व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का होता है. एकादशी व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर दोनों पर पड़ता है. धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त एकादशी का व्रत रखते हैं उनके घर खुशहाली आती है. अभी सावन का पवित्र महिना चल रहा है. पंचांग के मुताबिक सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) का व्रत रखा जाता है.
यह संतान और उससे जुड़ी समस्याओं से मुक्ति दिलाने वाला व्रत है. इस दिन भक्त भगवान विष्णु (Lord Vishnu) और माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन श्रीकृष्ण भगवान की भी आराधना की जाती है. मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी पर नारायण स्वयं भक्त का उद्धार करते हैं. इस दिन व्रत रखने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही सुहागिनों के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है.
पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त
हिंदू कैलेंडर के अनुसार सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 15 अगस्त 2024 को सुबह 10 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी. इसका समापन 16 अगस्त को सुबह 09 बजकर 39 मिनट पर होगा. ऐसे में उदयातिथि की मान्यता के मुताबिक सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत 16 अगस्त दिन शुक्रवार को रखा जाएगा.
श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत पर प्रीति योग का निर्माण हो रहा है. इस योग का निर्माण दोपहर 1 बजकर 12 मिनट से हो रहा है. इस समय में भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्त पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनती है. पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है. अगले दिन यानी 17 अगस्त को सुबह 05 बजकर 51 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 05 मिनट तक व्रती पारण कर सकते हैं.
दो प्रकार से रख सकते हैं व्रत
पुत्रदा एकादशी व्रत दो प्रकार से रखा जाता है. पहला निर्जल व्रत और दूसरा फलाहारी या जलीय व्रत. निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए. सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए.बेहतर होगा कि केवल जल और फल का ही सेवन किया जाए. संतान संबंधनी मनोकामनाओं के लिए एकादशी के दिन भगवान कृष्ण या श्री हरि की उपासना करना चाहिए.
पूजा विधि
1. पुत्रदा एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
2. इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनना बेहद शुभ होता है.
3. इस दिन भगवान विष्णु का ध्यान करके पुत्रदा एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
4. इसके बाद पूजा-अर्चना के लिए चौकी सजाएं और उसपर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं.
5. फिर चौकी पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें.
6. इसके बाद घी का दीपक जलाएं.
7. फिर पंजीरी, पंचामृत, पीले फूल, आम के पत्ते, अक्षत, पंचमेवा, धूप, फल, पीले वस्त्र और मिठाई भगवान के समक्ष अर्पित करें.
8. पूजा के मंत्रों का जाप करें और आरती गाएं.
9. आखिर में भोग लगाकर पूजा पूरी करें और प्रसाद का वितरण करें.
10. इस दिन गरीबों को दान करें. ब्राह्मण को भोजन कराएं.
राजा ने व्रत रखने का लिया था संकल्प
कहते हैं कि द्वापर युग में महिष्मती नाम की एक नगरी थी. इस नगरी में महीजित नाम का राजा राज्य करते थे लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी. कहते हैं कि संतान सुख के लिए राजा ने अनेक जतन किए लेकिन राजा को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो पाई. कहते हैं कि तब राजा ने राज्य के सभी ऋषि-मुनियों को बुलाकर संतान प्राप्ति के उपाय पूछे.
कहते हैं कि तब राजा की बात सुनकर ऋषि मुनियों ने कहा कि हे राजन आप पूर्व जन्म में एक व्यापारी थे और आपने सावन माह की एकादशी के दिन अपने तालाब से जल पीती हुई एक गाय को जल नहीं पीने दिया था. इसके कारण उस गाय ने तुम्हे संतान न होने का श्राप दिया था. हे राजन यदि आप और आपकी पत्नी पुत्रदा एकादशी का व्रत रखें तो आपको इस श्राप से मुक्ति मिल सकती है. जिसके बाद आपको संतान सुख की प्राप्ति हो सकती है. यह सुनकर राजा ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने का संकल्प लिया. इसके बाद न केवल राजा श्राप से मुक्त हो गया बल्कि उन्हें संतान की प्राप्ति भी हो गई.