

प्रयागराज महाकुंभ के लिए अनुमानित श्रद्धालुओं की संख्या 40 करोड़ बताई गई है. भारत के कोने-कोने से लोग महाकुंभ में आध्यात्म के लिए पहुंच रहे हैं. साथ ही कई लोग तो ऐसे भी हैं जो अपने पूरे परिवार के साथ यहां पहुंचे है. इनमें एक ऐसा परिवार भी शामिल है जो अपने छोटे बच्चे को लेकर यहां पहुंचा है.
कई लोगों का कहना है कि वह केवल अपने गुरु के भरोसे पर ही महाकुंभ पहुंचे हैं. ऐसे में जब रहने-खाने की व्यवस्था पर सवाल उठता है तो वह कहते है कि वह केवल भगवान के भरोसे महाकुंभ आए है. साथ ही उन्होंने भरोसा है कि उन्हें रहने की जगह भी मिल ही जाएगी. बात खाने की करें तो लोगों के लिए के लिए यहां कई इंतजाम है. इस्कॉन का नाम लोकसेवा के लिए काफी जाना जानता है. इस्कॉन यहां रोज करीब 5 लाख लोगों को खाना खिला रहा है.
महाकुंभ में लोकसेवा में इस्कॉन भी पीछे नहीं है. यहां की पाकशाला में महाभोग को तैयार किया जाता है. इस्कॉन रोज करीब 5 लाख लोगों के लिए प्रसाद तैयार करता है. इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिए प्रसाद तैयार करना किसी मुश्किल से कम नहीं है. ऐसे में इस मुश्किल को दूर करने के लिए सारे प्रसाद को लकड़ियों पर तैयार किया जाता है.
किस तरह होता है प्रसाद तैयार
प्रसाद को तैयार करने के लिए पूरे भाग को तीन हिस्सों में बांटा गया है. एक तरफ ऑटोमैटिक हिस्सा है. जहां रोटियां तैयार की जाती हैं. वहीं दूसरी तरफ छोंक तैयार होता है. और तीसरे अंतिम भाग में लकड़ियों पर सब्जियों को तैयार किया जाता है. प्रसाद तैयार करने के लिए जिस प्रकार के बर्तन इस्तेमाल हो रहे हैं. उनमें एक बार में 25000 लोगों के लिए खाना तैयार किया जा सकता है.
कैसे खा पाते है 5 लाख लोग खाना
जानकारी के मुताबिक मेला क्षेत्र में इस्कॉन के दो किचन तैयार किए गए है. और एक किचन से करीब रोजाना 2.5 लाख लोग खाना खाते है. इतनी बड़ी संख्या में लोगों को खाना परोसने के लिए भी बर्तनों को क्रेनों और ट्रॉली की मदद से इधर से उधर लेकर जाया जाता है. जिससे समय की बचत हो सके और लोगों तक गर्म खाना पहुंच सके.
विदेश पहुंचा भारत का आध्यात्म
जापान में जन्मी और भारतीय अध्यात्म से अभिभूत होकर जूना अखाड़े में महायोगी पायलट बाबा की उत्तराधिकारी बनी योगमाता केईको आइकावा यानी महामंडलेश्वर कैला देवी ने आजतक के साथ की खास बात. उन्होंने कहा कि भारत के आध्यातमिक कल्चर की तारीफ करते हुए बताती हैं कि यह कल्चर काफी प्रेम और भगवान पर यकीन रखने वाला है. साथ ही वह कुंभमेले को ऐसा मेला बताती हैं कि जिसमें इंसान की शुद्धि होती है. साथ ही भगवान का आशीर्वाद भी मिलता है.
आइकावा ने समाधी को इस प्रकार परिभाषित किया कि ऐसा करने से शांति प्राप्त होती है. साथ ही भगवान के साथ एक जुड़ाव महसूस होता है. इसके अलावा शरीर की भी शुद्धि होती है.