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Dussehra 2023: देश के इन शहरों में अनोखे तरह से मनाया जाता है दशहरा, सेलिब्रेशन देखने विदेशों से आते हैं सैलानी, जानिए यहां की खासियत

देश के कई जगहों पर दशहरा को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है, जिसमें विजयदशमी, दशहरा, दशईं नाम शामिल हैं. दशहरा हर साल नवरात्रि के अंत में मनाया जाता है. देश के किस राज्य में दशहरे का त्योहार कैसे मनाते हैं आइए जानते हैं.  

दशहरा 2023 दशहरा 2023
हाइलाइट्स
  • दशहरे के दिन भगवान राम ने किया था रावण का वध

  • देश में धूमधाम से मनाया जाता है दशहरे का पर्व

दशहरा यानी विजयादशमी का पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. इस बार यह पर्व 24 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था. इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में भी मनाया जाता है. आइए आज जानते हैं देश के किस शहर में दशहरा कैसे मनाया जाता है. 

कैसे मनाते हैं देश के विभिन्न जगहों पर दशहरा 
बंगाल, ओडिशा और असम में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है. यह पर्व पूरे बंगाल में पांच दिनों के लिए मनाया जाता है. ओडिश और असम में चार दिन तक त्योहार चलता है. यहां देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पंडालों में विराजमान करते हैं.

गुजरात में मिट्टी सुशोभित रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं, जिसे गरबा कहा जाता है. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन  देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा की जाती है. महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं, जबकि दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है.

क्यों खास है मैसूर का दशहरा
मैसूर का दशहरा अन्य जगहों के दशहरों से अलग है, क्योंकि यहां न राम होते हैं और न ही रावण का पुतला जलाया जाता है. बल्कि देवी चामुंडा के राक्षस महिसासुर का वध करने पर धूमधाम से दशहरा मनाया जाता है. यहां दशहरा समारोह का आयोजन नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन से ही शुरू हो जाता है. लगभग 10 दिन तक चलने वाले इस त्योहार में लाखों की तादाद में पर्यटकों का जमावड़ा लगता है. इस उत्सव की शुरुआत देवी चामुंडेश्वरी मंदिर में पूजा-अर्चना से शुरू होती है. 

मैसूर के इस दशहरे का इतिहास सदियों पुराना है. कहा जाता है कि चौदहवी शताब्दी में सबसे पहली बार हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने नवरात्रि का उत्सव मनाया था. इसके बाद वाडियार राजवंश के शासक कृष्णराज वडियार ने इसे दशहरे का नाम दिया और तब से 10 दिन के उत्सव की परंपरा चली आ रही है. 

छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर में  रथ यात्रा निकाल मनाया जाता है दशहरा 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बस्तर में ही भगवान राम ने अपना वनवास व्यतीत किया था. जिसके चलते बस्तर के जगदलपुर जिले में स्थित दंतेश्वरी मंदिर में दशहरा का भव्य आयोजन किया जाता है. साथ ही यहां रावण के वध के बजाए रथ यात्रा निकालकर दशहरा मनाया जाता है.

कुल्लू
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा देश और दुनिया में प्रसिद्ध है. कुल्लू में पहली बार दशहरा साल 1660 में मनाया गया था. उस समय वहां राजा जगत सिंह का शासन था. कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलने के कारण उन्होंने दशहरा मनाने की घोषणा की. कहा जाता है कि इस उत्सव में शामिल होने के लिए 365 देवी-देवताओं ने शिरकत की थी. यहां पर दशहरे की शुरुआत भगवान रघुनाथ के भव्य रथयात्रा के साथ शुरू होती है. इस दौरान यात्रा के साथ देवी-देवताओं के भी रथ चलते हैं. कहा जाता है कि यहां देवी-देवता एक दूसरे से मिलने के लिए भी आते हैं. यहां का दशहरा देव मिलन के रूप में भी मनाया जाता है. कुल्लू के दशहरे को देखने के लिए देश-विदेश से भारी संख्या में लोग आते हैं.

कोलकाता
पश्चिम बंगाल में दशहरे का त्योहार पूरे धूमधाम से मनाया जाता है. यहां दुर्गा पूजा का एक अलग ही महत्व है. नवरात्रि के दिनों में बंगाल के अलग-अलग जगहों पर पूजा पंडाल भव्यता के साथ बनाया जाता है. पश्चिम बंगाल में दशहरा के अंतिम दिन सिन्दूर खेला का बहुत ही पुरानी परंपरा रही है, जिसमें महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और मिठाई खिलाती हैं. मां की विदाई के खुशी में सिंदूर खेला मनाया जाता है. महाआरती के बाद विवाहित महिलाएं देवी के माथे और पैरों पर सिंदूर लगाती हैं फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाने की परंपरा है.

