छठ महापर्व में प्रसाद का विशेष महत्व है. चार दिवसीय पूजा के तीसरे दिन छठ मैया का प्रसाद बनाया जाता है. ठेकुआ छठ के मुख्य प्रसाद में से एक है. कहा जाता है कि ठेकुआ के बिना यह त्योहार अधूरा है. इसे बनाने के लिए घर की आम रसोई से अलग एक अलग रसोई तैयार की जाती है, जहां चूल्हे पर इसे बनाया जाता है. आइए जानते हैं महाप्रसाद बनाने की विधि व इसकी क्या है महिमा...
ठेकुआ बनाने के लिए सामग्री : एक किलो आटा में बनाने के लिए गुड़ 250 ग्राम, सौंफ एक बड़ा चम्मच, छुहारा 5 -6, कच्चा मूंगफली 8-10, काली मिर्च 2 से 4, लौंग 2 या 3. तलने के लिए घी या सरसो का तेल चहिए.
बनाने की विधि : सबसे पहले मूंगफली, सौंफ, छुहारा, छोटी इलायची, लौंग, काली मिर्च सबको अच्छे से कूट लें. अब एक बर्तन में गुड़ डालकर उसमें एक मीडियम गिलास पानी डाल दें और दोनों को अच्छे से मिक्स कर लें. फिर इसमें घिसा हुआ नारियल और बाकि कूटे मसाले डाले दें. सबको अच्छे से मिलाकर इसमें आटा मिला दें. आटे को अच्छे से गूंथ लें. ध्यान रहे कि आटा न ज्यादा टाइट हो और न ज्यादा नरम. अब आटे की छोटी-छोटी लोईं बना लें. इसके बाद बाद ठेकुआ बनाने वाले सांचे से आकार दे दें. वहीं अगर सांचा न हो तो थाली को उल्टा कर के उसपर हल्का तेल लगा के उसपर आटे की गोली रखकर हल्के हाथों से ठोक लें. अब एक गैस पर बड़ी सी और साफ सी कढ़ाही रखकर उसमें तेल या घी डाल दें. जब तेल गर्म हो जाएं तो आटे के बनाए गए ठेकुआ को उसमें डालें. इस तरह से छठ का प्रसाद ठेकुआ तैयार होता है.
कैसे ठोकुआ से ठेकुआ पड़ा नाम : छठ पूजा के प्रसाद में आटा, गुड़, देसी घी, सूखा मेवा से बने ठेकुआ का विशेष महत्व है. जानकार बताते हैं कि अगर किसी खाद्य पदार्थ में पानी कम होगा और शुद्ध पदार्थ होगा तो वह जल्द खराब नहीं होगा. बस यहीं से ठेकुआ की शुरुआत हुई. कम पानी में आटा को गेल आकार देने के लिए आटे को खूब ठोकना पड़ता है, इसी कारण ठोकने के ठोकुआ को और फिर बाद में इसका नाम ठेकुआ हो गया. छठ में ठेकुआ इसलिए शामिल किया गया क्योंकि इस पूजा के प्रसाद को 20 से 24 घंटे रखना पड़ता है. ठेकुआ जल्द खराब नहीं होता है.
प्रमुख प्रसाद
नारियल : छठी मैया को प्रसाद के रूप में नारियल अर्पित किया जाता है. मान्यता है कि इस समय मौसम में हो रहे बदलाव के कारण सर्दी-जुखाम से बचाने के लिए नारियल का प्रयोग किया जाता है. इसे प्रसाद के रूप में खाने से लोगों का सेहत ठीक रहता है.
केला : छठ पूजा में केले का भी खास महत्व है. मैया को पूजा के दौरान इसे अर्पित किया जाता है. इसके बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटकर खुद ग्रहण किया जाता है. मान्यता है कि केले का भोग लगाने से छठ मैया प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा बरसाती हैं.
चावल के लड्डू : छठ मैया को प्रसाद में चावल के लड्डू बेहद पसंद है. छठ के समय ही धान की नई फसल कटती है. ऐसे में सूर्य देव को पहले नई फसल अर्पित की जाती है. इसलिए भोग में चावल के लड्डू का भोग लगाया जाता है.
