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दिन में दो बार पानी में डूब जाता है ये शिव मंदिर, जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य

स्तंभेश्वर मंदिर गुजरात के गांधीनगर से लगभग 175 किमी दूर जंबूसर के कवि कंबोई गांव में मौजूद है. गांधीनगर से इस जगह तक पहुंचने में आपको ड्राइव करने में 4 घंटे का समय लगेगा. इस मंदिर का इतिहास 150 साल पुराना है.

स्तंभेश्वर मंदिर स्तंभेश्वर मंदिर
हाइलाइट्स
  • गुजरात के गांधीनगर में मौजूद है ये मंदिर

  • यहां पर हुआ था ताड़कासुर का वध

दुनियाभर में भगवान भोलेनाथ के कई स्वरूप हैं. महादेव के कई मंदिर भारत भर में मशहूर हैं. आज तक आपने भी कई मंदिरों के दर्शन किए होंगे. ऐसे कई मंदिर हैं जहां भगवान शंकर के मुर्तियां स्थापित और लेकिन गुजरात में एक ऐसा मंदिर है जो दिन में केवल दो बार दर्शन देता है और फिर जलमग्न हो जाता है. यहां पानी भी दो शिवजी का जलाभिषेक करता है. हम बात कर रहे हैं गुजरात के स्तंभेश्वर मंदिर की. इस मंदिर की खासियत ये है कि ये दिन में दो बार गायब हो जाता है और फिर अपनी जगह दिखने लगता है. 
इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जमा होती है. तो चलिए आपको बताते हैं आखिर इस मंदिर के पीछे का रहस्य क्या है?

कहां स्थित है ये मंदिर?
स्तंभेश्वर मंदिर गुजरात के गांधीनगर से लगभग 175 किमी दूर जंबूसर के कवि कंबोई गांव में मौजूद है. गांधीनगर से इस जगह तक पहुंचने में आपको ड्राइव करने में 4 घंटे का समय लगेगा. इस मंदिर का इतिहास 150 साल पुराना है. ये अरब सागर की खंभात खाड़ी से घिरा हुआ है. इस मंदिर की महिमा देखने के लिए आपको सुबह से शाम तक यहां रुकना पड़ेगा. 

क्या है इस मंदिर के पीछे की कहानी?
शिव पुराण पुराण के अनुसार, ताड़कासुर का नाम का एक असुर था. जिसने अपनी तपस्या से भगवान शिव को खुश कर दिया था. इसके बदले ने शिव ने उसे मनचाहा वरदान दिया था. शिव ने ये वरदान दिया था उस असुर को शिव पुत्र के अलावा कोई और मार नहीं सकता, और पुत्र की आयु भी 6 दिन की ही होनी चाहिए. ये वारदान मिलने के बाद चारों तरफ ताड़कासुर का आतंक फैलने लगा. असुर के आतंक से परेशान होकर देवताओं और ऋषि मुनियों ने भगवान शिव से उसका वध करने की प्रार्थना की. ऋषि मुनियों की प्रार्थना सुनने के बाद श्वेत पर्वत कुंड से 6 दिन के कार्तिकेय ने जन्म लिया और असुर का वध कर दिया. लेकिन शिव भक्त की जानकारी मिलने के बाद उन्हें बेहद दुख पहुंचा.

क्या है मंदिर बनवाने की वजह?
कार्तिकेय को जब इस बात का एहसास हुआ, तो उन्हें इस बात का पछतावा होने लगा. तब भगवान विष्णु ने उन्हें प्रायश्चित करने का मौका दिया. भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया कि जहां उन्होंने असुरा का वध किया है, वहां शिवलिंग की स्थापना करें. और इसी तरह इस मंदिर को स्तंभेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाने लगा.

दिन में दो बार क्यों डूबता है मंदिर?
भले ही भारत में समुद्र के अंदर कई तीर्थ स्थल हैं, लेकिन ऐसा कोई भी मंदिर नहीं हैं जो पानी में पूरी तरह डूब जाता हो. हालांकि स्तंभेश्वर मंदिर इकलौता ऐसा मंदिर है जो दिन में दो बार पानी में डूबता है. इसके पीछे का कारण प्रकृतिक है, दरअसल दिन में पानी का स्तर बढ़ जाता है. जिस वक्त मंदिर पूरी तरह डूब जाता है. दिन में दो बार पानी का स्तर बढ़ता है तो मंदिर डूब जाता है.