निर्जला एकादशी का व्रत (Nirjala Ekadashi) भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न रखने के लिए किया जाता है. हिंदू धर्म में पूजा पाठ का विशेष महत्व है. यहां पर हर तीज त्योहार बहुत ही श्रद्धा और रीति रिवाजों से मनाया जाता है. इन्हीं में से एक है एकादशी का व्रत. वैसे तो साल में 24 एकादशी आती हैं, लेकिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को सर्वोत्तम माना गया है. इस एकादशी को निर्जला एकादशी भी कहते हैं. इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और ये विशेष फलदायी होता है.
कब है निर्जला एकादशी?
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 10 जून को सुबह 07 बजे शुरू होगी. अगले दिन यानी 11 जून को शाम 5 बजे इसका समापन होगा. 10 और 11 जून दोनों दिन एकादशी तिथि पड़ने के कारण व्रत को दोनों दिन भी रखा जा सकता है. हालांकि 11 जून व्रत रखने का उत्तम दिन है क्योंकि इस दिन सुबह से ही मुहूर्त है जबकि 10 जून को 7 बजे से यह प्रारंभ होगी.
क्या है मान्यता?
निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न रखने के लिए किया जाता है. इस दिन महिलाएं बिना जल का सेवन किए पूरा दिन व्रत रखती हैं. जेठ के महीने की गर्मी में पड़ने के कारण इस व्रत को बहुत कष्टकारी माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने वाले व्यक्ति के लिए सीधे स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं.
क्या करें दान?
निर्जला एकादशी व्रत में दान का विशेष महत्व है. गर्मी में पड़ने के कारण इस दिन ठंडी चीजों का दान करना शुभ माना जाता है. कहते हैं कि इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. इस दिन खीरा, ककड़ी, खरबूजा, घड़ा आदि दान करने से दान करने वाली व्यक्ति की मनोवांछित सभी कामनाएं पूरी होती हैं और विशेष फल प्राप्त होता है. इसके अलावा धूप में काम आने वाली वस्तुएं जैसे छाता,अंगरखा, गरीबों को शरबत पिलाना आदि काम को करने से भी पुण्य प्राप्त होता है.