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Mahakumbh Mela 2025: नागा साधुओं का Prayagraj में लगा जमावड़ा... महाकुंभ से क्या है इनका संबंध... जानिए महिलाएं कैसे बनती हैं Naga Sadhu, कितना कठीन होता है इनका जीवन

Mahila Naga Sadhu: हिंदू धर्म में महाकुंभ के दौरान अखाड़ों के शाही जुलूस और शाही स्नान का विशेष महत्व बताया गया है. शाही स्नान में महिला नागा साधु भी हिस्सा लेती हैं. वे पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद तुरंत जंगलों में तप करने के लिए चली जाती हैं. यही कारण है कि बहुत कम लोग ही इनका दर्शन कर पाते हैं. महिला नागा साधु का दिखना बेहद शुभ माना जाता है.

Mahila Naga Sadhu (Photo: Social Media) Mahila Naga Sadhu (Photo: Social Media)
हाइलाइट्स
  • महिला नागा साधु बनने के लिए करना होता है ब्रह्मचर्य का पालन

  • कुंभ या महाकुंभ मेले के दौरान ही महिला नागा साधु देती हैं दर्शन 

 Mahila Naga Sadhu Kaise Banti Hai: यूपी (UP) का प्रयागराज (Prayagraj) 12 सालों के बाद फिर महाकुंभ के लिए तैयार है. यहां पर 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी 2025 तक महाकुंभ मेले (Mahakumbh Mela 2025) का आयोजन किया जाएगा. इस मेले में हिस्सा लेने के लिए सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं.

ऐसी मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान गंगा नदीं में आस्था की डुबकी लगाने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऋषियों के काल से लगने वाले इस महाकुंभ मेले में भाग लेने के लिए प्रयागराज में नागा साधुओं (Naga Sadhu) का जमावड़ा लगने लगा है. इसमें महिला नागा साधु भी शामिल हैं. वह भी शाही स्नान में हिस्सा लेंगी. आइए जानते हैं कोई महिला कैसे नागा साधू बनती हैं और क्या है इनके लिए नियम?

महिला नागा साधुओं का जीवन होता है बेहद कठिन 
आदिगुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्‍थापना के लिए कई कदम उठाए थे. इसमें से एक था देश के चारों कोनों पर 4 पीठों का निर्माण. शंकराचार्य ने ही सबसे पहले अखाड़ा बनाए थे. मौजूदा समय में अखाड़ों की संख्या बढ़कर 14 हो गई. नागा साधू किसी न किसी अखाड़ों से जुड़े होते हैं. इनमें महिला नागा साधु भी होती हैं. महिला नागा साधुओं का जीवन बेहद कठिन होता है. इन्‍हें कई साल तक कठिन तप करना होता है.

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ब्रह्मचर्य का करना होता है पालन
किसी भी महिला को नागा साधु बनने के लिए सबसे पहले 10 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. ऐसा करने के बाद ही नागा गुरुओं की ओर से यह तय किया जाता है कि महिला को नागा साधु बनाया जा सकता है. नागा महिला साधु पूरी तरह से मोह-माया से दूर हो चुकी है, इस बात की तहकीकात करने के लिए अखाड़ा के साधु महिला के घर-परिवार की पूरी तरह से जांच करते हैं. महिला नागा को अखाड़े के सभी साधू और संत माता कहते हैं और पूरा सम्मान देते हैं. 

जीते जी करती हैं अपना पिंडदान
किसी भी महिला को नागा साधु बनने के लिए सिर का मुंडन कराना पड़ता है. इतना ही नहीं जीते जी अपना पिंडदान कराना पड़ता है. इसके बाद महिला नागा साधु खुद को मृत मान लेती हैं. वह ये स्वीकार कर लेती हैं कि वो अब एक अध्यात्म के सफर पर निकल पड़ी हैं और अब उनका सारा जीवन ईश्वर को समर्पित होता है. महिला नागा साधु जंगलों, गुफाओं और पहाड़ों पर रहती हैं और भगवान शिव की भक्ति करती हैं. वे केवल कुंभ-महाकुंभ जैसे खास मौकों पर ही दुनिया के सामने आती हैं.

गेरुआ वस्त्र करती हैं धारण
पुरुष नागा साधुओं की तरह महिला नागा साधु निर्वस्‍त्र नहीं रहती हैं, बल्कि वे गेरुआ वस्त्र धारण करती हैं. यह वस्त्र कहीं से भी सिला नहीं होता है. यह वस्त्र उनके तन को ढकने के लिए होता है. इनका यह वस्त्र साधना और साधु जीवन के प्रतीक के रूप में काम करता है. महिला नागा साधुओं के माथे पर तिलक होता है. पुरुष नागा साधुओं की तरह वह भी अपने पूरे शरीर पर भष्म लगाती हैं. महिला नागा साधु सादा जीवन जीती हैं.

महिला नागा साधु भी शाही स्नान में लेती हैं हिस्सा  
कुंभ मेले में विभिन्न अखाड़ों के नागा साधु एक-दूसरे से मिलते हैं और अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं. कुंभ मेले के दौरान नागा साधुओं को अपनी परंपरा, ज्ञान और साधना का प्रदर्शन करने का अवसर मिलता है. कुंभ मेले में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में शाही स्नान का विशेष महत्व होता है. नागा बाबा इस खास अवसर पर 12 साल के बाद स्नान कर अपने तप और साधना को सिद्ध करते हैं. शाही स्नान में महिला नागा साधु भी हिस्सा लेती हैं. महिला नागा साधु शाही स्नान पुरुष नागा साधुओं के स्नान करने के बाद ही करती हैं. वह अलग जगह पर शाही स्नान करती हैं. महिला नागा साधु कुंभ या महाकुंभ मेले के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद तुरंत जंगलों में तप करने के लिए चली जाती हैं. यही कारण है कि बहुत कम लोग ही इनका दर्शन कर पाते हैं. महिला नागा साधु का दिखना बेहद शुभ माना जाता है.

शाही स्नान की तिथियां 
1. 13 जनवरी 2025: पौष पूर्णिमा के दिन पहला शाही स्नान. 
2. 14 जनवरी 2025: मकर संक्रांति के दिन दूसरा शाही स्नान. 
3. 29 जनवरी 2025: मौनी अमावस्या के दिन तीसरा शाही स्नान. 
4. 3 फरवरी 2025: बसंत पंचमी के दिन चौथा शाही स्नान.
5. 12 फरवरी 2025: माघ पूर्णिमा के दिन पांचवा शाही स्नान. 
6. 26 फरवरी 2025: महाशिवरात्रि के दिन आखिरी शाही स्नान.