प्रदोष व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती का आशीर्वाद लेने के लिए मनाया जाता है. यह अवसर हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर महीने में दो बार आता है. पंचांग के अनुसार इस महीने का पहला प्रदोष व्रत 11 जुलाई को पड़ता है. अगला व्रत 25 जुलाई को है.
प्रदोष व्रत का महत्व
मान्यता है कि अगर कोई भक्त शुद्ध समर्पण और भक्ति के साथ प्रदोष व्रत रखता है, तो भगवान शिव और देवी पार्वती उन्हें जीवन में सभी बेहतरीन चीजों का आशीर्वाद देते हैं, जो लोग किसी भी तरह से उपवास करने से चूक जाते हैं, वे मंदिर जा सकते हैं और देवताओं के सामने अभिषेक कर सकते हैं.
इस पवित्र दिन पर महिला भक्तों द्वारा देवी पार्वती को श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ाना अत्यधिक शुभ माना जाता है. इन वस्तुओं में मिठाई, फल और सूखे मेवे के साथ कपड़े, लिपस्टिक, काजल, सिंदूर, चूड़ियां, मेहंदी और बिंदी शामिल हैं.
कैसे होती है पूजा
भक्त सूर्योदय से लेकर शाम तक भगवान शिव की पूजा करने तक उपवास रखते हैं. गोधूलि के दौरान प्रार्थना और पूजा की जाती है. शिव लिंग को दूध, दही और घी से स्नान कराया जाता है. शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ाए जाते हैं. एक बार जब सभी अनुष्ठान पूरे हो जाते हैं, तो भक्त प्रदोष व्रत कथा सुनते हैं.
पूजा विधि
प्रदोष पूजा मुहूर्त शाम 7:22 बजे से रात 9:24 बजे तक है. इस दिन त्रयोदशी तिथि 12 जुलाई को सुबह 11:13 बजे से सुबह 7:46 बजे तक रहेगी.
शुभ मुहूर्त
शुभ ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:10 बजे से शुरू होकर 4:50 बजे तक जबकि दूसरा शुभ मुहूर्त-अभिजीत 11:59 बजे शुरू होता है और दोपहर 12:54 बजे समाप्त होता है.
मंत्र
इस अवसर पर महा मृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप किया जाता है और यह इस प्रकार है:
"ओम त्रयंभकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम् उर्वरुकमिव बंधनन मृत्युयोर मुक्तिया ममृतत"
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