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Mahakumbh 2025: रिसर्च का कहना महाकुंभ में 40 प्रतिशत महिलाएं, युवा वर्ग बढ़-चढ़ कर ले रहा भाग.. जानें और क्या कहता है शोध

Govind Ballabh Pant Social Science Institute ने महाकुंभ 2025 पर शोध करने का फैसला किया हुआ है. और इस दौरान वहां कई स्नान घाटों पर शोध किया जा रहा है. इस दौरान उन्हें वहां कई ट्रेंड देखने को मिल रहे हैं.

महाकुंभ 2025 आस्था का एक ऐसा मेला है जहां केवल राज्यों के ही नहीं बल्कि विदेश से लोग शिरकत करने आ रहे है. हर कोई आस्था की डुबकी लगाना चाहता. भीड़ का आलम इतना हो चुका है कि प्रशासन पर प्रेशर बढ़ गया है.

इस बार के मेले की बात करें तो क्या बुजुर्ग क्या जवान हर किसी को इस मेले में देखा जा सकता है. और दिखें भी क्यों नहीं पावन डुबकी जो लगानी है. साथ ही संतों के भी दर्शन होंगे. इसी बीच एक रिसर्च का छोटा सा रूप सामने आया है जो काफी हैरानी वाला है.

महिलाओं की बड़ी संख्या
दरअसल यह रिसर्च Govind Ballabh Pant Social Science Institute कर रहा है. वह महाकुंभ 2025 में ट्रेंड और पैटर्न को समझने की कोशिश कर रहा है. और प्रारंभिक रूप से उसने कुछ पैटर्न और ट्रेंड भी निकाले हैं.

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संस्थान के निदेशक प्रोफेसर बद्री नारायण और एसोसिएट प्रोफेसर अर्चना सिंह के नेतृत्व में 17 सदस्यीय टीम इस रिसर्च को कर रही है. टीम के सदस्य अलग-अलग स्नान घाटों पर मौजूद है. वह वहां मौजूद उपस्थित लोगों से बातचीत कर रहे हैं और उनके दृष्टिकोण को समझने की कोशिश कर रहे हैं. 

रिसर्च के शुरुआती ट्रेंड से पता चलता है कि महाकुंभ आ रहे लोगों में 40 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं. जिनमें 18-35 वर्ष की आयु के लोगों को ज्यादा देखा जा सकता है. साथ ही यह लोग किसी गांव से नहीं बल्कि शहरों से हैं.

समाज निभा रहा बड़ी भूमिका
एक ट्रेंड यह भी देखा जा रहा है कि महाकुंभ में महिलाएं इंडीपेंडेंट ग्रुप बनाकर जा रही है. अर्चना सिंह के अनुसार, यह ट्रेंड के पीछे शिक्षा, आत्मविश्वास में बढ़ेत्तरी और सामाज में होते बदलाव का काफी बड़ा हाथ है.

पहले के मुकाबले, अब महिलाएं घरेलू काम-काज से परे धार्मिक काम में अधिक भूमिका निभा रही हैं. रिसर्च करने वालों ने यह भी पाया है कि सुरक्षित माहौल महिलाओं को स्वतंत्र रूप से यात्रा करने और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है.

रिसर्चर प्रीति यादव ने कहा कि महिलाएं जिस तरह से धार्मिक और आध्यात्मिक प्रथाओं में हिस्सा ले रही हैं, उससे भागीदारी के पैटर्न में बदलाव साफ देखा जा सकता है. महिलाएं ज्यादा संख्या में संतों से ज्ञान भी प्राप्त कर रही है. इसके अलावा धर्म के बारे में भी उन्हें संतों से काफी कुछ सीखने को मिल रहा है.