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Mahakumbh 2025: दोनों फेफड़े खराब होने के बाद भी पहुंचे तप करने, महाकुंभ में प्राण जाना मोक्ष प्राप्ति के बराबर.. चाबी बाले वाले बाबा की हर चाबी सुना रही अलग कहानी

महाकुंभ को लेकर बाबाओं की आस्था अटूट है. इसलिए ही एक बाबा ऑक्सीजन सिलेंडर पर होने के बाद भी महाकुंभ के लिए पहुंच गए है. उनका कहना है कि अगर इस दौरान उनकी जान भी चली गई तो वे समझेंगे कि उन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया.

महाकुंभ के संसार में इन दिनों साधु-संतों का जमावड़ा लग रहा है. संगम नगरी में देश के कोने कोने से साधु-संतों का जत्था पहुंच रहा है और इस बीच साधु-संतों का अनोखा अंदाज भी देखने को मिल रहा है. महाकुंभ के प्रति बाबाओं की आस्था देखने को मिल रही है. कुल मिलाकर इन बाबाओं का संसार बड़ा रोचक है जो आस्था के इस संसार को बेहद आकर्षक बना रहा है. 

महाकुंभ को लेकर संगम नगरी में साधु-संतों का जमावड़ा लगने लगा है और इन सबकी छटा देखते ही बन रही है. यहां किसी बाबा की जटा को देख कर हैरत हो रही है, तो किसी बाबा के सिर पर नाग विराजमान है. आइए बताते हैं इन अनोखे बाबाओं की कथा.

चाबी वाले बाबा
महाकुंभ के लिए अलग-अलग तरह के बाबा प्रयागराज पहुंच रहे हैं. उन्हीं में से एक हैं 'चाबी वाले बाबा'. जो अपने एक हाथ में 20 किलो की लोहे की चाबी लेकर घूम रहे हैं.

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बाबा अपने साथ एक रथ भी लेकर आए हैं. इस रथ पर चाबी ही चाबी नजर आती हैं. चाबी वाले बाबा इस चार पहिया रथ को अपने हाथ से खींचते हुए यात्राएं करते हैं. साथ ही इनकी हर एक चाबी की कहानी किसी न किसी यात्रा से जुड़ी है.

रायबरेली के रहने वाले चाबी वाले बाबा का असली नाम हरिश्चंद्र विश्वकर्मा है. जो अयोध्या से अपने इस रथ को हाथ से खींचते हुए कुंभ नगरी पहुंचे हैं.

ऑक्सीजन सपोर्ट पर बाबा
आवाहन अखाड़े के शिविर में मौजूद महंत इंद्र गिरी महाराज के दोनों फेफड़े 97 फीसदी से ज्यादा खराब हैं. इसके बावजूद ये ऑक्सीजन सपोर्ट पर हरियाणा के हिसार से कुंभ नगरी तप करने पहुंचे हैं. इनके कुंभ और सनातन के प्रति प्रेम को देख कर हर कोई इनके सामने नतमस्तक हो रहा है.

डॉक्टरों ने इन्हें अपने आश्रम से बाहर नहीं जाने की सलाह दी है. लेकिन इसके बावजूद ये अपने गुरु के नाम पर यहां पहुंच गए हैं. 

इंद्र गिरी महाराज 1989 से लगातार कुंभ मेले में आ रहे हैं. इस बार के महाकुंभ में शामिल होने के लिए ये इस हालत में भी पहुंचे हैं. साथ ही तीनों शाही स्नान किए बिना वापस नहीं लौटने का भी इनका संकल्प है. इनका कहना है कि अगर कुंभ मेले में इनके प्राण चले भी गए तो वह इनके लिए मोक्ष का द्वार खुलने के बराबर होगा.