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Gita Press: 10 रुपए किराए के मकान में शुरू हुई थी गीता प्रेस, 5 महीने बाद आई थी पहली प्रिटिंग मशीन... दिलचस्प है 100 साल पुरानी संस्था की कहानी

Gita Press Story: राजस्थान के कारोबारी जय दयाल गोयनका ने 100 साल पहले 29 अप्रैल 1923 को गोरखपुर के हिंदी बाजार में 10 रुपए किराए के मकान में गीता प्रेस की शुरुआत की थी. गीता प्रेस की पहली किताब की कीमत एक रुपए थी. शुरुआत के 5 महीने बाद गीता प्रेस ने 600 रुपए की प्रिंटिंग मशीन खरीदी थी.

29 अप्रैल 1923 को गीता प्रेस की शुरुआत हुई थी 29 अप्रैल 1923 को गीता प्रेस की शुरुआत हुई थी

साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर की गीता प्रेस को दिया जाएगा. संस्कृति मंत्रालय के मुताबिक पीएम मोदी की अगुवाई वाली जूरी ने अहिंसक और दूसरे गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए गीता प्रेस को इस पुरस्कार के लिए चुना है. इसी साल गीता प्रेस की स्थापना के 100 साल भी पूरे हुए हैं. गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में एक है. गीता प्रेस ने  अब तक 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ किताबों का प्रकाशन किया है. इसमें 16.21 करोड़ श्रीमद्भगवद्गीता है. चलिए आपको दुनियाभर में मशहूर गीता प्रेस के पूरे सफर के बारे में बताते हैं.

100 साल पहले गीता प्रेस की शुरुआत-
100 साल पहले साल 1923 में जब देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी, उस समय एक किराए की दुकान में गीता प्रेस की शुरुआत हुई. राजस्थान के चुरू के रहने वाले जय दयाल गोयनका ने इसकी शुरुआत की थी. गोयनका एक कारोबारी घराने से ताल्लुक रखते थे. उन्होंने 29 अप्रैल 1923 को गोरखपुर के हिंदी बाजार में 10 रुपए किराए के मकान में गीता प्रेस की शुरुआत की. इसमें गोयनका का साथ घनश्याम दास जलान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने दिया था. स्थापना के 5 महीने बाद गीता प्रेस ने 600 रुपए की प्रिंटिंग मशीन खरीदी थी.

पहली किताब की कीमत एक रुपए-
गीता प्रेस का मकसद सनातन धर्म के सिद्धांतों को बढ़ावा देना था. गीता प्रेस में छपी पहली किताब की कीमत एक रुपए थी. स्थापना के 3 साल बाद प्रेस ने मासिक पत्रिका निकालने का फैसला किया. इस पत्रिका में महात्मा गांधी ने भी लेख लिखा. लेकिन इसके लिए उनकी एक शर्त थी. उनका कहना था कि इस पत्रिका में कोई विज्ञापन नहीं छापा जाना चाहिए. गीता प्रेस ने बापू की शर्त मान ली और इसमें कोई भी विज्ञापन नहीं छापने का फैसला किया. इसके बाद ही महात्मा गांधी ने लेख लिखा. हनुमान प्रसाद पोद्दार गीता प्रेस की कल्याण मैगजीन के आजीवन संपादक रहे.

गीता प्रेस में क्या छपता है-
गीता प्रेस में हिंदू धार्मिक किताबों की छपाई होती है. श्रीमद्भगवद गीता, रामायण, पुराण, उपनिषद की छपाई होती है. इसके अलावा सूरदास के साहित्य छपते हैं. गीता प्रेस में बच्चों की भी किताबें छपती हैं. हालांकि बच्चों से संबंधित वही किताबें छपती हैं, जिससे बच्चों में धर्म की समझ बढ़ती है. इस प्रेस में अब तक बच्चों के लिए 11 करोड़ से ज्यादा किताबें छप चुकी हैं. इसके अलावा कल्याण नाम से एक मैगजीन भी निकलती है. इसके साथ ही हर साल किसी खास शास्त्र को कवर करने वाला विशेष अंक निकलता है.

41 करोड़ किताबों की छपाई-
गीता प्रेस में अब तक 41.7 करोड़ की किताबों की छपाई हो चुकी है. ये किताबें हिंदी, गुजराती, मराठी, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, अंग्रेजी, नेपाली, तमिल, बांग्ला, असमिया और मलयालम समेत 14 भाषाओं में हैं. गीता प्रेस अब तक 16.21 करोड़ श्रीमद्भगवद्गीता की कॉपियां छाप चुका है. जबकि 11.73 करोड़ तुलसीदास की रचनाएं और 2.68 करोड़ पुराण और उपनिषद की कॉपियां छापी गई है.

ट्रस्ट के तहत होता है काम-
गीता प्रेस एक ट्रस्ट के तौर पर काम करता है. इसका मकसद फायदा कमाना नहीं है, बल्कि लोगों तक धार्मिक किताबें पहुंचाना है. गवर्निंग काउंसिल इस संस्था का मैनेजमेंट संभालती है. गीता प्रेस का खर्च समाज के लोग उठाते हैं. ये लोग छपाई में लगने वाले सामान किफायती कीमतों में उपलब्ध करवाते हैं. 
गीता प्रेस लगातार खुद को अपडेट करता रहता है. यहां जर्मनी और जापान की हाईटेक मशीनों पर छपाई होती है. गीता प्रेस सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है.

3 हफ्ते तक बंद हो गई थी गीता प्रेस-
साल 2014 में दिसंबर के महीने में गीता प्रेस के कर्मचारी सैलरी को धरने पर चले गए थे. इस विवाद में गीता प्रेस ने 3 कर्मचारियों को निकाल दिया था. हालांकि बाद कर्मचारी संगठन और ट्रस्ट के बीच सुलह हो गई और तीनों कर्मचारियों को काम पर वापस बुला लिया गया. इस दौरान 3 हफ्ते तक गीता प्रेस बंद रही. हालांकि सुलह के बाद फिर से काम शुरू हो गया था.

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