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Medaram Jatara: तीन दिनों तक चला एशिया का सबसे बड़ा आदिवासी कुंभ मेला, करोड़ों श्रद्धालुओं ने किए माता के दर्शन

Medaram Jatara: एशिया का सबसे बड़ा आदिवासी कुंभ मेला मेडारम तीन दिन लगता है. इस मेले में करीब एक करोड़ से अधिक लोंगो ने माता के दर्शन किए. ये 800 साल से ज्यादा पुरानी आदिवासी परंपरा है. 

Medaram Jatara (Representative Images) Medaram Jatara (Representative Images)
हाइलाइट्स
  • एक अरब से ज्यादा का बजट

  • करोड़ों श्रद्धालुओं ने किए माता के दर्शन

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले की सीमा से सटे तेलंगाना के मुलुगु जिले में होने वाले मेडारम मेले में इस बार करीब 1 करोड़ लोगों ने शीश नवाया. इस ऐतिहासिक जात्रा में तेलंगाना के अलावा महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा समेत देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु शामिल हुए. आपको बता दें कि मेडारम में हर दो वर्ष में यह मेला लगता है और यह एशिया का सबसे बड़ा आदिवासी मेला है.

आदिवासी का महाकुंभ 

हर दो साल में एक बार आयोजित होने वाले मेडारम जात्रा को आदिवासियों का महाकुंभ भी कहा जाता है. चार दिवसीय जात्रा में माता समक्का-सारालम्मा के दरबार में भक्त हाजिरी देते हैं और मन्नत पूरी होने के बाद लोग अपने वजन के बराबर गुड़ का चढ़ावा चढ़ाते हैं. लोगो की मन्नत पूरी हो जाने पर यहां गुड़ चढ़ाया जाता है गुड़ को सोना कहते हैं. 

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बता दें कि कुंभ के मेले के बाद मेडारम मेले में सबसे ज्यादा श्रद्धालु एकत्रित होते हैं. तेलंगाना में वारंगल से 100 किमी दूर सुकमा सीमा से लगा मेडारम नामक स्थान पर यह मेला आयोजित किया जाता है. इस मेले का इतिहास और भव्यता के चलते यूनेस्को ने इसे सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया है यह विश्व का सबसे बड़ा जनजातीय उत्सव है.

एक अरब से ज्यादा का बजट

इस वर्ष मेले के लिए तेलंगाना सरकार ने करीब 110 करोड़ रुपये का बजट रखा था जबकि इसकी सुरक्षा के लिए दो आईजी, छह एसपी समेत 12 हजार जवान तैनात किए गए थे. श्रद्धालुओं को मेला स्थल तक पहुंचाने के लिए महाराष्ट्र, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ से करीब 10 हजार बसों का संचालन भी किया गया था. बताया जा रहा है कि इस बार मेले में करीब एक दिन में एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने शिरकत की करीब 25 से 30 लाख बकरे और मुर्गों की बलि दी गई. वहीं मेले में भक्तों द्वारा करीब 100 लाख मीट्रिक टन गुड़ का चढ़ावा चढ़ाया गया.

मेडारम मेले का इतिहास

मेडारम मेले को दक्षिण भारत का कुंभ मेला भी कहा जाता है क्योंकि भारत में कुंभ मेले के बाद सबसे ज्यादा श्रद्धालु इस उत्सव में शामिल होते हैं. इस उत्सव में सम्मक्का एवं सारक्का नामक आदिवासी देवियों की पूजा की जाती है. इसका इतिहास करीब 800 साल पुराना है.

स्थानीय लोगों के अनुसार देवी सम्मक्का एवं उनकी पुत्री सारलम्मा (सारक्का), काकतीय राजाओं के खिलाफ मेडारम के पक्ष में युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं थीं, उनके सम्मान में ही यह उत्सव मनाया जाता है. 

लोगों की मन्नत होती है पूरी 

मेडारम जात्रा में ड्यूटी में तैनात पुलिस कर्मी जगन राव ने बताया कि मेडारम में एशिया का सबसे बड़ा अदिबासी जात्रा है यहां तीन दिनों तक जात्रा चलता है जात्रा के दौरान एक दिन में एक करोड़ श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. वहीं छतीसगढ़ से आए श्याम कश्यप ने बताया कि मैं मेडारम हर वर्ष आता हूं यहां लोगों की हर मन्नत पूरी होती है. 

(धर्मेन्द्र सिंह की रिपोर्ट)