चैत्र नवरात्रि में एक ओर जहां देवी के भक्त उनको प्रसन्न करने के लिए मंदिरों में पूजा अर्चना कर रहे हैं वहीं शक्ति की प्रतीक महिलाएं अपने हुनर और परिश्रम से सफलता की नई कहानी लिख रही हैं. मंदिर के बाहर लगातार नौ दिन तक लगने वाले चुनरी, प्रसाद, दीये, मोमबत्ती और अन्य सामान को तैयार करने और उनकी बिक्री में महिलाओं की बड़ी भूमिका रही है. इस नवरात्रि स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं ने देवी मंदिरों में सफलता की कहानी लिखी है.
विंध्याचल में मां विंध्यवासिनी का धाम हो या देवी पाटन में मां पाटेश्वरी शक्तिपीठ के द्वार, हर जगह प्रवेश से पहले ही मां को अर्पण करने वाले प्रसाद और श्रृंगार के सामान की सजी हुई दुकानें न सिर्फ यहां आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधा प्रदान करती हैं बल्कि इससे महिला सशक्तिकरण की नई कहानी भी लिखी जा रही है. यहां बिकने वाली चुनरी, चढ़ाए जाने वाले श्रृंगार के सामान, प्रसाद को तैयार करने से लेकर उनकी पैकिंग की जिम्मेदारी महिलाओं ने निभाई है. दरअसल इस बार स्वयं सहायता समूहों (SHG) को इसकी जिम्मेदारी देकर पहल की गई है. यूपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत संचालित स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा तैयार किए गए सामान लोग आदिशक्ति को चढ़ा रहे हैं.
मंदिर में पहुंच रहे महिलाओं के बनाए सामान
वैसे कुटीर उद्योगों में महिलाओं की भूमिका पहले से रही है. पर स्वयं सहायता समूहों को इसकी ज़िम्मेदारी देने से से इस बार बड़े देवी मंदिरों और शक्तिपीठों में महिलाओं के बनाए ये सामान सीधे पहुंच गए हैं. मुख्य रूप से महिलाओं ने तरह तरह की साइज की चुनरी बनाई है, देवी के वस्त्र, माला, देवी का शृंगार, धूप, दीप, अगरबत्ती, हवन सामग्री, प्रसाद तैयार किया है. ये सभी चीजें मंदिरों के बाहर श्रद्धालु खरीदते हैं. अलग अलग स्वयं सहायता समूहों को काम दिया गया है. व्रत से जुड़ी खाद्य सामग्रियां भी बनाई हैं जो पैकेट में उपलब्ध हैं.
यूपी में मौजूदा समय में स्वयं सहायता समूह (SHG) से 72 लाख से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं. एक ओर जहां ये नवरात्रि के लिए इतने बड़े बाजार में सामान उपलब्ध करा रही हैं वहीं आत्मनिर्भर भारत ले लक्ष्य में भी योगदान दे रही हैं. प्रदेश के लगभग सभी जिलों में नवरात्रि से जुड़े सामान म सिर्फ सेल्फ हेल्प ग्रुप्स द्वारा बनाए गए बल्कि मंदिरों के आस पास और प्रमुख बाजारों में दुकानें लगाकर बिक्री का काम भी महिलाओं ने किया है. इससे समूह की महिलाओं की अच्छी आय हो रही है. महिलाओं के बनाए इन उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री भी हो रही है. कुछ स्वयं सहायता समूहों ने अपने सामान की ऑनलाइन बिक्री भी की है.
चुनरी से लेकर प्रसाद तक महिलाओं को बना रहा आत्मनिर्भर
नवरात्रि में देवी को मंदिरों और घरों में लाल रंग की चुनरी चढ़ाने की परंपरा है. विशेष रूप से अलीगढ़, आजमगढ़, झांसी, वाराणसी, मिर्जापुर व चित्रकूट आदि जिलों की महिलाओं ने विशेष रूप से चुनरी तैयार की है. महिलाओं की बनाई चुनरी और सामान विंध्याचल से लेकर देवीपाटन में पाटेश्वरी देवी के धाम तक और सहारनपुर के शाकुंभरी देवी से प्रयागराज में ललिता देवी के मंदिर में देखे जा सकते हैं. यूपी के अन्य शहरों के मंदिरों में भी मां के दरबार में समूहों द्वारा तैयार चुनरी चढ़ाई जा रही है. कहीं गोटा पट्टी का काम किया गया है तो कहीं रंगीन धागों से सिला गया है.
इसके साथ ही प्रसाद वितरण के लिए दोना पत्तल की मांग भी नवरात्रि में बढ़ गई है. हरदोई, सोनभद्र, लखीमपुर खीरी, प्रयागराज, महराजगंज, हमीरपुर,उन्नाव की महिला स्वयं सहायता समूहों ने दोना-पत्तल तैयार किया है. इसके साथ ही मां का प्रसाद बनाने का काम हर जगह महिलाओं के ही जिम्मे है. ये प्रसाद पैकिंग में मंदिरों के बाहर मिल रहे है. हाल ही में काशी में बाबा विश्वनाथ ने धाम में मिलेट्स का लड्डू बनाने की जिम्मेदारी भी महिला स्वयं सहायता समूह को दी गई है.
चैत्र नवरात्रि में समूह की महिलाओं द्वारा किए गए अलग अलग कार्यों से होने वाली बिक्री से करोड़ों के कारोबार होने का अनुमान है. संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव और पर्यटन महानिदेशक मुकेश मेश्राम कहते हैं, “ये एक साथ कई लक्ष्यों पर केंद्रित है. महिला सशक्तिकरण, रोजगार, वोकल फॉर लोकल जैसे लक्ष्यों को इससे साधा गया है. जाहिर है ये शक्ति का उत्सव है तो स्त्री शक्ति को हम इसमें प्रमुखता दे रहे हैं.”
स्वयं सहायता समूह की महिलाएं लिख रहीं सफलता की कहानी
यूपी सरकार के आंकड़ों के अनुसार यूपी में उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 72.69 लाख से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं. प्रदेश में 6 लाख 93 हजार से ज्यादा स्वयं सहायता समूह है. इन समूहों के जरिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में निरंतर कार्य होता है.