प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को अपने केरल दौरे के दौरान दो मंदिरों- श्री रामास्वामी मंदिर और गुरुवायूर मंदिर में पूजा-अर्चना की. उन्होंने गुरुवायुर मंदिर में तुलाभरम अनुष्ठान किया. इस अनुष्ठान में कोई भी व्यक्ति अपने वजन के बराबर फलों या अनाज का दान करता है. आपको बता दें कि गुरुवायूर मंदिर का दक्षिण भारत में वही महत्व है जो द्वारका का है.
द्वारका की तरह ही गुरुवायूर भगवान कृष्ण को समर्पित मंदिर है. इस मंदिर में भगवान गुरुवायुरप्पन की पूजा होती है जो बालगोपालन यानी भगवान कृष्ण के बालरूप में हैं. गुरुवायूर का अर्थ समझें तो गुरु का अर्थ है देवगुरु बृहस्पतिऔर वायु का मतलब है वायुदेव और ऊर मलयालम शब्द है जिसका मतलब होता है भूमि. ऐसे में, इसका पूरा अर्थ होगा- ऐसी भूमि जहां पर देवगुरु बृहस्पति ने वायुदेव की मदद से स्थापना की हो.
क्या है इस मंदिर का इतिहास
मान्यता है कि कलयुग की शुरुआत में देवगुरु बृहस्पति और वायुदेव को भगवान कृष्ण की प्राचीनतम मूर्ति मिली और उन्होंने लोगों के कल्याण के उद्देश्य से इस मूर्ति की स्थापना इस जगह की. तब से इस जगह को गुरुवायूर नगर के नाम से जाना जाने लगा. इस मंदिर में विराजित भगवान कृष्ण की मूर्ति चार हाथों वाली है.
मूर्ति के एक हाथ में शंख, दूसरे में सुदर्शन चक्र, तीसरे में कमल पुष्प और चौथे हाथ में गदा है. इस मंदिर को भूलोक वैकुंठम यानी धरती पर वैकुंठ धाम के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर लगभग 5000 साल पुराना है और 1683 में मंदिर का पुनर्निमाण किया गया. यह मंदिर केरल और देश के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है.
मंदिर में होता है हाथी उत्सव
आपको बता दें कि यह मंदिर अपने हाथी उत्सव के लिए भी जाना जाता है. भव्य रूप से सजे हाथियों को देखने के लिए दुनिया भर से श्रद्धालु यहां इकट्ठा होते हैं. फिर इन हाथियों को विभिन्न प्रदर्शनों के लिए परेड कराया जाता है. यह मंदिर नर एशियाई हाथियों की एक बड़ी आबादी का घर होने के लिए भी जाना जाता है.
पुन्नाथुर कोट्टा हाथी अभयारण्य, जहां 56 हाथी रहते हैं, मंदिर के बहुत करीब है. गुरुवायूर मंदिर केरल में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले मंदिरों में से एक है. 1930 के दशक की शुरुआत में, मंदिर दलित भक्तों के लिए खुला नहीं था. यहां तक कि मंदिर के आसपास की सड़कें भी पवित्र मानी जाती थीं और कुछ जातियों के लोगों को इसके आसपास जाने की अनुमति नहीं थी. लेकिन महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन और आजादी के बाद सभी जाति के हिंदुओं को यहां प्रवेश की अनुमति दी गई थी.