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Sambhar Holi: खास है सांभर की नंदकेश्वर होली, सभी धर्मों के लोग लेते हैं हिस्सा, जानिए क्या है 2000 साल पुराना इतिहास

जयपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर मौजूद सांभर की इस होली में शिवजी की प्रतीकात्मक बारात निकाली जाती है. यह होली इस क्षेत्र की पहचान है. खास बात है कि यह यहां रहने वाले सभी धर्मों के लोगों को जोड़ती है.

ढोल नगाड़ों के शोर के बीच राजस्थान के सांभर में निकलती शिव की बारात यहां मनाई जाने वाली नंदकेश्वर होली की पहचान है. यह त्योहार जयपुर से 70 किलोमीटर दूर मौजूद इस शहर के इतिहास और संस्कृति का अभिन्न अंग है. सैकड़ों साल पुरानी इस खास होली को लोग अपनी पहचान का एक हिस्सा मानते हैं. 

क्यों मनाई जाती है सांभर की यह होली?
मान्यता के अनुसार गोगराज नामक राजा के शासनकाल के दौरान यहां भयंकर सूखा पड़ा था. लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए भगवान शिव को भगवान शिव की पूजा की गई. तब से इस झील के शहर में सदियों पुरानी परंपराओं का पालन करते हुए नंदकेश्वर की होली मनाई जाती है. इसकी प्रसिद्धि देश और दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करती है. हज़ारों लोग इकट्ठा होते हैं. ढोल-नगाड़ों की थाप पर गाते और नाचते हैं. 

मथुरा में लट्ठमार, सांभर में नंदकेश्वर की होली
सांभर के रहने वाले गोविंद अग्रवाल कहते हैं, "सांभर होली सही मायने में रंगों का त्योहार है जो करीब 2,000 सालों से राजाओं के समय से जोधपुर और जयपुर के दरबारों में मनाया जाता रहा है. यहां की होली का उत्सव दुनिया भर में प्रसिद्ध है. समारोह के दौरान तीन पारंपरिक खेल खेले जाते हैं और आम जनता और आस-पास के गांवों के लोग सात दिनों तक त्योहार का आनंद लेने के लिए एकत्र होते हैं." 

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गोविंद कहते हैं, "होली का यह अनूठा रूप राजस्थान में कहीं और नहीं मनाया जाता है. जिस तरह मथुरा की लट्ठमार होली प्रसिद्ध है, उसी तरह इस त्योहार को नंदकेश्वर की होली के नाम से जाना जाता है." 

हिन्दू-मुस्लिम मिलकर लेते हैं हिस्सा
इस होली में भगवान शिव का प्रतीकात्मक विवाह भी करवाया जाता है. खास बात यह है कि नंदकेश्वर की होली सांभर के लोगों को एक धागे में पिरोने का काम करती है. अलग-अलग भूमिकाओं में हिंदू, मुस्लिम और अन्य समुदायों के लोग सात दिनों तक चलने वाले इस त्योहार को मनाने के लिए एकजुट होते हैं. 

सांभर के रहने वाले हबीबुर रहमान कहते हैं, "यह त्यौहार भगवान शिव के विवाह के रूप में मनाया जाता है. प्रतीकात्मक विवाह के तौर पर नंदकेश्वर की बारात निकाली जाती है. नंदकेश्वर की बारात दूल्हे के तौर पर छोटे बाजार क्षेत्र से निकाली जाती है. जब वह बड़ा बाजार में प्रवेश करती है तो उसे अपने ससुराल में प्रवेश करने वाला माना जाता है. हिंदू और मुस्लिम उसका स्वागत करते हैं. बारात पर फूल बरसाते हैं. शाम को आरती होती है और उसके बाद मेला समाप्त हो जाता है." 

सांभर के एक अन्य निवासी सुरेंद्र कुमार सोनी कहते हैं, "होली का उत्सवी माहौल शिवरात्रि से शुरू होता है जब छोटे बाजार में उत्सव के एक दिन बाद नंदकेश्वर की शोभायात्रा निकाली जाती है. धुलंडी के दिन दोपहर 12 बजे से नंदकेश्वर की शोभायात्रा निकाली जाती है और बच्चों से लेकर महिलाओं तक हजारों लोग मेले में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं."
(इनपुट: पीटीआई)