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Mahakumbh 2025: कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं संन्यासी अखाड़ों के नागा साधु?

महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत रवींद्र पुरी कहते हैं, महाकुंभ से पहले सभी अखाड़ों में धर्म ध्वजा स्थापित की जाती है. ध्वजा स्थापना का अर्थ है कि अब अखाड़े के सभी संन्यासियों और श्रद्धालुओं के रहने और भोजन की व्यवस्था के लिए अखाड़ा तैयार है.

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हाइलाइट्स
  • आसान काम नहीं संन्यासी बनना

  • गुफाओं में साधना के लिए चले जाते हैं साधु

महाकुंभ में साधु संन्यासियों के अखाड़े आकर्षण का केंद्र होते हैं. इनमें भी नागा साधुओं की दुनिया पूरी दुनिया को अपनी ओर खींचती है. आज शैव मत के संन्यासियों के सात मुख्य अखाड़े हैं. जूना, आवाहन, अग्नि, महानिर्वाणी, अटल, निरंजनी और आनंद अखाड़ों के मूल देव तो शिव हैं लेकिन आराध्य देवता सभी के अलग-अलग हैं. धर्म की रक्षा के लिए बनाए गए अखाड़े अब समाज निर्माण में अपना योगदान करते हैं.

कैसे बना अखाड़ा
जगद्गुरु शंकराचार्य ने सनातन की सुरक्षा के लिए ईसवी सदी से करीब सात सौ साल पहले सनातन को बौद्ध धर्म में आए बदलाव और अन्य मान्यताओं से सुरक्षित करने के लिए युवा संन्यासियों की सेना बनाई. नाम दिया गया अखंड. बस आगे चलकर वही अखाड़ा बना. उत्तम प्रबंधन के लिए अखंड में भी विभाजन हुआ सेना बढ़ती गई.

महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत रवींद्र पुरी कहते हैं, महाकुंभ से पहले सभी अखाड़ों में धर्म ध्वजा स्थापित की जाती है. ध्वजा स्थापना का अर्थ है कि अब अखाड़े के सभी संन्यासियों और श्रद्धालुओं के रहने और भोजन की व्यवस्था के लिए अखाड़ा तैयार है. अखाड़ों की धर्म ध्वजा का रंग तो भगवा होता है लेकिन सभी के ध्वज दंड पर फहराने के तरीके अलग अलग हैं.

आसान काम नहीं संन्यासी बनना
महंत रवींद्र पुरी बताते हैं, सदियों बाद भी नागा संन्यासी कमांडो की भूमिका में बने हुए हैं. शास्त्रों के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी लेते हैं लेकिन अब इनकी भूमिका समाज को शिक्षित और अपनी सनातनी परंपरा के प्रति जागरूक करने की भी है. सनातन के इन कमांडो फोर्स को अपने इस लोक और परलोक की चिंता भी नहीं होती है क्योंकि इन्होंने स्वयं को स्वयं से स्वयं ही मुक्त कर लिया है.  खुद का पिंडदान करने के संबंध में वे बताते हैं, सभी चारों कुंभ में पहले अमृत स्नान के बाद और दूसरे से पहले नए नागा संन्यासी दीक्षित किए जाते हैं. उसकी पारंपरिक विधि है. नागा संन्यासी बनना आसान नहीं होता.

गुफाओं में साधना के लिए चले जाते हैं साधु
अब बड़ा प्रश्न लोगों के जेहन में उठता है कि कुंभ में हजारों की संख्या में दिखते ये नागा संन्यासी कुंभ के बाद कहां गायब हो जाते हैं? दरअसल साधना और सुअवसरों में नागा संन्यासी नग्न यानी दिगंबर रहते हैं लेकिन समाज में आते-जाते समय लोक मर्यादा से उपवस्त्र यानी कौपीन लंगोट या गमछा धारण करते हैं. ये संन्यासी गांव, खेड़ों, कस्बों शहरों में स्थित मंदिरों मठों आश्रमों का प्रबंधन करते हुए समाज में भी रहते हैं. तो कई गिरी गुफाओं में अपनी साधना से देश दुनिया कल्याण के लिए ध्यान तपस्या में मग्न रहते हैं.

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