भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष बहुत ही खास व्रत है. इस बार प्रदोष सोमवार यानी आज के दिन पड़ा है. मान्यता है प्रदोष तिथि पर व्रत और महादेव के पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है. शास्त्रों में प्रदोष व्रत को सर्व सुख प्रदान करने के साथ परम कल्याणकारी बताया गया है. सोमवार को भगवान शंकर का दिन माना जाता है. इसलिए सोम प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो इस व्रत से भगवान शंकर की कृपा से तुरंत मिलती है.
क्या है प्रदोष व्रत ?
हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है, और उनकी कृपा से तमाम मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. अलग अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग अलग होती है. सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को "सोम प्रदोष" कहा जाता है. सोमवार होने के कारण ये व्रत बहुत प्रभावशाली हो जाता है. ज्योतिषी बताते हैं कि प्रदोष का समय सप्ताह में जिस भी दिन पड़ता है. उस दिन की महिमा को बढ़ा देता है. अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किया जाता है, तो व्रत करने वाले को उसको मनचाहा वरदान मिलता है. माना जाता है कि जिनकी कुंडली में चंद्रमा समस्याएं बढ़ रहा हो. उन्हें सोम प्रदोष व्रत जरूर रखना चाहिए.
क्या है सोम प्रदोष व्रत की महिमा ?
सोम प्रदोष व्रत रखने से मनचाही इच्छा पूरी होती है. इसके अलावा संतान सम्बन्धी किसी भी मनोकामना की पूर्ति इस दिन की जा सकती है. सोम प्रदोष के दिन चन्द्रमा सम्बन्धी समस्याओं का निवारण आसानी से किया जा सकता है. धन की कमी को खत्म करने के लिए प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए. प्रदोष व्रत के प्रभाव से रोग दूर हो जाते हैं. विवाह की बाधाएं दूर होती हैं. भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं. उनकी पूजा-अर्चना भी सरल ही है. लेकिन सोम प्रदोष व्रत में शिव की आराधना के कुछ विशेष नियम हैं. कहते हैं कि इस व्रत का पूरा फल तभी मिलता है जब आप इस व्रत के सारे नियमों का पालन करते हैं.
सोम प्रदोष की व्रत और पूजा विधि क्या है ?
शिव जी को जल और बेलपत्र अर्पित करें. उनको सफ़ेद वस्तु का भोग लगायें. शिव मंत्र " नमः शिवाय" का जाप करें. रात्रि के समय भी शिव जी के समक्ष घी का दीपक जलाकर शिव मंत्र जप करें. इस दिन जलाहार और फलाहार ग्रहण करना उत्तम होगा. नमक और अनाज का सेवन न करें. प्रदोष व्रत की महिमा ऐसी है कि ये आपकी हर मनोकामना को पूरी कर सकती है, क्योंकि इस दिन शिव की विशेष कृपा भक्तों पर बनी रहती है. जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रह जाता है. प्रदोष व्रत के उद्यापन के भी कुछ खास नियम हैं. उन नियमों का पालन करना भी उद्यापन के समय पर जरूरी है.
कैसे करें प्रदोष व्रत का उद्यापन?
इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखना चाहिए. इसके बाद उद्यापन करना चाहिए. व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए. उद्यापन से एक दिन पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है. उद्यापन से पहले रात में कीर्तन करते हुए जागरण करें. सुबह मंडप बनाकर, उसको कपड़ों और रंगोली से सजाएं. हवन में आहूति के लिए खीर का इस्तेमाल करें, हवन के बाद भोलेनाथ की आरती करें. अपने सामर्थ्य के मुताबिक दान-दक्षिणा करें.