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सीएम पुष्कर सिंह धामी ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का लिया फैसला, पूरी हुई पुरोहितों की मांग

सीएम पुष्कर सिंह धामी ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड पर लिया गया त्रिवेंद्र सरकार के फैसले को पलट दिया है. सीएम धामी ने बड़ा फैसला लेते हुए देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का एलान किया है. उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 28 नवंबर 2019 को गढ़वाल मंडल के 51 मंदिरों को श्राइन बोर्ड की तर्ज पर देवस्थानम बोर्ड के अधीन कर दिया था.

Char Dham Devasthanam Board Management Act repeal Char Dham Devasthanam Board Management Act repeal
हाइलाइट्स
  • विरोध के बावजूद बनाया अधिनियम

  • 2019 से बिल का विरोध कर रहे थे पुरोहित

सीएम पुष्कर सिंह धामी ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड पर लिया गया त्रिवेंद्र सरकार के फैसले को पलट दिया है. सीएम धामी ने बड़ा फैसला लेते हुए देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का एलान किया है. उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 28 नवंबर 2019 को गढ़वाल मंडल के 51 मंदिरों को श्राइन बोर्ड की तर्ज पर देवस्थानम बोर्ड के अधीन कर दिया था. तब से लेकर अब तक तीर्थ पुरोहितों के अलावा एक बड़ा तबका सरकार के इस फैसले के विरोध में था.

उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम, 2019 को देखने के लिए धामी सरकार द्वारा गठित एक उच्च स्तरीय समिति ने रविवार को ऋषिकेश में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपने के बाद यह घोषणा की. मुख्यमंत्री ने समिति की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए धर्मस्व मंत्री सलपाल महाराज की अध्यक्षा में तीन सदस्यीय मंत्रिमंडलीय उपसमिति गठित की.

विरोध के बावजूद बनाया अधिनियम
तीर्थ पुरोहितों के विरोध के बावजूद सरकार ने सदन से विधेयक को पारित कर अधिनियम बनाया. इसके बाद चारधामों के तीर्थ पुरोहित आंदोलन पर उतर आए, लेकिन त्रिवेंद्र सरकार अपने फैसले पर अडिग रही. सरकार का तर्क था कि बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री धाम समेत 51 मंदिर बोर्ड के अधीन आने से यात्री सुविधाओं में विकास होगा.  इसके बाद मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत ने भी जनभावनाओं के अनुरूप देवस्थानम बोर्ड निर्णय लेने की बात कही थी, लेकिन उनके कार्यकाल में देवस्थानम बोर्ड पर सरकार आगे नहीं बढ़ पाई. फिर नेतृत्व परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी ने तीर्थ पुरोहितों के विरोध को देखते हुए उच्च स्तरीय कमेटी बनाने की घोषणा की और विवाद को 30 अक्टूबर तक सुलझाने का समय मांग. 

क्या है विवाद?
उत्तराखंड सरकार ने राज्य के चारधाम समेत 51 मंदिरों का प्रबंधन अपने हाथों में ले लिया था. उत्तराखंड में अब तक मंदिरों के पुरोहित ही सारा प्रबंधन देखते थे, लेकिन सरकार के इस फैसले से यह बोर्ड के हाथों में चला गया था. पुरोहितों का कहना था कि सरकार ने उनका हक मार लिया है. सरकार काफी समय से इस पर कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर रही थी, जबकि पुरोहित चाहते थे कि यह पूरी तरह से भंग किया जाए. 

क्या था त्रिवेंद्र सरकार का पक्ष?
सरकार का कहना था कि लगातार बढ़ रही यात्रियों की संख्या और क्षेत्र के पर्यटन को मजबूत करने के लिए नियंत्रण जरूरी है. सरकारी नियंत्रण में बोर्ड मंदिरों के रखरखाव और यात्रा प्रबंधन का काम बेहतर तरीके से करेगा. तब से पुरोहितों और सरकार में इसको लेकर झगड़ा रहा. पुरोहित समय-समय पर धरना प्रदर्शन और अनशन के माध्यम से अपना विरोध दर्ज करते रहे हैं.

30 अक्टूबर को क्यों नहीं सुलझा मामला?
तीर्थ पुरोहितों का गुस्सा इस बात पर है कि सरकार ने 2019 में जो देवस्थानम बोर्ड की घोषणा की थी उसे वापस नहीं लिया जा रहा है. सरकार इस पर कोई दूसरा रास्ता निकालने की फिराक में थी, जबकि पुरोहित चाहते थे कि सरकार बोर्ड भंग करे. वहीं मनोहर कांत ध्यानी ने कहा है कि बोर्ड को किसी कीमत पर भंग नहीं किया जाएगा. अगर पुरोहित समाज को इसके प्रावधानों से दिक्कत है तो उस पर विचार किया जा सकता है.

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