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Shiva Sati Vivah Katha: पिता की मर्जी के खिलाफ माता Sati ने किया था भगवान शिव से विवाह, अर्धांगिनी के लिए Bholenath ने किया था तांडव, जानिए पौराणिक कथा

Shiva Tandava Katha: राजा दक्ष की पुत्री माता सती के साथ भगवान शिव का विवाह हुआ था. राजा दक्ष को पसंद नहीं था कि उनकी बेटी की शादी भोलेनाथ के साथ हो. लेकिन दोनों का विवाह हुआ, जिसे राजा दक्ष नाराज हो गए. काफी सालों बाद राजा दक्ष ने यक्ष का आयोजन किया. जिसमें बेटी सती और जमाई भोलेनाथ को नहीं बुलाया. माता सती बिना बुलाए यज्ञ में पहुंची. दक्ष ने उनका अपमान किया. जिससे नाराज होकर माता सती ने खुद को अग्नि की हवाले कर दिया.

Shiva Sati Vivah Shiva Sati Vivah

भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष हिमालय क्षेत्र में रहते थे. दक्ष की पत्नी प्रसूति से माता सती का जन्म हुआ था. माता सती और भगवान शिव की शादी हुई थी. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मांड में सबसे पहले भगवान शंकर और माता सती की शादी हुई थी. उसके बाद विष्णु, ब्रह्मा और दूसरे देवी-देवताओ की शादी हुई थी.

माता सती और भगवान शिव की शादी-
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान शिव अक्खड़ और योगी थे. उनका रहन-सहन बाकी देवताओं से अलग था. एक तरफ सारे देवी-देवता हीरे-मोती के गहने और रेशमी वस्त्र धारण करते थे, वहीं भोलेनाथ भस्म, गले में लिपटे सांप, पर्वत और जंगलों में अपना बसेरा बनााए हुए थे. इस वजह से राजा दक्ष भगवान शिव को अपनी बेटी सती के लिए सुयोग्य वर नहीं मानते थे. लेकिन माता सती ने भोलेनाथ को पाने के लिए कठोर तप किया था.

जब राजा दक्ष ने माता सती का स्वयंवर आयोजित किया था, तब भगवान शिव को आमंत्रण नहीं दिया था. लेकिन जब सती स्वयंवर में पहुंची और शिव को नहीं  पाया तो उन्होंने भगवान शिव का नाम लेकर माला धरती पर रख दिया. इसके बाद भगवान शिव प्रगट हुए और सती की माला को पहन लिया. भोलेनाथ सती को अपनी पत्नी स्वीकार कर वहां से चले गए. ये बात राजा दक्ष को पसंद नहीं आई कि उनकी मर्जी के खिलाफ उनकी बेटी सती की शादी भोलेनाथ से हो गई है.

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माता सती ने अग्निकुंड में खुद को भस्म किया-
भगवान शिव के साथ शादी होने के बाद माता सती कैलाश पर्वत पर चली गईं. लेकिन एक बार राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में दक्ष ने सारे देवी-देवताओं को बुलाया. लेकिन अपनी बेटी सती और जमाई भोलेनाथ को नहीं बुलाया. जब सती को इस बात का पता चला तो वो बिना बुलाए यज्ञ में चली गईं. भगवान शिव ने माता सती को यज्ञ में जाने से रोका. उन्होंने कहा कि बिना बुलाए किसी भी शुभ कार्य में जाना मृत्यु के समान है. शिवजी के मना करने के बाद भी माता सती यज्ञ में शामिल हुईं. यज्ञस्थल पर राजा दक्ष ने सती और भोलेनाथ का अपमान किया. जिसे माता सती सहन हीं कर पाईं और यज्ञ कुंड में कूद गईं. 

भगवान शिव ने किया तांडव-
माता सती ने अग्निकुंड में खुद को भस्म कर लिया. जब ये बात भगवान शिव को पता चली  त्राहिमाम मच गया.  भोलेनाथ ने वीरभद्र को उत्पन्न किया और राजा दक्ष के यज्ञ को विध्वंस कर दिया. वीरभद्र ने राजा दक्ष का मस्तक काट दिया. भगवान शिव गुस्से में कनखल पहुंचे और सती के जले हुए शरीर को देखकर खुद को भूल गए. भगवान शिव ने सती के अधजले शरीर को कंधे पर उठा लिया और सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगे. सती के वियोग में भगनाव शिव क्रोधित होकर तांडव करने लगे. इससे धरती पर संकट खड़ा हो गाय. इसे देखकर सारे देवी-देवता व्याकुल हो गए. उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की. इसके बाद भगवान विष्णु ने सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से काट दिए. धरती पर 51 जगहों पर माता सती के अंग के टुकड़े गिरे. ये स्थान आज भी शक्तिपीठ माने जाते हैं.

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