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Dhanteras: कैसे प्रकट हुए भगवान धनवंतरि, सालों तक वनस्पतियों पर अध्ययन कर बने आयुर्वेद के जनक!

मध्य प्रदेश की धरती पर भगवान धनवंतरि का 200 साल पुराना धाम है. जहां आज भी धरतेरस पर न केवल उनकी पूजा होती है बल्कि उनका अभिषेक कर आरोग्यता का वरदान भी लिया जाता है. पुरानी मान्यता है कि भगवान उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी. भगवान ने कई सालोंं तक वनस्पतियों पर अध्ययन किया और भारत को आरोग्य और चिकित्सा का वरदान दिया.

Story of Bhagwan Dhanwantri origin Story of Bhagwan Dhanwantri origin
हाइलाइट्स
  • MP में स्थित है भगवान धनवंतरि का 200 साल पुराना मंदिर

  • समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए भगवान धनवंतरि

  • माने जाते हैं भगवान विष्णु के अवतार

रौशनी के पांच दिनों का त्योहार दीपावली धनतेरस से शुरू हो जाता है. पांच दिनों का ये शुभ त्योहार आरोग्यता के साथ-साथ धन संपदा,समृद्धि और कल्याण में वृद्धि करने वाला माना जाता है. पौराणिक मान्यता है कि धनतेरस से शुरू होने वाले इस पर्व के पहले दिन भगवान धनवंतरि,माता लक्ष्मी,भगवान कुबेर और यमराज की पूजा का विधान है इसीलिए पंचाग की शुभ तिथि और मुहूर्त में की गई खरीददारी और पूजा आराधना साधक के लिए कई गुना ज्यादा फलदायी मानी गई है. हिंदू धर्म के अनुसार भगवान धनवंतरि को विष्ण का अवतार माना गया है.

MP में स्थित है भगवान धनवंतरि का 200 साल पुराना मंदिर
आपने एक कहावत तो सुनी होगी - 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया.' कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाना वाला पर्व धनतेरस इसी कहावत को सही साबित करता है. मध्य प्रदेश की धरती पर भगवान धनवंतरि का 200 साल पुराना धाम है. जहां आज भी धरतेरस पर न केवल उनकी पूजा होती है बल्कि उनका अभिषेक कर आरोग्यता का वरदान भी लिया जाता है.
धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि के साथ-साथ भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इस दिन कुबेर भगवान का पूजन करने से और कुबेर यंत्र की स्थापना करने से जीवन भर पुण्य फल की प्राप्ति होती है.

कैसे प्रकट हुए भगवान धनवंतरि ?
भगवान धनवंतरि को आरोग्यता का देवता कहा जाता हैं. उन्हें भारत में आयुर्वेद का जनक माना जाता है. पृथ्वी पर आरोग्यता और चिकित्सा के ज्ञान को फैलाने के लिए भगवान विष्णु ने धनवंतरि का अवतार लिया था. भगवान विष्णु के 24 अवतारों में 12वां अवतार धनवंतरि का था. पुराणों में भगवान धनवंतरि के प्राकट्य की कई कथाएं मिलती हैं. मान्यता है कि देवों और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन का प्रयास शुरू किया, जिसमें से 14 रत्नों की प्राप्ति हुई. इसके लिए मंदार पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को मथानी की रस्सी के तौर पर इस्तेमाल किया गया था. इसी समुद्र मंथन से कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरि का प्राकट्य हुआ था. पुराण कहते हैं कि भगवान धनवंतरि के हाथ में अमृत का कलश था.

क्यों कहे जाते हैं आरोग्य के देवता?
भगवान धनवंतरि ने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे प्रभाव-गुण को प्रकट किया. धनवंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब केवल धनवंतरि संहिता ही पाई जाती है, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है.आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धनवंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था,जिसे बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया. धनवंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं. रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता, कश्यप संहिता और अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, शार्गधर, श्रीमद्भावत पुराण आदि में उनका उल्लेख मिलता है. संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी आयुर्वेद का प्रमाण मिलता है,जिसमें चिकित्सीय और आयुर्वेदिक तथ्यों के प्रमाण मिलते हैं.

भगवान धनवंतरि चतुर्भुजी हैं. भगवान विष्णु की तरह ही इनके एक हाथ में शंख और चक्र रहता है, जबकि अन्य दो हाथों में जल का पात्र और अमृत कलश रहता है. इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है इसलिए धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है.