वाराणसी
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में दशहरे को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. यहां पर रामलीला का आयोजन होता है और हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां के रामलीला को देखने दूर-दूर से आते हैं. वाराणसी में रामलीला के दौरान अयोध्या, लंका और अशोक वाटिका के दृश्य को बनाया जाता है. यहां पर कई कलाकार रामलीला का पाठ करते हैं और अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. वाराणसी में रावण के खानदान के कई सदस्यों के पुतले का दहन किया जाता है. यहां पर रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले का दहन किया जाता है

दिल्ली का रामलीला मैदान
देश की राजधानी दिल्ली में भी दशहरा जोर-शोर से मनाया जाता है. पुरानी दिल्ली के रामलीला मैदान में दशहरे के दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाथ का एक साथ पुतला फूंका जाता है. दिल्ली के रामलीला मैदान में दशहरे के दिन मेला लगता है, जिसका आनंद लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.  

मदिकेरी 
दक्षिण भारत में भी दशहरा का पर्व काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. कर्नाटक में मौजूद मदिकेरी इसका बेस्ट उदाहरण है. मदिकेरी में दशहरा की तैयारियां तीन महीने पहले ही शुरू हो जाती हैं. जिसके बाद इस शहर में दशहरा का भव्य आयोजन किया जाता है.

कोटा 
राजस्थान के कोटा जिले में भी दशहरा का फेस्टिवल खासा फेमस है. दशहरा पर यहां भव्य मेला लगने के साथ-साथ भजन-कीर्तन और कई कॉम्पटीशन आयोजित किए जाते हैं. वहीं दशहरा के दौरान देश-विदेश से कई टूरिस्ट भी कोटा के दशहरा का लुत्फ उठाने आते हैं.

जोधपुर में मनाया जाता है रावण के मरने का शोक
हिंदू मान्यता के अनुसार राजस्थान के जोधपुर जिले के मंडोर में ही लंकापति रावण का विवाह मंदोदरी से हुआ था. मान्यता है कि रावण की बारात में श्रीमाली समाज के गोदा गोत्र वाले लोग भी यहां आए थे और वापस लौटकर नहीं गए. मान्यता है कि यहां पर निवास करने वाले श्रीमाली समाज के लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं और रावण और मंदोदरी दोनों की पूजा करते हैं. ऐसे में दशहरे के दिन ये लोग रावण दहन में शामिल होने की बजाय उसके मरने का शोक मनाते हैं.

कर्नाटक में इन जगहों पर होती है रावण की पूजा
कर्नाटक के मांड्या और कोलार में रावण का वध नहीं बल्कि उसकी पूजा की जाती है क्योंकि यहां पर रहने वाले लोगों का मानना है कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था, इसलिए उसका दहन नहीं बल्कि पूजन किया जाना चाहिए. यहां पर लोग दशानन रावण की विधि-विधाने से पूजा करते हैं.

बिसरख में नहीं मनाया जाता है दशहरा
हिंदू मान्यता के अनुसार उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर के पास बिसरख नामक गांव को रावण की जन्मस्थली माना जाता है. ऐसे में स्थानीय लोग दशहरे का पर्व नहीं मनाते हैं क्योंकि उनकी आस्था रावण पर बहुत ज्यादा है और उसे महाज्ञानी मानकर पूजा करते हैं. दशहरे के दिन यहां के लोग रावण के मरने का शोक और बाकी दिन उसकी पूजा करते हैं.

मंदसौर में रावण की मृत्यु पर मनाया जाता है शोक
मध्य प्रदेश के मंदसौर में भी रावण का दहन नहीं बल्कि पूजन किया जाता है क्योंकि यहां पर रहने वाले लोग इस स्थान को उसका ससुराल मानते हैं. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि मंदोदरी का पैतृक घर यही पर था, इसलिए वे विजयादशमी के दिन उसका दहन करने की बजाय उसकी मृत्यु का शोक मनाते हैं.

कानपुर में रावण का 150 साल से ज्यादा पुराना है मंदिर
उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में रावण का 150 साल पुराना मंदिर है, जो सिर्फ दशहरे के दिन उनकी पूजा के लिए खोला जाता है. स्थानीय लोग विजयादशमी के दिन रावण का विधि-विधान से शृंगार और पूजन करते हैं और इस मंदिर को रावण दहन होने से पहले बंद कर दिया जाता है. साल में एक बार खुलने वाले मंदिर में रावण की पूजा में तरोई के फूल चढ़ाने की परंपरा है.