गन्ना : अर्घ्य देते वक्त पूजन सामग्री में गन्ना रखना जरूरी माना गया है. ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव की कृपा से ही फसल होती है. इसलिए पूजा में सबसे पहले सूर्य देव को नई फसल का प्रसाद अर्पित किया जाता है. छठी मैया को पूजा में गन्ना अर्पित किया जाता है और प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.
डाभ नींबू : छठ पूजा में डाभ नींबू का भी इस्तेमाल किया जाता है. ये देखने में बाहर से पीला और अंदर से रसीला होता है. स्वास्थ्य के लिहाज से ये नींबू वरदान से कम नहीं है. यह कई रोगों से दूर रखता है. ऐसे में कहा जाता है कि ये प्रसाद के रूप में लोगों को जरूर बांटना चाहिए.
साफ-सफाई को ध्यान में रखकर बनाते हैं प्रसाद : प्रसाद बनाते समय कम बोलना होता है और बोलें भी तो दूसरी तरफ घूमकर ताकि प्रसाद में मुंह का गंदा न गिरे. प्रसाद बनाने वाले लोग अंगूठी पहनकर नहीं जाते, क्योंकि उसके अंदर भी प्रसाद का हिस्सा फंसकर बाहर जूठन तक पहुंच सकता है या नीचे गिर सकता है. अंदर का काम पूरा करने के बाद हाथ वहीं बाल्टी में धो लिया जाता है और वहां के कपड़े भी वहीं छोड़ दिए जाते हैं ताकि प्रसाद का हिस्सा बाहर नहीं आ जाए.
प्रसाद बांटने से मिलता है व्रती जितना फल : छठ पर्व के समापन के बाद घर-घर प्रसाद बांटने की परंपरा है. मान्यता है कि माता की उपासना में अगर इन प्रसाद का उपयोग कर लोगों बांटा जाए, तो बांटने वाले व्यक्ति और प्रसाद ग्रहण करने वाले को व्रती जितना फल प्राप्त होता है. पूजा होने के बाद छठ घाट पर लोगों को प्रसाद बांटने की भी परंपरा है. व्रती घाट के ऊपर आकर छठ मैया की कथा सुनते हैं और पानी में भिगोये हुए केराव को प्रसाद के तौर पर बांटते हैं.
सबसे पहले बनता है कद्दू-भात : छठ पूजा के पहले दिन को नहाए-खाए कहा जाता है. इस दिन घर में शाकाहारी भोजन बनाया जाता है, सभी जन नहा-धोकर इसे ग्रहण करते है. शाकाहारी भोजन में कद्दू-भात तैयार किया जाता है यानि के लौकी, चने की दाल और चावल खाए जाते हैं.
पर्व के दूसरे दिन खरना पर खीर : छठ पर्व पर खीर बनना आम बात है. लेकिन छठ के दूसरे दिन यानी खरना पर खीर बनाने की परंपरा सालों से चली आ रही है. इस दिन खीर का सेवन जरूर किया जाता है. छठ पूजा के दूसरे दिन मीठे में दिन चावल की खीर का भोग जरूर लगाया जाता है.
व्रती को पूजा घर में भोजन ग्रहण करना होता है : व्रती को पूजा घर में भोजन ग्रहण करना होता है. भोजन ग्रहण करते समय कोई आवाज आ जाए तो व्रती के हाथ वहीं रुक जाते हैं. व्रती का छोड़ा हुआ भोजन भी प्रसाद स्वरूप माना जाता है. इस प्रसाद को ग्रहण करने से पहले छठी माई का आशीर्वाद लिया जाता है और पूजा में चढ़ा प्रसाद लेकर निकलते समय व्रती से छोटे सभी लोग उनके पैर छूते हैं. उनका छोड़ा भोजन प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. आमतौर पर घर के सदस्य ये खाना जरूर खाते हैं. भोजन के बाद थाली ऐसी जगह धोते हैं, जहां पानी पर किसी का पैर न लगे और इसका धोवन अन्य जूठन में न जाए.