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Maa Annapurna khajana: 8 लाख के सिक्के... 16 क्विंटल लावा... एक बार फिर खुल गया मां अन्नपूर्णा का खजाना...अन्नकूट तक बंटेगा धन-धान्य और मिलेंगे दर्शन

बाबा विश्वनाथ की नगरी में मां अन्नपूर्णा का खजाना बंटना शुरू हो गया है. यह खजाना धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक बंटेगा. इस खजाने में एक दो रुपए के सिक्कों के अलावा सोने-चांदी के सिक्के और रत्न भी होते हैं.

Maa Annapurna Mandir Maa Annapurna Mandir

गंगा के पश्चिमी घाट पर भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंग में से एक विश्वेश्वर लिंग पर काशी विश्वनाथ का मंदिर है और इसी मंदिर के निकट दक्षिण दिशा में मां अन्नपूर्णा देवी का मंदिर है. यह भक्तों को अन्न-धन प्रदान करने वाली मां अन्नपूर्णा का दिव्य धाम है. दीपावली से पहले धनतेरस पर्व से मां का अनमोल खजाना भक्तों में बांटा जाता है. खजाने के रूप में भक्तों को एक-दो रुपये के सिक्के, सोने-चांदी के सिक्के और रत्न और अन्न के प्रतीक के रूप में धान बांटे जाते हैं. 

इस बारे में और ज्यादा जानकारी देते हुए खास बातचीत में अन्नपूर्णा मंदिर के महंत पंडित शंकरपुरी ने बताया कि मान्यता है कि इस खजाने के पैसे को अगर अपने घर और प्रतिष्ठान में रखा जाये तो कभी धन, सुख और समृद्धि में कमी नहीं होती. मां अन्नपूर्णा के स्वर्णमयी स्वरुप का दर्शन धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक खोला जाता है. महंत शंकरपुरी ने बताया कि इस बार लगभग 8 लाख सिक्के बांट दिए जाएंगे तो वहीं 16 कुंतल लावा (धान) भी बांटने के लिए मंगाया गया है. 

भक्त करते हैं पूरा-पूरा दिन इंतजार 
चंद सिक्के और धान के लावे को पाने के लिए भक्त पुरे दिन इंतजार करते हैं.  इसके बाद मां अन्नपूर्णा के जब स्वर्णमयी दर्शन भक्तों को मिलते हैं तो उनकी सारी थकान मानों गायब हो जाती है. साल में एक दिन धनतेरस को न केवल माँ अन्नपूर्णा अपने भक्तों को स्वर्णमयी दर्शन देती हैं, बल्कि प्रसाद के तौर पर धन के रूप में रिचकारी और धान्य के रूप में धान का लावा बंटता है. इसको पाकर श्रद्धालु खुद को धन्य मानते हैं और पुरे साल इस अवसर का इंतजार करते हैं. मां अन्नपूर्णा के दरबार में मिले धन को आस्थावान अपनी तिजोरी में और धान के लावा को रसोई या फिर अन्न के भंडारे में रखते हैं. ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि उनका घर हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण रहेगा।

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यह है पौराणिक मान्यता 
मां अन्नपूर्णा के इस स्वर्णमयी दर्शन और काशी से जुड़ी भी पौराणिक कहानी है. काशी के राजा दीवोदास की काशी में किसी भी देवी-देवता का प्रवेश वर्जित था. लेकिन मां अन्नपूर्णा को काशी में आना था तो उन्होंने राजा दीवोदास के घमंड को चूर करने के लिए काशी में अकाल ला दिया. जब राजा दीवोदास ने अपने पुरोहित धनंजय से पूछा कि इस आकाल को कैसे खत्म किया जा सकता है तो उन्होंने मां अन्नपूर्णा की साधना करने की सलाह दी. 

मां को प्रसन्न करने के लिए राजा दीवोदास ने सभी जतन किए और अंत में मां ने उन्हें दर्शन देकर काशी को धन-धान्य से भर दिया. मां ने जिस रूप में राजा को दर्शन दिए थे, उसी स्वरूप की पूजा और दर्शन दिवाली के समय किए जाते हैं. यह कार्यक्रम धनतेरस से शुरू होकर अन्नकूट तक चलता है. मां की स्वर्णिम झांकी में भी यहीं स्वरूप दिखता है जिसमें खुद शिव मां अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगते हुए भी दिखते हैं. 

(रौशन कुमार की रिपोर्ट)