राजस्थान स्थित माउंट आबू की अभी पहचान टूरिस्ट प्लेस के रूप में होती है. यहां हर साल हजारों पर्यटक जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं इस पर्वत की पौराणिक मान्यता भी है. जी हां, इस पर्वत को पहले तीर्थराज आबू और अर्बुदांचल के नाम से भी जाना जाता था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आबूराज का अपना अलग ही महत्व है. मान्यता है कि माउंट आबू के पर्वतमालाओं में महर्षि वशिष्ठ का आश्रम हुआ करता था. इसी आश्रम में रहकर भगवान राम ने अपने चारों भाइयों भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण के साथ शिक्षा ग्रहण की थी. यहीं वह स्थान है, जहां गुरु वशिष्ठ ने अपने तप के बल से अग्निकुंड में से क्षत्रिय वंश के चार गोत्रों की उत्पत्ति की थी.
राजा दिलीप को पुत्र प्राप्ति का मिला था आशीर्वाद
आबू पर्वत पर घने जंगलों और ऊंची-ऊंची पहाड़ियों पर ऋषि वशिष्ठ का आश्रम बसा है. इस आश्रम के आसपास की हरियाली और शांति यहां आने वालों का मनमोह लेती है. कहते हैं यही वह जगह है, जहां अयोध्या नरेश दशरथ के परदादा राजा दिलीप को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मिला था. राजा दिलीप को जब वर्षों कोई पुत्र नहीं हुआ तो वे ऋषि वशिष्ठ से पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम पहुचे थे. ऋषि वशिष्ठ के कहने पर राजा दिलीप ने यहां 21 दिनों तक अपनी पत्नी महारानी सुदक्षणा के साथ मिलकर ऋषि की गाय नंदिनी की सेवा की थी. नंदिनी के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई थी. जिनका नाम रघु था.
रघुकुल की कई पीढ़ियों तक चलता रहा रिश्ता
राजा दिलीप ने ऋषि वशिष्ठ के आश्रम से जो रिश्ता जोड़ा वो रघुकुल की कई पीढ़ियों तक चलता रहा. कहते हैं जब राजा दशरथ के सामने उनके पुत्रों राम, भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण की शिक्षा दीक्षा का प्रश्न उठा तो उन्होंने अपने पुत्रों को ऋषि वशिष्ठ के आश्रम भेजा. जहां राम ने अपने भाइयों संग न केवल शास्त्रों की विधिवत पढ़ाई की, अपितु तपस्वियों जैसा कठोर जीवन भी बिताया. ऋषि वशिष्ठ और गुरु माता के सानिध्य में राम और उनके भाइयों ने जीवन का जो ककहरा पढ़ा, वो पूरी जिंदगी उनका मार्गदर्शन करता रहा.
सूर्यवंशी क्षत्रियों की उत्पत्ति
ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में राम, लक्ष्मण, ऋषि वशिष्ठ एवं उनकी पत्नी अरुंधति की मूर्तियां स्थापित हैं. आश्रम में उस प्राचीन हवन कुंड के भी दर्शन किए जा सकते हैं, जहां ऋषि वशिष्ठ अपने शिष्यों के साथ यज्ञ किया करते थे. कहते हैं ऋषि वशिष्ठ ने आह्वान करके सूर्यवंशी क्षत्रियों की उत्पत्ति इसी हवन कुंड से की थी. यहां क्षत्रिय के 4 वंशों परमार, प्रतिहार, सोलंकी और चौहान वंश की उत्पत्ति हुई है.
सतयुग से बह रही अनवरत जलधारा
वशिष्ठ आश्रम के महंत तुलसीदास बताते हैं कि आश्रम के प्रवेश द्वार पर जल धारा बहती है. ये लुप्त हो चुकी सरस्वती है. ये जल धारा सतयुग से अनवरत बहती चली आ रही हैं. चाहे कितना भी सूखा पड़े या अकाल की स्थिति हो, यह जलधारा अनवरत बहती रहती है. इस स्थान को गोऊ मुख के नाम से जाना जाता है. सुबह 4 से 6 बजे तक उसमें से गर्म पानी आता है.
साढ़े सात सौ साल पुराना है चम्पा का पेड़
महंत गोविद वल्लभ (श्री पति धाम सिरोही) बताते हैं कि हिमालय के भाई अर्बुद, जिन्हें अर्बुदंचल कहते हैं. यहां सारे तीर्थ निवास करते हैं. 33 कोटि तीर्थ निवास करते हैं. इसलिए इसे तीर्थराज आबू भी कहा जाता है. महर्षि वशिष्ठ के आश्रम परिसर में आज भी साढ़े सात सौ साल पुराना चम्पा का पेड़ है. 6 सौ साल पुराना कटहल का पेड़ लगा हुआ है. यहां का जिक्र आपको पुराणों में भी मिलेगा.
लगता है विशाल मेला
शिक्षाविद आनन्द मिश्रा बताते हैं कि गुरु पूर्णिमा के दिन मंदिर प्रांगण में विशाल मेला लगता है. इसमें शामिल होने के लिए देश-दुनिया से लोग आते हैं. है. महर्षि वशिष्ठ के आश्रम का जिक्र स्कंद पुराण के आबूखंड में मिलता है. लोग यहां आकर आबू परिक्रमा करते हैं.
(राहुल त्रिपाठी की रिपोर्ट)