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5000 साल पुराना है Mathura से Shri Krishana का कनेक्शन, जानिए मंदिर निर्माण की पूरी कहानी

shri krishna janmabhoomi: मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह मामला एक बार फिर अदालत में है. ब्रज भूमि में श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी पांच हज़ार साल पुरानी बताई जाती है. कई धार्मिक ग्रंथों में इसका विस्तार से ज़िक्र है. आज श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक मस्जिद भी मौजूद है, जिसे शाही ईदगाह मस्जिद कहा जाता है. इतिहास बताता है कि ये मस्जिद मुगलकाल के दौरान वजूद में आई थी. जन्मस्थान की भूमि का कुछ हिस्सा मंदिर के पास तो कुछ पर मस्जिद मौजूद है. दोनों पक्ष इस जमीन पर मालिकाना हक को लेकर अदालत में हैं.

मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर की कहानी मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर की कहानी
हाइलाइट्स
  • 3000 साल पहले बना था श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर पहला मंदिर

  • 3 बार तोड़ा गया मंदिर और 4 बार बनाया जा चुका है

सनातन धर्म के पौराणिक इतिहास में जिन श्रीकृष्ण को चराचर जगत का पालनहार बताया गया, आज उसी जगत के छोटे से कोने में उनके जन्मस्थान पर विवाद हो रहा है. ब्रजधाम में भूमि के जिस टुकड़े पर दो पंथ पिछली तीन-चार सदियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. वास्तव में श्रीकृष्ण से उसका रिश्ता हज़ारों साल पुराना है. 

श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी-
मथुरा से श्रीकृष्ण के इस रिश्ते की शुरुआत हुई थी द्वापर युग में. जब कंस के अत्याचारों के अंधकार के बीच, अष्ठमी की रात मथुरा की एक कालकोठरी में प्रकाश बनकर स्वयं नारायण प्रकट हुए. कहा जाता है कि मथुरा में जहां पर आज कृष्णप जन्मवस्थापन है, वहां 5000 साल पहले कटरा केशवदेव नाम की जगह पर राजा कंस का कारागार हुआ करता था. उसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान कृष्णव ने जन्म लिया था. भागवत पुराण में श्रीकृष्ण के जन्म का विस्तार से वर्णन मिलता है. धार्मिक परंपराएं कहती हैं कि ब्रजभूमि के कण-कण में आज भी कन्हैया विराजमान हैं. 

कब हुआ था मंदिर का निर्माण-
द्वापर युग के बीतते-बीतते श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर पहले मंदिर का निर्माण हुआ. 80 से 57 ईसवी पूर्व यहां मिले ब्राह्मी लिपि में लिखे शिलालेखों में ये जिक्र मिलता है कि 3000 साल पहले शोडाष के राज्य काल में वसु नाम के व्यक्ति ने कृष्ण जन्मभूमि पर पहला मंदिर बनवाया था. जनमान्येता के मुताबिक कारागार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में एक मंदिर बनवाया था. तो वहीं इतिहासकारों का मानना है कि 400 ईसवी में सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में कृष्ण का दूसरा मंदिर बनवाया गया था. ये एक बेहद भव्य मंदिर था. इस दौरान मथुरा के आसपास बौद्धों और जैनियों के कई विहार और मंदिर भी बने. इन निर्माणों के प्राप्त अवशेषों से यह पता चलता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान उस समय बौद्धों और जैनियों के लिए भी आस्था का केंद्र रहा था.

कब-कब तोड़ा गया मंदिर-
इतिहास बताता है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बना मंदिर अब तक तीन बार तोड़ा और चार बार बनाया जा चुका है. इतिहास में पहली बार ग्यारहवीं सदी में मंदिर तोड़ने का जिक्र मिलता है. ये वो दौर था जब महमूद गजनी के पांव भारत में पड़े थे. इस दौर में देश भर में कई धार्मिक स्थलों में लूटपाट और विध्वंस हुआ था. 11वीं सदी से पहले तक सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का बनवाया भव्य मंदिर मथुरा में मौजूद था. 
इति‍हास में जिक्र मिलता है कि सन् 1017 में महमूद गजनवी ने आक्रमण कर दिया. इस दौरान मथुरा में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के बनावए भव्य कृष्ण मंदिर को लूटने के बाद तोड़ दिया गया. इसके बाद कई सालों तक मंदिर उसी अवस्था में रहा. लेकिन फिर लगभग सवा सौ साल बाद सन् 1150 में राजा विजयपाल देव के शानसनकाल में मंदिर को दोबारा बनवाया गया. अबकी बार मथुरा में पहले से भी भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया था. इतिहास बाताता है कि ये मंदिर अगले 400 साल तक अपनी भव्यता और दिव्यता के साथ मथुरा में मौजूद था. लेकिन 16वीं शताब्दी में सिकंदर लोदी के शासनकाल में मथुरा के भव्य कृष्ण मंदिर को एक बार फिर से तोड़ दिया गया. जब ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने कृष्ण जन्मस्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया. इतिहास में यहां मिले अवशेषों का ज़िक्र मिलता है. इन अवशेषों से पता चलता है कि इस मंदि‍र के चारों ओर एक ऊंची दीवार मौजूद थी. मंदिर के दक्षिण-पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था. इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद हैं. बताया जाता है कि इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने सन् 1669 में मंदिर को तुड़वा दिया. औरंगज़ेब ने मंदिर के एक भाग पर मस्जिद का निर्माण करवा दिया. आने वाले कई सालों तक मंदिर उसी अवस्था में रहा. बताया जाता है ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया, लेकिन इस पर मंदिर का पुनर्निर्णाण नहीं हुआ.

मालवीय की इच्छा पर मंदिर निर्माण-
बाताय जाता है की साल 1940 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बीच पंडित मदन मोहन मालवीय का मथुरा आना हुआ. उस समय श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा देखकर वे काफी निराश हुए. इसके तीन साल बाद 1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए और वे भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर बड़े दुखी हुए. इसी बीच मालवीय ने बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक पत्र लिखा. मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने 7 फरवरी 1944 को कटरा केशव देव के राजा पटनीमल के उत्तराधिकारियों से इसे खरीद लिया. लेकिन इसके कुछ समय बाद ही मालवीय जी का देहांत हो गया. उनकी अंति‍म इच्छा के अनुसार, बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की. लेकिन ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल कर दी थी. जिसका फैसला 1953 में आया. इसके बाद ही यहां मंदिर के गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण का काम आरंभ हुआ. ये मंदिर फरवरी 1982 में बनकर तैयार हुआ.

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