scorecardresearch

Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति का पर्व क्यों मनाया जाता है ? जानिए इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व 

इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा. इस दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग का दरवाजा खुल जाता है.इस दिन गंगासागर में स्न्नान करने का बहुत महत्व है. 

मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की होती है पूजा. मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की होती है पूजा.
हाइलाइट्स
  • इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा

  • मकर संक्रांति के दिन सूर्य भगवान की पूजा की जाती है

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है. खगोलशास्त्र के मुताबिक देखें तो सूर्य जब दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं तो उस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा.  

शास्त्रों के अनुसार सूर्य जब दक्षिणायन में रहते हैं तो उस अवधि को देवताओं की रात व उत्तरायण के छह माह को दिन कहा जाता है. दक्षिणायन को नकारात्मकता और अंधकार का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता एवं प्रकाश का प्रतीक माना गया है. ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं एवं इसी मार्ग से पुण्यात्माएं शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं.इस दिन किया गया दान पुण्य काफी फलदायी होता है.

भीष्म पितामाह ने मकर संक्रांति के दिन त्यागा था देह : मकर संक्रांति के दिन शुद्ध घी एवं कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था. गीता में बताया गया है कि जो व्यक्ति उत्तरायण में शुक्ल पक्ष में देह का त्याग करता है उसे मुक्ति मिल जाती है. 

सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं : सनातन मान्यताओं के मुताबिक मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं. चूंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, उनके घर में सूर्य के प्रवेश मात्र से शनि का प्रभाव क्षीण हो जाता है. क्योंकि सूर्य के प्रकाश के सामने कोई नकारात्मकता नहीं टिक सकती है. मान्यता है कि मकर संक्रांति पर सूर्य की साधना और इनसे संबंधित दान करने से सारे शनि जनित दोष दूर हो जाते हैं.

मकर संक्रांति से जुड़ा है सूर्य शनि का वरदान  :  पिता सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए. यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया. इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था. यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया. तब जाकर सूर्य देव ने कहा कि जब भी वह शनि के दूसरे घर मकर में आएंगे तब शनि के घर को धन-धान्य से भर देंगे. प्रसन्न होकर शनि महाराज ने कहा कि मकर संक्रांति को जो भी सूर्यदेव की पूजा करेगा उसे शनि की दशा में कष्ट नहीं भोगना पड़ेगा.

मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं : शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन ही भगवान विष्णु के अंगूठे से निकली देवी गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान हुआ था. इसीलिए इस दिन बंगाल के गंगासागर में कपिल मुनि के आश्रम पर एक विशाल मेला लगता है.

वैज्ञानिक कारण : मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन से सूर्य के उत्तरायण हो जाने से प्रकृति में बदलाव शुरू हो जाता है. लोगों को सूर्य के उत्तरायण होने से शीत ऋतु से राहत मिलना आरंभ होता है. पूरा वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बराबर-बराबर बंटा होता है. जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण काल कहा जाता है.हमारी पृथ्वी का अधिकांश भाग भूमध्य रेखा के उत्तर में यानी उत्तरी गोलार्द्ध में ही आता है, अत: मकर संक्रांति को ही विशेष महत्व दिया गया है.