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Navratri 2022 Special: 52वां शक्तिपीठ माना जाता है दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर, छह भुजाओं वाली है बस्तर की मां तारणी

Navratri 2022: मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक है दंतेवाड़ा. यह छत्तीसगढ़ के बस्तर में स्थित है और इसकी मान्यता देश-दुनिया में फैली हुई है. हर साल नवरात्रि में लाखों भक्त यहां माता के दर्शन करने आते हैं.

Danteshwari Temple Danteshwari Temple
हाइलाइट्स
  • यह मंदिर दुनियाभर में स्थित देवी के 52 शक्तिपीठों में से एक है

  • तांत्रिकों की साधना स्थली है दंतेवाड़ा

मान्यता है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में जिस जगह देवी सती के दांत गिरे थे, उसी इलाके का नाम दंतेवाड़ा पड़ा. यहां पर देवी मां का प्राचीन मंदिर है. वैसे तो देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का ही जिक्र है, लेकिन कुछ स्थानीय मान्यताएं अलग कहानी बयां करती हैं. इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य के दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी माता मंदिर को 52वां शक्तिपीठ माना जाता है. 

इस मंदिर को लेकर कई तरह की कहानियां और किवदंतियां प्रसिद्ध हैं. आपको बता दें कि इस मंदिर का निर्माण 14वीं सदी में चालुक्य राजाओं ने दक्षिण भारतीय वास्तुकला से कराया था. यहां देवी मां की षष्टभुजी काले रंग की मूर्ति स्थापित है. छह भुजाओं में देवी ने दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशूल और बांए हाथ में घंटी, पद्घ और राक्षस का धड़ लिया हुआ है. मंदिर में देवी के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं. 

आते हैं लाखों श्रद्धालु
चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान बस्तर संभाग से ही नहीं बल्कि देशभर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं. दंतेश्वरी मां के मंदिर प्रबंधन के मुताबिक यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है. दंतेवाड़ा माता के स्वरूप को दंतेश्वरी माई के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर दुनियाभर में स्थित देवी के 52 शक्तिपीठों में से एक है.

मशहूर है लोक कथा 
एक लोककथा के मुताबिक प्राचीन भारत के राज्य वारंगल के राजा प्रतापरुद्रदेव थे. जब उनके छोटे भाई अन्ममदेव को वारंगल से निर्वासित कर दिया गया तो वह दुखी मन से गोदावरी नदी को पार कर रहे थे. उसी दौरान उन्हें नदी में मां दंतेश्वरी की प्रतिमा मिली. अन्ममदेव उस प्रतिमा को उठाकर नदी के किनारे लाए और उसकी पूजा करने लगे. तभी माता दंतेश्वरी ने साक्षात प्रकट होकर अन्ममदेव से कहा कि अपने रास्ते पर आगे बढ़ते जाओ, मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे चलूंगी.

कहा जाता कि माता दंतेश्वरी के आशीर्वाद से अन्ममदेव ने अपने रास्ते पर चलते हुए कई राज्य जीते. दंतेवाड़ा में जिस जगह वह जाकर रुके वहां माता स्थापित हो गईं. इस प्रकार उन्होंने बस्तर साम्राज्य की स्थापना भी की. इतिहास में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि बारसुर के युद्ध में राजा अन्मदेव ने हरिशचंद्र देव को मारकर बस्तर में अपने राज्य की स्थापना की थी. 

52वां शक्तिपीठ है दंतेवाड़ा
माता दंतेश्वरी के मंदिर को 52वां शक्तिपीठ माना जाता है. कहते है कि डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर बने इस मंदिर का जीर्णोद्धार पहली दफा वारंगल के पांडव अर्जुन कुल के राजाओं ने लगभग 700 साल पहले करवाया था. बताया जाता है कि वर्ष 1883 तक इस मंदिर में नरबलि भी होती थी. साल 1932-33 में दंतेश्वरी मंदिर का जीर्णोद्धार दूसरी बार किया गया, जो उस समय की बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था.

तांत्रिकों की साधना स्थली है दंतेवाड़ा
यह मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदी के संगम पर स्थित है. स्थानीय लोग बताते हैं कि नदी तट पर आठ भैरव भाइयों का आवास है, इसलिए इस स्थान को तांत्रिकों की भी साधना स्थली भी माना जाता है. मान्यता है कि आज भी इस जगह पर गुप्त रूप से बहुत से तांत्रिक जंगलों की गुफाओं में तंत्र विद्या की साधना में लीन हैं. मंदिर प्रांगण में नलयुग से लेकर छिंदक नाग वंशीयकाल की कई मूर्तियां बिखरी हुई हैं. माता दंतेश्वरी को बस्तरराज परिवार अपनी कुल देवी मानता है, लेकिन वह पूरे बस्तरवासियों की रक्षक हैं. 

(धर्मेंद्र महापात्रा की रिपोर्ट)