यूं तो शिमला का मौसम और प्राकृतिक सौंदर्य देश ही नहीं बल्कि विदेशों में अपनी विशेष पहचान रखता है. लेकिन शिमला में मौजूद जाखू जी का मंदिर लोगों की आस्था का भी केंद्र है. एतिहासिक जाखू पर्वत के शिखर पर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर दुनियाभर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी रहा है. दरअसल त्रेता युग में राम- रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण को मेघनाथ के शक्ति बाण की मूर्छा से बचाने के लिए हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने सुमेरू पर्वत पर गए थे. इसी यात्रा के बीच में हनुमान जी जब शिमला की सबसे ऊंची चोटी जाखू पर्वत पर विश्राम करने के लिए रूके थे.
इस मार्ग पर बनाया गया रोपवे
एतिहासिक जानकारियों और दंतकथाओं के अनुसार जाखू पर्वत उतर भारत का प्रसिद्ध शक्ति स्थल है, जहां स्वयं पवनपुत्र हनुमान जी का वास है. ऐसी मान्यता है कि लंका में युद्ध के दौरान मूर्छित लक्ष्मण को बचाने के लिए हनुमान जी आकाश मार्ग से संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय की ओर जा रहे थे, तो अचानक उनकी दृष्टि जाखू पर्वत पर दिव्य ज्योति व तपस्या में लीन यक्ष ऋषि पर पड़ी. बाद में यक्ष ऋषि के नाम पर ही इस भव्य धाम का नाम जाखू पर्वत पड़ा. आज जाखू मंदिर पहुंचने के लिए जाखू रोपवे का निर्माण भी किया गया है. करीब 10 साल की कड़ी मशक्कत के बाद ये जाखू रोपवे बनकर तैयार हुआ है. जाखू रोपवे के बनने के बाद अब पर्यटक महज 6 मिनट में जाखू मंदिर पहुंच जाते हैं. इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है.
रोपवे की मदद से 6 मिनट में होती है चढ़ाई
जाखू मंदिर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से करीब आधे घंटे की कठिन चढ़ाई तय करके पहुंचा जा सकता है. इसके इलावा जाखू मंदिर जाने के लिए अब जाखू रोपवे के निर्माण भी किया गया है. जाखू मंदिर तक पहुंचने के लिए अब महज 6 मिनट का सफर तय करना पड़ता है. जाखू रोपवे के मैनेजर मदन लाल शर्मा का कहना है कि जाखू रोपवे के निर्माण के बाद अब अधिकतर सैलानी जाखू मंदिर जाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बताया कि जाखू रोपवे के निर्माण में कई बाधाएं आईं लेकिन करीब 10 साल बाद जाखू रोपवे बनने से ये सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है.
क्या है मंदिर का इतिहास?
जाखू रोपवे के मैनेजर मदन लाल शर्मा ने बताया कि संजीवनी बूटी के बारे में जानने के लिए हनुमान जी यहां पर उतर गए. उनके वेग से जाखू पर्वत जोकि पहले काफी ऊंचा था, आधा पृथ्वी के गर्भ में समा गया. संजीवनी बूटी के बारे में जानने के बाद हनुमान जी अपने उद्देष्य को पूरा करने के लिए हिमालय में द्रोण पर्वत की तरफ चले गए. जिस स्थल पर हनुमान जी उतरे थे, वहां पर आज भी जाखू में उनके चरणचिन्हों को मंदिर में अलग से एक कुटिया बनाकर संगमरमर से निर्मित कर सुरक्षित रखा गया है. मान्यता है कि यक्ष ऋषि को वापिसी में इसी सथान पर लौटने का वचन देकर हनुमान जी मार्ग में कालनेमी के कुचक्र में ज्यादा समय नष्ट होने के कारण छोटे मार्ग से होते हुए लंका लौट गए. उधर वे हनुमान जी के लौटने का व्याकुलता से इंतजार करते रहे. उसी समय हनुमान जी ने ऋषि को दर्षन दिए और लौटकर वापिस न आने कारण बताया. माना जाता है कि हनुमान जी के ओझल होने के तुरंत बाद जाखू पर्वत पर एक स्वयंभू मूर्ति के रूप में प्रकट हुए.
(शिमला से विकास शर्मा की रिपोर्ट)