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Maha Kumbh 2025: राममय हुआ प्रयागराज! महाकुंभ में परोसी जा रही राम रस और लंका की चटनी, जानें भोग में क्या कुछ है खास

निरंजनी के अखाड़े के शिविर में पंगत में बैठे लोगों को भोजन कराने वाले सेवक हाथों में बाल्टी लेकर लगतार भोजन के ये नाम पुकार रहे हैं. खाने के ऐसे नाम आपने शायद ही पहले सुने होंगे और अगर आप ध्यान से सुनें तो ऐसा लगेगा कि यहां सब कुछ राम मय हो गया है.

 Prayagraj akhada food Prayagraj akhada food

क्या आपने कभी किसी भंडारे में राम बदल की दाल, लंका की चटनी, पूड़ी या राम लड्डू खाया है? आप कहेंगे बिलकुल नहीं लेकिन प्रयागराज महाकुंभ में लाखों लोगों को इन अनोखे नामों वाले व्यंजन परोसे जा रहे हैं. वो भी बिलकुल मुफ्त.

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निरंजनी के अखाड़े के शिविर में पंगत में बैठे लोगों को भोजन कराने वाले सेवक हाथों में बाल्टी लेकर लगतार भोजन के ये नाम पुकार रहे हैं. खाने के ऐसे नाम आपने शायद ही पहले सुने होंगे और अगर आप ध्यान से सुनें तो ऐसा लगेगा कि यहां सब कुछ राम मय हो गया है. यहां दाल 'राम बदलकर दाल' हो गई, चावल 'चावल राम', पानी 'पानी राम' हो गया है. इतना ही नहीं तामसिक होने के चलते संतों की रसोई में प्रतिबंधित प्याज भी यहां 'लड्डू राम' कहलाती है. मिर्च को लंका पुकारा जाता है. दसअसल अखाड़ों, मठों, मंदिरों में संत परंपरा में जो भी अन्न क्षेत्र चलते हैं खाने पीने से जुड़े नामों में भी राम का स्मरण होता है.

लेकिन यहां भोजन के पदार्थों और व्यंजनों के नाम ही अनोखे नहीं है, यहां का भोजन भी साधारण भोजन नहीं कहलाता. उसे 'भोग प्रसाद' या भोजन प्रसाद कहा जाता है. भोग प्रसाद मतलब देवी-देवताओं को भोग लगा हुआ भोजन जो भोग लगने के बाद प्रसाद हो गया है. संतो के शिविरों में इष्ट-देव और देवी देवताओं को भोग लगाने के साथ ही स्थानीय देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है, कुंभ क्षेत्र में होने के चलते यहां सबसे पहले मां गंगा को भोग लगाया जाता है. भोजन तैयार होने के बाद सेवक 'मां गंगा' के लिए थाली सजाकर अखाड़े के पास गंगा के तट पर पहुंचकर मां गंगा को भोजन का भोग लगाता है और उसी भोग को तैयार भोजन में मिला देता है जिसके बाद भोजन 'भोग प्रसाद' हो जाता है.

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जब आप कभी इस तरह के अन्न क्षेत्र में गंगा के तट पर संतों के अन्न क्षेत्र में भोजन करेंगे, तो यहां आपको वही सादा भोजन मिलेगा जो घरों में बनता है लेकिन जब आप भोजन करेंगे तो इसका स्वाद अलग और दिव्य लगेगा. निरंजनी अखाड़े के कुंभ मेला अध्यक्ष महंत रविन्द्र पूरी के मुताबिक देवी-देवताओं को भोग लगने के बाद भोजन प्रसाद हो जाता है और उसका स्वाद एकदम बदल जाता है. दिव्य और अलौकिक हो जाता है. संतों के पंडालों में लंका की चटनी और सब्जियों में राम रस व रंग बदल की दाल के स्वाद से लोग तृप्त हो जाते हैं.

संतों की रसोई को सीता की रसोई कहते हैं. इनकी रसोई में रखी हर समग्री के अजीबों गरीब नाम है. सभी समाग्रियों को अलग अलग नामों से पुकारा जाता है. रसोई में रखे मिर्च को लंका कहते हैं. सब्जी और दाल में मिश्रण होने वाली हल्दी पाउडर को रंगबदल कहा जाता है. इसी तरह से सब्जियों और दाल में पड़ने वाले नमक को रामरस कहते हैं. इतना ही नहीं चावल यानि भात को महाभोग, या फिर महाप्रसाद और रोटी को टिकर या रामरति कहते हैं. यहां भंडारे में भोजन करने वाले को प्रसाद पाना कहते हैं जबकि भोजन बनाने वाले को भंडारी कहा जाता है.

कुंभ मेला क्षेत्र में साधू संतों के बोलचाल की शब्दावली को समझना सब के बस की बात नहीं है. उनकी शब्दावली को उसके साथ रहने वाले संत ही समझ सकते हैं. कहा जाता है कि अपने जीवन को प्रभु की शरण में सौंपने के बाद उनकी दैनिक दिनचर्या और आम बोलचाल भी अजीब हो जाती है. उनके जीवन के हर कण में श्रीराम का नाम बस जाता है. यहां तक कि उनका खान पान में भी राम के नाम से ही शुरू होती है.

संतों की असली पहचान है रामनाम. जो अखाड़े के सच्चे संत होते हैं, उन्हें इन नामों की पहचान होती है. जो फर्जी साधू होते हैं, उन्हें इस रामनाम का ज्ञान नहीं होता है. संतों के मन में राम के सिवाय कुछ नहीं हैं. इसलिए यहां की रसोई में रामनाम होता है. रामनाम से अन्नक्षेत्र में कमी नहीं होती, भंडार बढ़ता रहता है.

तीर्थराज प्रयागराज में लगने वाले कुंभ की अपनी एक अलग महिमा है. यहां की हर एक बात रोचक और कई रहस्यमय कहानियों से जुड़ी हुई है. संगमतीरे लगने वाले माघ मेला, कुंभ, अर्धकुम्भ या फिर 12 वर्षों में लगने वाला महाकुंभ हो.. संतों के पंडालों में अन्न क्षेत्र अनवरत चलता रहता है. इस बार महाकुंभ में भी यही तस्वीर देखने को मिल रही है.

-आनंद रज की रिपोर्ट