नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा की जाती है. कूष्मांडा नवदुर्गा का चौथा रूप हैं. देवी कूष्मांडा को ब्रह्मांड की निर्माता कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि वह सूर्य के केंद्र में रहती है क्योंकि वह ब्रह्मांड की ऊर्जा और प्रकाश को संतुलित करती है.
मान्यता है कि जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी और चारों तरफ अंधकार था. तब देवी के इस स्वरूप से ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ. देवी कूष्मांडा को आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है.
क्या है पूजा मंत्र
हिंदू शास्त्रों के अनुसार मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं और इनकी सवारी सिंह पर है. इनके सात हाथों में चक्र, गदा, धनुष, कमंडल, अमृत से भरा हुआ कलश, बाण और कमल का फूल है. आठवें हाथ में जपमाला है जो सिद्धियों से युक्त है.
मां को खुश करने के लिए इस मंत्र का जाप करें- सुरासंपूर्णकलशं,रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां,कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।
पूजा विधि:
मां कूष्मांडा की पूजा से पहले आपको घर में स्थापित किए कलश और उस में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए. इसके बाद अन्य देवी-देवताओं को पूजें और फिर देवी कूष्मांडा की पूजा करें. सबसे पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करें, व्रत, और पूजन का संकल्प लें.
फिर माता की कथा सुनें और मां के मंत्रों का जाप करते हुए ध्यान करें. अंत में आरती करके प्रसाद बांटे. मां कूष्मांडा को मालपूए बहुत पसंद हैं इसलिए मां को इनका भोग लगाएं.
इस पावन अवसर पर पूजा के दौरान 16 श्रृंगार सामग्री जैसे मेहंदी, काजल, बिंदी, चूड़ियां, पैर की अंगुली की अंगूठी, कंघी, आल्ता, शीशा, पायल, इत्र, झुमके, नाक की पिन, हार, लाल चुनरी आदि मां को अर्पण करें. मां को सफेद कद्दू की बलि भी दी जाती है. कद्दू को कुम्हड़ा भी कहा जाता है.
मां कूष्मांडा की पूजा करने से सभी दुख दूर होते हैं. इनकी उपासना से भक्तों के सभी क्लेश मिट जाते हैं. इनकी भक्ति करने वालों को दीर्घ आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है.