रमजान बेहद पाक महीना माना जाता है. रमजान के महीने में इस्लाम को मानने वाले कोशिश करते हैं कि पांच वक्त की नमाज मस्जिद में अदा करें. आज हम आपको एक ऐसी ऐतिहासिक मस्जिद के बारे में बताते हैं. दिल्ली से लगभग 45 किलोमीटर दूर दनकौर नाम का एक कस्बा है. वैसे तो यह गुरु द्रोण की नगरी के नाम से जाना जाता है. लेकिन इसके अलावा यहां ऊंची दनकौर में बने टीले वाली मस्जिद का नाम भी बेहद मशहूर है.
400 साल पुरानी मस्जिद
कुछ लोग मानते हैं कि ये मस्जिद लगभग 400 साल पुरानी है तो कुछ लोग इसे 700 साल पुरानी बताते हैं. वकील अहमद नाम के स्थानीय निवासी बताते हैं कि ये मस्जिद 700 साल पुरानी है. जिस वक्त यह मस्जिद बनाई गई थी. इस जगह पर एक बहुत ऊंचा टीला हुआ करता था. तब ऊंचाई पर ही मस्जिद को बनाया गया था. पहले लोग मस्जिद में आने के लिए टीले पर चढ़कर बड़ी मशक्कत के बाद पहुंचते थे. उस वक्त पूरे इलाके में ये सबसे ऊंची जगह हुआ करती थी. आज भी ये मुख्य आबादी थी सड़क से लगभग 30 फीट ऊपर है.
बाढ़ से बचने का एकमात्र साधन
मस्जिद में नमाज पढ़ने आए लोग बताते हैं कि उस वक्त यमुना में बाढ़ बहुत अधिक आती थी. बाढ़ की वजह से रिहायशी इलाकों में पानी भर जाता था. ऐसे में लोगों के पास अपनी जान बचाने के लिए सिर्फ इसी मस्जिद का ही सहारा होता था. शौकत अली बताते हैं कि मस्जिद से महज 200 मीटर की दूरी पर यमुना नदी हुआ करती थी. बारिश के वक्त बाढ़ से गांव के गांव डूब जाया करते थे. उस वक्त सब लोग अपने बच्चे और जानवर लेकर यहां आ जाया करते थे. ये उस वक्त बचाव के लिए एकमात्र जगह थी.
गरगज से भेजा जाता था अलर्ट
इस मस्जिद से कुछ ही दूरी पर एक गरगज भी बना हुआ है. गरगज पर आज भी कोई नया निर्माण दिखाई नहीं पड़ता उस वक्त की पुरानी दीवार के रूप में ही ये आज भी मौजूद है. इस गरगज के भी बहुत महत्वपूर्ण मायने हैं. कहते हैं गरगज के सबसे ऊपरी हिस्से पर नगाड़ा रखा जाता था उस वक्त के राजा ने हर 10 किलोमीटर के दायरे में एक गरगज बनवाया था. जब भी लोगों को अलर्ट करना होता था तो उस गरगज के जरिए नगाड़े को बजाया जाता था इसकी आवाज सुनकर लोग अलर्ट हो जाते थे एक गरगज की आवाज 10 किलोमीटर तक जाती थी ऐसे ही दूसरा गरगज पहले की आवाज सुनकर नगाड़ा बजाता था और इस तरह से दनकौर से आगरा तक संदेश पहुंचाया जाता था.