
प्रयागराज में महाकुंभ भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन इसको लेकर नागा संन्यासियों के लिए परंपराओं का निर्वहन अभी खत्म नहीं हुआ है. यही वजह है कि काशी में गंगा तट पर डेरा जमाए नागा महाशिवरात्रि के बाद अब मसान की होली की तैयारी में है. मसान की होली खेलकर ही नागा संन्यासी अपने महाकुंभ यात्रा की पूर्णाहुति करेंगे. वाराणसी में पांच दिवसीय होली पर्व की कड़ी में रंगभरी एकादशी के अगले दिन महाकुंभ से लौटे श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा के दिगंबर नागा संन्यासी बाबा महाशमशान मणिकर्णिका घाट पर बाबा मसाननाथ मंदिर पहुंचकर मसान नाथ को चिता की भस्मी अर्पित करेंगे और फिर चिताभस्म की होली खेलेंगे.
काशी में होती है पांच दिन की होली
बाबा काशी विश्वनाथ की नगरी काशी में पांच दिवसीय होली पर्व की परंपरा है जिसकी शुरूआत रंगभरी एकादशी से होती है. जब बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना कराकर आते हैं तो पूरे रास्ते काशीवासी उनके साथ होली खेलते हैं. इसके अगले दिन द्वादशी पर बाबा विश्वनाथ अपने गणों के साथ मसान पर चिता भस्म होली खेलते हैं. लेकिन बदलते वक्त और सोशल मीडिया ट्रेंड्स के दौर में आम श्रद्धालु भी इससे जुड़ने लगे और पूरे विश्व में यह लोकप्रिय हो रहा है.
इन लोगों के लिए वर्जित है मसान की होली
हालांकि, इस बार महाकुंभ से लौटे नागा संन्यासियों ने साफ तौर पर सामान्य लोगों के मसान की होली खेलने पर आपत्ति दर्ज की है. उन्होंने मसान की होली को खासतौर पर गृहस्थों और महिलाओं के लिए वर्जित बताया है. श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा की उदयपुर शाखा के प्रभारी संत दिगंबर खुशहाल भारती ने कहा कि काशी की जो परंपराएं हैं उन परंपराओं को उनके मूल स्वरूप में ही आगे बढ़ाते रहना आवश्यक है.
काशी में बसते हैं भोलेनाथ के दो रूप
काशी एकमात्र ऐसी नगरी है जहां बाबा विश्वनाथ अपने गृहस्थ और आदियोगी दोनों ही स्वरूपों में विराजमान हैं. इस अद्वितीय नगरी की शास्त्रीय और लोकपरंपराएं भी अद्वितीय हैं. काशीवासियों का बाबा विश्वनाथ से संबंध सिर्फ भक्त और भगवान तक ही सीमित नहीं है. यहां के लोग बाबा विश्वनाथ को अपने दैनिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा मानते हैं. यहां के लोगों का कोई भी काम बाबा के बिना होता ही नहीं है.
ऐसे में, काशी में गृहस्थों और संन्यासियों की बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेलने की अलग-अलग लोकपरंपरा रही है. रंगभरी एकादशी की तिथि पर काशीवासी महंत आवास पहुंचकर गौरी-शंकर-गणेश के साथ होली खेलते हैं. उसके ठीक अगले दिन महाशमशान पर बाबा के साथ संन्यासी होली खेलते हैं. गृहस्थों को गलती से भी मसान की होली में सम्मिलित नहीं होना चाहिए. इससे बड़ा दोष पड़ता है. गृहस्थ रंग की होली खेलें न कि चिता भस्म की होली.
साधु-संन्यासी खेलेंगे मसान की होली
द्वादशी की तिथि पर साधु-संन्यासी मसान पर बाबा के साथ होली खेलेंगे. उन्होंने आगे बताया कि हम नागा साधु बाबा के गण हैं, लेकिन काशीवासी तो सीधे-सीधे बाबा के ही दूत हैं. वे बाबा के दूत हैं इसीलिए वे काशी में हैं और हम सब गण है. इसलिए हिमालय की कंदराओं में हैं. संत दिगंबर खुशहाल भारती ने अपनी शिष्या को भी महिला होने के नाते मसान की होली में शामिल नहीं होने के लिए कहा है और अन्य महिलाओं से भी अपील की है कि वे भी सनातन परंपराओं की निर्वहन करते हुए मसान पर न आएं.