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Sita Mata Sanctuary: वनवास के दौरान ऋषि वाल्मीकि के इसी आश्रम में रही थीं मां सीता, यही पैदा हुए थे लव-कुश

अयोध्या की पावन धरती पर रामलला विराज चुके हैं. प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न हो चुका है लेकिन राजस्थान के प्रतापगढ़ की धरती भी काफी सौभाग्यशाली मानी जाती है. मेवाड़ से माता सीता और लव कुश का बचपन जुड़ा हुआ है.

Sita Mata Sanctuary (Social Media) Sita Mata Sanctuary (Social Media)

पूरा देश राममय है. 500 साल बाद रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में उत्साह का माहौल है. इस दौरान आपने राम और माता सीता के जीवन से जुड़े कई किस्से और कहानियां सुनी होंगी. उन्हीं में से एक कड़ी हम आपको बताने जा रहे हैं लव-कुश की.

धरती में समा गई थीं मां सीता
सीता माता वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ जिलों में स्थित एक वन्यजीव अभयारण्य है. कहा जाता है कि रामायण काल के दौरान जब प्रभू श्रीराम ने माता सीता को वनवास दिया तो माता सीता ने अपने वनवास के दिनों में इसी जंगल में आकर रही थीं. स्थानीय लोगों की मान्यताएं हैं कि वनवास के दौरान माता सीता ने इस जंगल में ऋषि वाल्मीकि आश्रम में कुछ दिन बिताएं. लव-कुश का जन्म भी सीता-माता अभयारण में हुआ. ऐसा कहा जाता सीता माता अभ्यारण्य में एक स्थान ऐसा भी है जहां लगभग पौन किलोमीटर तक पहाड़ दो भागों में फटा हुआ है. मान्यता है कि माता सीता यही धरती की गोद में समाई थीं. पहाड़ जहां से फटा वहीं आज माता सीता का मंदिर बना हुआ है, जो मेवाड़ के साथ ही मालवा और गुजरात के श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है.

क्या है यहां की विशेषता
सीता माता सेंचुरी में 12 बीघा में फैला का बरगद का पेड़ आज भी मौजूद हैं,जहां लव-कुश बचपन में खेला करते थे. यहां पुराने शिलालेख भी लगे हुए हैं, जिस पर त्रेतायुग की बाते उल्लेख की गई हैं. सीता माता अभ्यारण्य में कई वृक्षों, लताओं और झाड़ियों की बेशुमार प्रजातियां इस अभयारण्य की खास विशेषता हैं, वहीं अनेकों दुर्लभ औषधि वृक्ष और अनगिनत जड़ी-बूटियां अनुसंधानकर्ताओं के लिए शोध का विषय है. इस अभ्यारण्य में लव और कुश नाम से दो बावड़ियां भी हैं. इन बावड़ियों में ठंडा और गर्म पानी आता है. लोगों कि मान्यता को देखते हुए यहां हर साल ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को मेला आयोजित किया जाता है.