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हिमाचल प्रदेश स्थित नैना देवी मंदिर में माता आज भी करती है कई चमत्कार, प्राचीन हवन कुंड में नहीं मिलता कोई शेष

हिमाचल प्रदेश का विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर समुद्र तल से लगभग 5000 फीट की ऊंचाई पर विद्यमान है. यह मंदिर पंजाब हिमाचल सीमा पर स्थित श्री आनंदपुर साहिब से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है.

Story behind Naina Devi Temple Story behind Naina Devi Temple
हाइलाइट्स
  • नैना देवी मंदिर में आज भी होते हैं चमत्कार

  • प्राचीन हवन कुंड में नहीं मिलता कोई शेष

हिमाचल प्रदेश का विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर समुद्र तल से लगभग 5000 फीट की ऊंचाई पर विद्यमान है. यह मंदिर पंजाब हिमाचल सीमा पर स्थित श्री आनंदपुर साहिब से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, बिहार,उत्तराखंड और अन्य प्रदेशों माता के दर्शन के लिए आते हैं. विदेशों से भी कई श्रद्धालू माता के दर्शन के लिए आते हैं.

क्या है मंदिर की कहानी?
विश्व विख्यात शक्ति पीठ श्री नैना देवी 51 शक्तिपीठों में से एक है और कहा जाता है कि यहां पर माता सती के नेत्र गिरे थे इसलिए इस मंदिर का नाम श्री नैना देवी पड़ा. स्थानीय पुजारी रमाकांत के मुताबिक प्राचीन काल में जब माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन करवाया था तो उस समय सभी देवताओं को उन्होंने इस यज्ञ में भाग लेने के लिए न्योता दिया लेकिन माता सती और भोले शंकर को इस यज्ञ में नहीं बुलाया. इससे सती माता बहुत क्रोधित हुईं. राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ में जाने के लिए भगवान शिव ने हठ किया और हठ के कारण सती माता अपने पिता के उस यज्ञ में चली गई और जब वहां जाकर देखा कि सभी देवताओं के लिए स्थान प्रदान किए गए हैं, लेकिन भोले शंकर के लिए कोई स्थान नहीं था तो वह बहुत क्रोधित हुई और अपने क्रोध को रोक ना सकी और वह स्वयं यज्ञशाला में कूद गई. जब शिव शंकर भगवान को इस बात का पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने माता सती के अर्धजले शरीर को अपने त्रिशूल पर उठाकर पूरे ब्रह्मांड का भ्रमण करने लगे और यह देखकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र के द्वारा माता सती के अंगो को छिन्न-भिन्न कर दिया और जहां-जहां पर माता सती के अंग गिरे वहां पर शक्ति पीठों की स्थापना हुई. 

मंदिर के स्थापना से जुड़ी कई अन्य कहानियां
माता श्री नैना देवी के नाम को लेकर और भी कई तरह की मान्यताएं हैं. कहते हैं कि जब माता श्री नैना देवी ने महिषासुर का वध किया था तो सभी देवताओं ने खुश होकर जय नैना मां उद्घोष किया इसलिए भी माता श्री नैना देवी के तीर्थ स्थल का नाम श्री नैना देवी पड़ा. प्राचीन काल से एक और कथा प्रचलित है कहते हैं जब नैना नामक गुर्जर ग्वाला अपनी गाएं चराता था तो अचानक एक गाय के थनों से अपने आप पिंडी पर दूध  निकलना शुरू हुआ और माता ने उसे रात को सपने में दर्शन दिए और कहा कि यहां पर मंदिर की स्थापना करना. फिर इस मंदिर की स्थापना हुयी और नैना गुर्जर के नाम पर ही इसका नाम श्री नैना देवी रखा गया.

मंदिर के चमत्कार
इस कलयुग के अंदर भी श्री नैना देवी मंदिर में दो चमत्कार विद्यमान है. पहला चमत्कार है माता जी का प्राचीन हवन कुंड कहते हैं कि इसमें जितना मर्जी हवन करते जाओ शेष कभी नहीं उठाना पड़ता. सारी राख भभूति इसी के अंदर समा जाती है. इस हवन कुंड में श्रद्धालु विजय प्राप्ति के लिए, दुख रोग कष्ट दूर करने के लिए, धन प्राप्ति के लिए कई प्रकार के हवन किए जाते हैं. कहते हैं कि घर में 100 हवन  करने के बराबर इस हवन कुंड में एक हवन की मान्यता है. 

दूसरा चमत्कार है माताजी की ज्योतियों का आना मां ज्वाला देवी माता श्री नैना देवी से मिलने आती है. सबसे पहले ज्योति के दर्शन माता के त्रिशूल पर होते हैं. उसके बाद श्रद्धालुओं के हाथों पर. पीपल के पत्तों पर ज्योतियों के दर्शन होते हैं और यह 15 से 20 मिनट तक चमत्कार देखने को मिलता है. उस समय मौसम बहुत भयानक हो जाता है. उस दौरान तेज तूफान आता है और बिजली कड़कती है. एकदम लाइट चली जाती है और उसमें माता की ज्योति प्रकट होती है. सभी श्रद्धालु जो उस समय मंदिर में होते हैं उन्हें माता की ज्योत के दर्शन होते हैं.

आंखों की रोशनी ठीक करती है मा श्री नैना देवी जी
श्रद्धालुओं की आंखों में किसी भी प्रकार की परेशानी हो या कोई बीमारी अगर श्रद्धालु माता के दरबार में चांदी के नेत्र चढ़ाता है तो उसकी आंखों की रोशनी ठीक हो जाती है. प्राचीन काल से ही श्रद्धालु अपनी आंखों की कुशलता के लिए माता श्री नैना देवी के दरबार में चांदी के नेत्र अर्पित करते आए हैं और ऐसे भी कई चमत्कार देखने को मिले हैं जब माता की कृपा से श्रद्धालुओं की आंखों की रोशनी ठीक हो गई है.

पांच टाइम होती है आरती
माता श्री नैना देवी के मंदिर में हर रोज 5 आरतियां होती हैं, जिनमें दो स्नान और श्रृंगार आरती शामिल है. माता जी की पहली आरती सुबह 4:00 बजे होती है. उसमें माताजी को पांच मेवे का भोग लगता है. दूसरी आरती सुबह 6:00 बजे होती है, जिसमें माताजी को कढ़ाई और बर्फी का भोग लगता है. उसके बाद तीसरी आरती दोपहर के समय  होती है, जिससे माताजी को राजश्री भोग लगता है, जिसमें 5 सब्जियां बासमती चावल और खीर शामिल होते हैं. उसके उपरांत शाम के समय 7:30 बजे माता की आरती होती है जिसमें माताजी को चने पूरी का भोग लगता है. रात के समय 9:30 बजे माता जी की शयन आरती लगती है जिसमें माताजी को फल और दूध का भोग लगता है.

मुकेश गौतम की रिपोर्ट