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Mahakumbh 2025: Naga Sadhu का अनोखा हठयोग, कड़ाके की सर्दी में ठंडे पानी से होता है अभिषेक.. स्नान के लिए इस्तेमाल होते हैं 50 से ज्यादा घड़े

कुंभ मेले के आगाज में केवल एक दिन क्षेष है. कुंभ मेला आदिकाल से ही सनातन संस्कृति का ध्वजा वाहक बना हुआ है. इस मेले में आम श्रद्धालुओं के साथ जुटते हैं कुछ ऐसे दिव्य साधक और योगी जो आम तौर पर जो अज्ञातवास में रहकर तपस्या करते हैं और शरीर को तपाकर लोककल्याण का अलख जगाते हैं. ऐसे ही एक हठयोगी कुंभ मेले में पहुंचे हुए हैं जो कड़ाके की इस ठंड में सूर्योदय से पहले पचास से ज्यादा घड़े के ठंडे पानी से स्नान करते हैं.

हिन्दुस्तान की पावन नदियों गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती के तट पर बसा आदिकालीन अद्भुत अलौकिक सनातनी जनपद प्रयागराज. कहने को तो इस जनपद की महिमा वेद पुराण समेत सनातन के तमाम कालजयी ग्रंथों में गाई गई है लेकिन धरा पर स्थित इस जनपद का आकर्षण तब पारलौकिक हो जाता है जब आसमान के नक्षत्रों का दुर्लभ संयोग बनता है, क्योंकि तब यहां पर लगता है कुंभ का पावन मेला. 

क्या है कुंभ की महिमा
कुंभ की महिमा कितनी दिव्य और अनन्य है इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि इस पावन अवसर पर तीर्थराज प्रयाग पहुंचते हैं. साथ ही वो दर्शन दुर्लभ साधु-संतों के जो स्वयं चलते-फिरते तीर्थ माने जाते हैं. 

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में ऐसे साधु-संतों के बारे में लिखा है. गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि संत समाज स्वयं में आनंदमय और मंगलमय है जो इस जगत के चलते-फिरते तीर्थराज हैं. 12 साल में एक बार लगने वाले कुंभ मेले के दौरान प्रयागराज में उन साधु-संतों के दिव्य दर्शन होते हैं जो आम तौर पर इस संसार से विरक्त हैं. 

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हठयोग में लीन साधु
ये साधु हिमालय की निर्जन कंदराओं या फिर किसी एकान्त स्थान में अपनी कुटिया बनाकर सतत तपस्यारत रहते हैं. इन साधु संतों में कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्होंने हठयोग में सिद्धि हासिल कर ली है. इन हठयोगियों की मुद्राएं और भंगिमाएं तार्किक मन-बुद्धि के दायरे में समाने वाली नहीं हैं. 

माया-मोह के लोक में फंसे इंसान के लिए इन हठयोगियों की साधना कौतूहल से ज्यादा कुछ भी नहीं है. लेकिन जिनके भीतर माया-मोह के पर्दे के पार जाकर सूक्ष्म रहस्यलोग को देखने की दृष्टि मिली हुई है वो जानते हैं कि हठयोग की ये परंपरा चित्तवृतियों के प्रवाह को सांसारिकता से मोड़कर अंतर्मुखी करने की प्रक्रिया का हिस्सा है.

बाबा प्रमोद गिरी महाराज का अनोखा हठयोग
राजस्थान के गंगानगर सिटी से कुंभ में आए शंभु पंचायती अटल अखाड़े के नागा बाबा प्रमोद गिरी महाराज का हठयोग तर्क बुद्धिजीवियों के तंग दिमाग में कतई समा नहीं सकता. वे कड़कड़ाती ठंड के ब्रह्म मुहूर्त में जब तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है उस समय ये घड़े में रखे ठंडे पानी से स्नान करते हैं. बाबा के अभिषेक के लिए रात में ही घड़ों को पवित्र गंगाजल से भर दिया जाता है. 

बाबा सूर्योदय से पहले ही एक-दो घड़े से नहीं बल्कि 50 से ज्यादा घड़ों से अपना अभिषेक करते हैं. सामान्य इंसान के लिए जो असंभव है, वो अनूठा हठयोग इनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है.

क्या खास है इस हठयोग में
नागा साधु प्रमोद गिरी ने रूह कंपा देने वाली जलधारा की ये साधना 51 घड़ों से शुरू की थी. और हर दिन ये घड़ों की संख्या बढ़ा देते हैं. एक दिन में दो घड़ा बढ़ाते हैं और उसके अलगे दिन 3 घड़ा बढ़ाते हैं. 2 और 3 घड़ों की वृद्धि का ये सिलसिला कुंभ मेले के दौरान ऐसे ही जारी रहेगा. 

कंपकंपाती ठंड के ब्रह्म मुहूर्त में इनके ऊपर जब घड़े का ठंडा पानी उड़ेला जाता है तो देखने वालों की कंपकंपी छूट जाती है. लेकिन प्रमोद गिरी महाराज ने खुद को इस हठयोग में सिद्ध कर लिया है. मेला क्षेत्र में बने एक मचान पर ये बाबा आसन लगाकर बैठ जाते हैं और इनके शिष्य एक-एक कर गंगाजल से भरे घड़े को उनके ऊपर उड़ेलते जाते हैं.