हिंदू धर्म में सकट चौथ व्रत का विशेष महत्व होता है. 10 जनवरी 2023 को सकट चौथ मनाया जा रहा है. सकट चौथ व्रत भगवान गणेश को समर्पित होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार यह व्रत हर वर्ष माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार साल के पहले महीने यानी जनवरी में यह त्योहार मनाया जाता है. सकट चौथ को तिलकुटा चौथ, तिल चौथ,माघी चौथ, संकष्टी चतुर्थी, लंबोदर चतुर्थी के नाम से जाना जाता है.
एक वर्ष में कुल 24 चतुर्थियां होती हैं
हिंदू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में कुल 24 चतुर्थियां होती है. महीने में दो चतुर्थी तिथि आती है जिसमें एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष आती है. सालभर में आने वाली सभी चतुर्थी तिथि में माघ कृष्ण पक्ष की सकट चौथ का विशेष स्थान होता है. इस बार सकट चौथ पर सर्वार्थ सिद्धयोग भी बन रहा है. सकट चौथ का व्रत महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि और सपन्नता के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत रखती हैं.
सकट चौथ पर हो रहा है इन शुभ योग का निर्माण
सकट चौथ व्रत के दिन तीन अत्यंत शुभ योग का निर्माण हो रहा है. इनमें सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07:15 से प्रातः 09:01 तक रहेगा. आयुष्मान योग प्रातः 11:20 से पूरे दिन रहेगा और प्रीति योग सूर्योदय से लेकर सुबह 11:20 तक बना रहेगा. इस दिन भद्रा का साया भी लग रहा है. पंचांग के अनुसार भद्रा काल सुबह 07:15 से दोपहर 12:09 तक रहेगा. इस अवधि में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य को करने की मनाही है.
चंद्रोदय का समय
चंद्रोदय शाम 08 बजकर 41 मिनट पर होगा. ऐसे में सकट चौथ व्रत का पारण इसके बाद ही होगा. चंद्रोदय के समय चांदी के पात्र में दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य दें. ऐसा करने से चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और सभी नकारात्मकताएं खत्म हो जाती हैं.
सकट चौथ व्रत कथा
सकट चौथ व्रत कथा के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. इनमें से एक कथा भगवान शंकर, माता पार्वती और गणेश से जी से जुड़ी है. प्रचलित मान्यतानुसार मां पार्वती एक बार स्नान करने के लिए गईं. स्नान करने से पहले गणेश जी को खड़ा किया और कहा कि जब तक मैं स्नान करके बाहर नहीं आऊ तब तक किसी को अंदर आने मत देना. गणेश भगवान अपनी मां की बात का पालन करते हुए पहरा देने लगे. इसी दौरान भगवान शंकर मां पार्वती से मिलने आ गए. लेकिन गणेशजी ने उन्हें दरवाजे पर रूकने को कहा. भगवान शंकर को यह बात बहुत खराब लगी और वे क्रोधित हो गए. इसके बाद आवेश में आकर भगवान शंकर ने त्रिशूल से गणेश जी पर वार कर दिया. जिससे उनकी गर्दन शरीर से अलग हो गई. शोरगुल सुन जब माता पार्वती बाहर आकर देखीं तो गणेश जी की गर्दन कटी हुई पड़ी थी. यह देख मां पार्वती रोने लगीं और शंकर भगवान से गणेश जी का प्राण वापस मांगी. जिसके बाद भगवान शंकर ने हाथी का सूड सहित सिर लाकर गणेश जी को के शरीर में जोड़ दिया और गणेश जी को दूसरा जीवन मिल गया. तभी से गणेश जी का सिर हाथी की सूंड की तरह हाथी की तरह हो गया. उसी समय से महिलाएं संतान की लंबी आयु के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत रखती हैं.