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Mata Tripura Sundari Temple: तीनों लोकों में मां जैसा सुंदर कोई नहीं...जानिए 500 साल पुराने त्रिपुरा सुंदरी मंदिर की कहानी, एक बार जरूर करें दर्शन

त्रिपुरा माता का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. माता को त्रिपुर सुदंरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तीनों लोकों में इनसे सुंदर कोई नहीं है. मां की उम्र 16 साल है. नवरात्रि के मौके पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.

त्रिपुरा मंदिर की कहानी त्रिपुरा मंदिर की कहानी

भारत के पूर्वोत्तर राज्य में स्थित मां त्रिपुर सुंदरी का मंदिर देवी के प्रख्यात मंदिरों में से एक है. यह 51 शक्तिपीठों में से एक है. मां त्रिपुर सुंदरी के नाम पर ही त्रिपुरा राज्य का नाम पड़ा. माता को त्रिपुर सुदंरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तीनों लोकों में इनसे सुंदर कोई नहीं है. कमाख्या देवी की तरह ही इस मंदिर को भी तंत्र-मंत्र के लिए जाना जाता है.

कूर्भपीठ के नाम से जाना जाता है यह पीठ
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने अपने 'सुदर्शन चक्र' से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए थे. ये सभी टुकड़े देश भर में अलग-अलग जगहों पर गिरे थे और इन जगहों को 'शक्तिपीठ' के नाम से जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि माता सती का 'दाहिना पैर' उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिमी बाहरी इलाके में माताबाड़ी में गिरा था. इस 'पीठस्थान' (तीर्थयात्रा का केंद्र) को कूर्भपीठ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि मंदिर परिसर का आकार "कूर्म" या कछुए जैसा दिखता है. मंदिर की अधिष्ठात्री देवी 'मां काली' की मूर्ति, गर्भगृह में विराजमान है और यह लाल रंग के काले पत्थर से बनी है, जिसे बंगाली में 'कष्टीपाथर' के नाम से जाना जाता है.

क्या है मान्यता?
यह मंदिर हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भारत के 51 सबसे पवित्र 'शक्तिपीठों' (शक्ति की देवी का तीर्थ) में से एक है. देवी 'काली' को उनके अवतार 'शोरोशी' (सोलह वर्षीय लड़की) के रूप में पूजा जाता .मां काली के छोटे आकार की एक मूर्ति जिसे 'छोटो मां' कहा जाता है, पीठासीन देवता के पास खड़ी है, इसे कथित तौर पर राजाओं द्वारा शिकार अभियानों के दौरान और टेंट में पूजा के लिए युद्ध के दौरान भी ले जाया जाता था.

पूरा होती है मनोकामना
मंदिर में शंक्वाकार गुंबद के साथ विशिष्ट बंगाली झोपड़ी संरचना का वर्ग प्रकार का गर्भगृह है. मंदिर का निर्माण 1501 ई. में तत्कालीन महाराजा धन्य माणिक्य ने करवाया था.राजा ने इस मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के लिए कराया था लेकिन महामाया ने राजा को सपने में मंदिर निर्माण का आदेश दिया और और राजा से कहा कि वह उनकी मूर्ति को चित्तौंग से इस स्थान पर रख दें. इसके बाद राजा ने माता त्रिपुर सुंदरी की प्राण प्रतिष्ठा की. यह मंदिर पूर्वोत्तर राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. हजारों की संख्या में भक्त प्रतिदिन मंदिर में माता के दर्शनों के लिए आते हैं और नवरात्रि के मौके पर इनकी संख्या बढ़ जाती है. यहां जो भक्त सच्चे मन से माता से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है.

मंदिर के पूर्वी भाग में प्रसिद्ध 'कल्याण सागर' झील है जहां मछलियां और विशाल आकार के कछुए पाए जाते हैं और भक्त उन्हें "मुरी" (फूला हुआ चावल) और बिस्कुट खिलाते हैं. कल्याण सागर झील में मछली पकड़ने की अनुमति नहीं है. हर साल 'दिवाली' पर, मंदिर के पास एक प्रसिद्ध 'मेला' होता है, जिसमें लाखों तीर्थयात्री आते हैं.

तंत्र-मंत्र के लिए जाना जाता है मंदिर
यहां मां भगवती को त्रिपुर सुंदरी और उनके साथ विराजमान भैरव को त्रिपुरेश के नाम से जाना जाता है. माता के इस पीठ को कूर्भपीठ भी कहा जाता है. तंत्र साधना के लिए यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है और मंदिर में तांत्रिकों का मेला लगा रहता है. यहां तंत्र-मंत्र करने वाले साधक आते हैं और अपनी साधना को पूर्ण करने के लिए देवी की पूजा करते हैं.