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Maa Shailputri: मां का प्रथम रूप है शैलपुत्री... जानिए इस स्वरूप का वास्तविक अर्थ और महिमा

Navratri: मां आदिशक्ति के नौ स्वरूपों को नवरात्रि में पूजा जाता है. हर दिन मां के एक स्वरूप को समर्पित है. जानिए माता के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री के बारे में.

Maa Shailputri (Photo: Pinterest) Maa Shailputri (Photo: Pinterest)

आदि शक्ति के नौ रूपों में प्रथम रूप ‘शैलपुत्री’ का है, जिसे ‘पार्वती’ भी कहा जाता है. ‘शैल’ शब्द ‘शिला’ से बना है और शिला का अर्थ प्रस्तर या पर्वत लिया जा सकता है. इस प्रकार ‘शैल-पुत्री’ का अर्थ है– ‘शिला की है जो पुत्री’ या ‘पार्वती’ अर्थात् पर्वत की पुत्री भी कहा जाता है. 

माता के इसी रूप को अगर धार्मिक अथवा पौराणिक संदर्भों में देखें, तो पार्वती ‘गिरिराज हिमालय’ की पुत्री हैं (अर्थात् पर्वत की पुत्री हैं), जो उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई थीं. अस्तु, जो शिवत्व के लिए तप करे या स्वयं को तपाए, साधना करे, वही पार्वती; जो परिवर्तन करा दे, वह पार्वती.

योग-साधना की दृष्टि से एक साधक मूलाधार चक्र (गुदा) में अपनी चेतना को संकेंद्रित करता है, यही योग-साधना का आरंभिक स्थल है, परिवर्तन की शुरुआत है. भौतिक-सृष्टि चक्र इसी के इर्द-गिर्द घूमता है.

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हम जानते हैं कि मानव शरीर साधना के निमित्त है. रघुवंशम् में कालिदास लिखते हैं–“शरीरं माध्यम् खलु धर्म साधनम” अर्थात् जितने भी धर्म हैं, उनमें देह की शुचिता आद्य धर्म है. इस रूप के प्रतीक के रूप में मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल है. त्रिशूल का अर्थ है : तीन शूल (कांटे) जो सत्, रजस् और तमस् की त्रिगुणात्मिका प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है. बाएं हाथ में कमल है, जो चेतना के जाग्रत अवस्था का परिचायक है और संस्कृति का प्रतीक है.

(लेखक: कमलेश कमल)

(कमलेश कमल हिंदी के चर्चित वैयाकरण एवं भाषा-विज्ञानी हैं. कमल के 2000 से अधिक आलेख, कविताएं, कहानियां, संपादकीय, आवरण कथा, समीक्षा इत्यादि प्रकाशित हो चुके हैं. उन्हें अपने लेखन के लिए कई सम्मान भी मिल चुके हैं.)