृष्ण समझ कर मुचकुंद की निद्रा में खलल डाल दिया. मुचकुंद ने जैसे ही आंख खोली कालयवन जलकर भस्म हो गया.
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