कहते हैं राधा धरती पर कृष्ण की इच्छा से ही आईं थीं. जन्म के 11 महीनों तक राधा ने अपनी आंखे नहीं खोलीं थीं. कुछ दिन बाद वो बरसाने चली गईं. जहां पर आज भी राधा-रानी का महल मौजूद है. राधाजी वृंदावन की अधीश्वरी हैं. वृंदावन से 43 किलोमीटर दूर बरसाना के ब्रह्माचल पर्वत पर राधारानी लाडली सरकार स्वरूप में विराजती हैं. राधारानी का ये दरबार श्री जी दरबार के नाम से भी प्रसिद्ध है. कहते हैं कि इस दरबार में राधारानी प्रेम के अखंड आशीर्वाद के साथ-साथ धन और ऐश्वर्य का भी वरदान देती हैं.
कौन हैं श्री राधा जी ?
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बरसाने में राधा जी का जन्म हुआ था. इस दिन को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है. राधा जी का जन्म कृष्ण के साथ सृष्टि में प्रेम भाव मजबूत करने के लिए हुआ था. कुछ लोग मानते हैं कि राधा एक भाव है, जो कृष्ण के मार्ग पर चलने से प्राप्त होता है. हर वह व्यक्ति जो कृष्ण के प्रेम में लीन होता है, राधा कहलाता है. अष्टमी तिथि 3 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर आरंभ होगी. इस तिथि का समापन 4 सितंबर रविवार सुबह 10.40 पर होगा. उदया तिथि के अनुसार राधा अष्टमी का पर्व 04 सितंबर को मनाया जाएगा
जब राधाष्टमी का त्योहार करीब आता है, तो राधे के भक्त राधे की धुन में सराबोर हो जाते हैं. राधाष्टमी ही वह दिन होता है, जब भक्त राधा रानी के चरणों के शुभ दर्शन प्राप्त करते हैं, क्योंकि दूसरे दिनों में राधा के पैर ढके रहते हैं.
लाडली के जन्मोत्सव को धूमधाम से मनाने की तैयारी यहां पहले से ही शुरु हो जाती है. राधाष्टमी भगवान और मनुष्य के बीच एक अद्वितीय संबंध का प्रतीक है, जो श्रीकृष्ण और राधारानी के निःस्वार्थ दैवीय प्रेम बंधन को दर्शाता है. मान्यता है कि राधाष्टमी का व्रत व पूजन करने से घर पर सुख-समृद्धि, शांति और खुशहाली आती है.
राधाष्टमी को कैसे करें श्री राधा जी की पूजा ?
राधा जी की धातु या पाषाण की प्रतिमा ले आयें. पंचामृत से स्नान कराके , उन्हें नवीन वस्त्र धारण कराएँ. मध्यान्ह में मंडप के भीतर ताम्बे या मिट्टी के बर्तन पर दो वस्त्रों में राधा जी की मूर्ति स्थापित करें. भोग लगाकर, धूप,दीप, पुष्प अर्पित करें. राधा जी की आरती करें. सम्भव हो तो उपवास करें. दूसरे दिन सौभाग्यवती स्त्री को श्रृंगार की सामग्री और मूर्ति का दान करें. तब जाकर सम्पूर्ण भोजन ग्रहण करके व्रत का पारायण करें.
जैसे जन्माष्टमी कृष्ण भक्तों के लिए कृष्ण की भक्ति में डूब जाने का महापर्व है. उतना ही महत्वपूर्ण है वृषभान की दुलारी राधारानी का जन्मोत्सव भी है. राधाष्टमी पर जो भी सच्चे मन और श्रद्धा से राधा जी की आराधना करता है, उसे जीवन में सभी प्रकार के सुख-साधनों की प्राप्ति होती है.
राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी सदियों बाद भी लोगों के दिलोदिमाग में ताजा है. एक ऐसा प्रेम जो जितना चंचल और निर्मल रहा. उतना ही जटिल और निर्मम भी. सदियों से भले ही कृष्ण के साथ राधा का नाम लिया जाता रहा हो, लेकिन ये प्रेम कहानी अधूरी ही रही. इस अधूरी कहानी में फिर भी एक संपूर्णता है. शास्त्रों में श्री राधा, कृष्ण की शाश्वत शक्तिस्वरूपा और प्राणों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वर्णित हैं. यानि राधा की पूजा के बिना श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी मानी गई है.
प्रेम में सफलता के लिए कैसे करें श्री राधा की उपासना
राधा कृष्ण की संयुक्त पूजा करें.
कृष्ण जी को पीला और राधा जी को गुलाबी वस्त्र अर्पित करें.
"राधावल्लभाय नमः" का जाप करें.
अखंड भक्ति के लिए क्या उपाय करें ?
राधा और कृष्ण की मध्यान्ह में संयुक्त पूजा करें.
उनके समक्ष घी का एक दीपक जलाएं.
तुलसी दल और मिसरी समर्पित करें.
"मेरी भव बाधा हरो , राधा नागरी सोई ,
जा तन की झाईं परे , श्याम हरित दुति होई."
इस दोहे का 108 बार जप करें.
बता दें कि श्रीराधाजी की स्तुतियों में श्री राधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र का स्थान सर्वोपरि है. इसीलिए इसे 'श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तवराज' नाम दिया गया है यानि स्तोत्रों का राजा. ब्रजभक्तों में इस स्तुति को बहुत सम्मान का स्थान प्राप्त है. अगर आप इसका पाठ रोजाना नहीं कर सकते हैं, तो विशेष तिथियों जैसे अष्टमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी और पूर्णिमा तिथि पर इसका पाठ जरूर करें.
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