
हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री का व्रत रखा जाता है. इस बार ये तिथि आज यानी 19 मई को पड़ रही है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रहकर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए भी प्रार्थना करती हैं. इसके लिए बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. मान्यता है कि पेड़ की परिक्रमा करके उसके चारों ओर कलावा बांधा जाता है और जिस तरह बरगद के पेड़ की आयु लंबी होती है उसी तरह पति की आयु भी लंबी होती है.
शास्त्रों में क्या है मान्यता?
कहते हैं कि वट वृक्ष के नीचे ही अपने कठोर तप से पतिव्रता सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित किया था. वहीं दूसरी मान्यता कहता है कि भगवान शिव के वरदान से ऋषि मार्कण्डेय को वट वृक्ष में भगवान विष्णु के बाल मुकुंद अवतार के दर्शन हुए थे. तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है.
क्या है शुभ मुहूर्त?
वट सावित्री की अमावस्या तिथी 18 मई अपराहृ 9:42 पर लगेगी और 19 मई 2023 को रात्रि 9:22 समाप्त होगी.
क्या बन रहा शुभ योग?
इस बार इस व्रत में खास संयोग बन रहा है जिससे इस उपवास का महत्व और बढ़ जाएगा. इस बार वट सावित्री के व्रत पर शोभन योग (shobhan yog) बन रहा है जो 18 मई को शाम 7:37 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 19 मई को शाम 6:16 मिनट तक रहेगा. वहीं दूसरा संयोग शश योग है. इस दिन शनि जयंती भी है ऐसे में शनि देव की पूजा अर्चना करना भी बहुत फलदायी होगा. जिनकी कुंडली में ढैय्या और साढ़ेसाती है उन्हें तो इस दिन शनि देव की पूजा जरूर करनी चाहिए. इसके अलावा इस दिन गजकेसरी योग भी है. ये सारे ही संयोग बहुत ही फलदायी है इसलिए व्रत को महत्व दोगुना हो जाता है.
क्या है पूजा विधि?
इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद लाल या पीले रंग कपड़े पहनती हैं. इसके बाद पूजा की सभी सामग्री को एक जगह एकत्रित करके पूजा की थाली सजा लें. फिर किसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा स्थापित करें. सबसे पहले बरगद के वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ व मिठाई चढ़ाएं. वट के वृक्ष पर सूत लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें. अब हाथ में चने लेकर वट सावित्री की कथा पढ़ें या सुनें. इसके बाद पूजा संपन्न होने पर ब्राह्मणों को फल और वस्त्रों करें.