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‘कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे'... 400 साल पहले शिवानंद स्वामी ने कैसे लिखी थी मां अम्बे की ये आरती? 

शिवानंद स्वामी 16वीं शताब्दी के एक कवि और आध्यात्मिक व्यक्ति थे. उन्होंने ये आरती 400 साल पहले नर्मदा नदी के किनारे रची थी. स्वामी शिवानंद ने कम उम्र में ही अपने पिता, वामदेव हरिहर पंड्या को खो दिया और उनके चाचा, सदाशिव पंड्या ने उनका पालन-पोषण किया. कठिनाइयों के बावजूद, स्वामी शिवानंद एक ऐेसे ब्राह्मण बने जिनका सभी सम्मान करते थे.

Maa Durga (Photo: PTI) Maa Durga (Photo: PTI)
हाइलाइट्स
  • एक भव्य यज्ञ किया था उन्होंने

  • 400 साल पहले लिखी थी आरती

नवरात्रि का समापन हो ही चुका है. सभी भक्त मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग तरह से पूजा-अर्चना करते हैं. बड़े-बड़े पंडाल, मेला, डांडिया, हवन, भजन और आरती से पूरा माहौल खुशनुमा रहता है. अपने-अपने घरों में लोग देवी मां की मूर्तियां लाते हैं और सुबह-शाम उनकी आरती करते हैं. इस दौरान एक आरती है जो सबके घरों में गाई जाती है... ये आरती है “जय अम्बे गौरी”. पूरा परिवार साथ खड़े होकर आरती गाता है, लेकिन बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इस आरती के पीछे के आकर्षक इतिहास को जानते हैं. 

यह आरती, जो मंदिरों और घरों में गूंजती है, न केवल आध्यात्मिक महत्व रखती है, बल्कि इसका ऐतिहासिक महत्व भी है. इस रचना के पीछे के व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि वही व्यक्ति है जिनका नाम हम आरती गाते हुए लेते हैं… स्वामी शिवानंद. आरती के आखिर में एक लाइन आती है “कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे”... ये शिवानंद स्वामी ही इस आरती के रचयिता हैं. शिवानंद स्वामी 16वीं शताब्दी के एक कवि और आध्यात्मिक व्यक्ति थे. उन्होंने ये आरती 400 साल पहले नर्मदा नदी के किनारे रची थी. 

स्वामी शिवानंद कौन थे?
स्वामी शिवानंद का जन्म 1541 में सूरत शहर में हुआ था. उन्हें शिवानंद वामदेव पंड्या के नाम से भी जाना जाता था. उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ, जो अपने धार्मिक कामों के लिए प्रसिद्ध था. उनके पूर्वज मार्कंड मुनि आश्रम और देवी अम्बाजी मंदिर के संरक्षक थे, जो अंकलेश्वर के पास मंदवा गांव में स्थित थे. हालांकि, उनके परिवार ने बेहतर अवसरों की तलाश में सूरत की ओर रुख किया, लेकिन उनकी अपनी आध्यात्मिक विरासत को पीछे नहीं छोड़ा.

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स्वामी शिवानंद ने कम उम्र में ही अपने पिता, वामदेव हरिहर पंड्या को खो दिया और उनके चाचा, सदाशिव पंड्या ने उनका पालन-पोषण किया. कठिनाइयों के बावजूद, स्वामी शिवानंद एक ऐेसे ब्राह्मण बने जिनका सभी सम्मान करते थे. सभी उन्हें वैदिक अनुष्ठानों और देवी अम्बा की भक्ति के लिए  जानते थे.

एक भव्य यज्ञ किया 
1601 में, 60 साल की उम्र में, स्वामी शिवानंद ने मार्कंड मुनि आश्रम में एक बहुत बड़ा यज्ञ किया.  इसी धार्मिक आयोजन के दौरान कहा जाता है कि स्वामी शिवानंद को देवी अम्बा का दिव्य दर्शन हुआ, जो उनके सामने महालक्ष्मी के रूप में प्रकट हुईं. इस दिव्य अनुभव से अभिभूत होकर उन्होंने मां अम्बा को समर्पित प्रसिद्ध आरती लिखी. 

इस आरती की शुरुआत "जय आध्या शक्ति, अखंड ब्रह्मांड दीपव्या" से होती है, जो देवी के प्रति स्वामी शिवानंद की गहरी आध्यात्मिक भक्ति को दिखाता है. चौथे पद में, वह महालक्ष्मी देवी के अपने दर्शन का वर्णन करते हैं: "चौथे चतुरा महालक्ष्मी मां सचर चर व्याप्या, चार भुजा चौदिशा, प्रगतिया दक्षिण मा," जिसमें देवी को पूरी दुनिया में फैलते हुए दिखाया गया है.

उनके शब्दों की शक्ति
स्वामी शिवानंद की आरती की खास बात सिर्फ उनका दिव्य संबंध नहीं है, बल्कि और लोगों ने भी इस शक्ति को महसूस किया है. नवरात्रि और देवी अम्बा को समर्पित अन्य धार्मिक त्योहारों के दौरान यह आरती अब एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है. कोई भी गरबा वाली रात या देवी की पूजा इसके बिना पूरी नहीं होती. आरती की आखिरी लाइनों में, स्वामी शिवानंद विनम्रता से अपना नाम लेते हैं. वे कहते हैं कि जो कोई भी देवी के गुणगान गाएगा, उन्हें आध्यात्मिक संपत्ति प्राप्त होगी: “कहत शिवानंद स्वामी सब संपति पावे. ”

उनके वंशज भी हैं 
स्वामी शिवानंद के वंशज की बात करें, तो उनकी प्रपौत्री पल्लवी व्यास और प्रपौत्र धर्मेश व्यास हैं. टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के अनुसार, धर्मेश व्यास एक एक्टर हैं. वे बताते हैं कि जब भी वे इस आरती को गाते हैं तो स्वामी शिवानंद को याद करते हैं. 400 साल पहले नर्मदा नदी के किनारे रची गई ये आरती आज घरों में गूंजती है.